सम्पादकीय

किसी प्रत्याशी की गाड़ी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पाया जाना दुखद और अवैधानिक

Gulabi
3 April 2021 5:29 AM GMT
किसी प्रत्याशी की गाड़ी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पाया जाना दुखद और अवैधानिक
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन

किसी प्रत्याशी की गाड़ी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पाया जाना दुखद और अवैधानिक है। असम से जो शिकायत आई है, वह इतनी गंभीर है कि स्वयं चुनाव आयोग को संबंधित चार अधिकारियों को निलंबित करना पड़ा है।

अगर मतदान के बाद ईवीएम मशीन को स्ट्रॉन्ग रूम तक पहुंचाने का सरकारी इंतजाम नहीं था, तब मतदान केंद्र पर ही मशीन के साथ इंतजार करना चाहिए था। चुनाव आयोग के पास वाहन न होने के बहाने को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

संसाधनों की कोई कमी न हो, इसीलिए चुनाव अनेक चरणों में कराए जा रहे हैं। आयोग ने सभी केंद्रों को परिवहन सुविधा से जोड़ने के लिए तमाम इंतजाम किए ही होंगे, तब भी अगर कहीं वाहन का टोटा सामने आया, तो यह अपने आप में बड़ी चिंता की बात है। उससे भी बड़ी चिंता यह कि आयोग की गाड़ी उपलब्ध न होने पर किसी प्रत्याशी की गाड़ी में ईवीएम रख दी जाए! यह चुनावी व्यवस्था के साथ खिलवाड़ है।

अगर प्रत्याशी के वाहन में ईवीएम मशीन के साथ चुनाव अधिकारी भी बैठे थे, तो भी मामला बहुत गंभीर है। शिकायत आने के बाद चुनाव आयोग ने रतबरी क्षेत्र के उस मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान का सही फैसला लिया है। पूरे चुनाव में हर जगह आयोग को अपने इंतजामों को पुन: परख लेना चाहिए।

यह भूलना नहीं चाहिए कि चुनाव आयोग या देश में चुनाव कितनी मुश्किल से सुधार की सीढ़ियां चढ़ा है। कितने संघर्ष और बलिदान के बाद चुनावी प्रक्रिया आज इस स्थिति में पहुंची है कि दुनिया भारत से चुनाव कराना सीखती है। ऐसी उज्ज्वल छवि वाले चुनाव आयोग को विगत कुछ समय से अगर चुनाव कराने में समस्याएं आ रही हैं, तो यह समय पुन: मुस्तैद होने का है।
जिन राज्यों में इस वक्त विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां से लगातार छोटी-बड़ी शिकायतें सामने आ रही हैं। चूंकि चुनाव के दौरान पूरी व्यवस्था चुनाव आयोग के हाथों में होती है, इसलिए किसी भी शिकायत की जिम्मेदारी आयोग को लेनी चाहिए। क्या निचले स्तर पर चुनाव अधिकारी चुनाव के नियम-कायदे भूलने लगे हैं? बहुत मुश्किल से और काफी संसाधनों के उपयोग से इस देश ने अपने लोगों को चुनाव कराने के लिए प्रशिक्षित किया है, इस प्रशिक्षण को फिर से जांचने की जरूरत है।
चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों के हाथों में होनी चाहिए, जो निष्पक्ष हैं। समय बदल चुका है, अब चुनाव की प्रक्रिया और उसके छोटे-छोटे पहलुओं पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों की निगाह है, अब कमियों को पहले की तरह छिपाया या नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हर आदमी सूचना तकनीक से लैस है और निष्पक्ष चुनाव के प्रति लोगों का लगाव बढ़ा है।
पश्चिम बंगाल से भी आयोग के पास शिकायतें लगातार पहुंच रही हैं, उन शिकायतों का निपटारा ऐसे पारदर्शी तरीके से होना चाहिए कि किसी भी दल को गंभीर शिकायत का मौका न मिले। चुनावी तंत्र की निष्पक्षता न केवल हमारे देश को मजबूत करती है, बल्कि राजनीतिक दलों को भी अनुशासन में रहने के लिए पाबंद करती है। अत: किसी भी दल के दबाव में आए बिना आयोग को वही करना चाहिए, जो उसके नियम-कायदों में बहुत ठोक-बजाकर दर्ज किया गया है। चुनावी प्रक्रिया के किसी भी मोड़ पर गुणवत्ता से समझौता लोकतंत्र से समझौता होगा, जो देश के हित में नहीं है।


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