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श्रुति फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर लावारिस मिली थी। उसे भोपाल के एसओएस बालग्राम लाया गया
एन. रघुरामन। श्रुति फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर लावारिस मिली थी। उसे भोपाल के एसओएस बालग्राम लाया गया। बौद्धिक रूप से कमजोर और बधिर श्रुति ने आगे जाकर अबू धाबी, यूएई में आयोजित वर्ल्ड समर गेम्स 2019 स्पेशल ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 500 मीटर साइकिलिंग में सिल्वर मेडल जीता। साइकिलिंग के अलावा वह फुटबॉल और वॉलीबॉल में भी अच्छी है।
उसने नेशनल चैम्पियनशिप फुटबॉल स्पेशल ओलिंपिक गेम्स में तृतीय पुरुस्कार जीता। श्रुति की ही तरह मनिमेघलाई को भी तमिलनाडु से भोपाल लाया गया था, जब वह तीन वर्ष की थी। उसने भी इसी आयोजन में, इसी खेल में गोल्ड जीता। किरण को भी 10 वर्ष की उम्र में लातूर, महाराष्ट्र से एसओएस बालग्राम लाया गया था। वह तब से ही खेल का अभ्यास कर रही है और विभिन्न खेल गतिविधियों में जीत रही है।
उसने मुंबई में 2014 में नेशनल चैम्पियनशिप कैंप में बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीता और ऑस्ट्रिया में 2017 में हुए वर्ल्ड विंटर स्पेशल ओलिंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। एसओएस बालग्राम असुरक्षित बच्चों के साथ टूटे हुए परिवारों की भी मदद करता है। जब बच्चा सबकुछ खो देता है, तो एसओएस बालग्राम उन्हें एक घर, मां और परिवार देने तैयार रहता है।
आज श्रुति, मनिमेघलाई और किरण मेडल जीतने के बाद एक और मिशन में जुट गई हैं। वे अब मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को अगले स्पेशल ओलिंपिक्स के लिए प्रशिक्षण दे रही हैं। वे बालग्राम के युवा बच्चों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। मुझे उनकी कहानी शुक्रवार सुबह याद आई, जब मॉर्निंग वॉक पर मेरे साथ चल रहे एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा, 'पता नहीं क्यों मैं अपना बायां हाथ, दायें हाथ के बराबर नहीं खींच पाता?' मेरे लिए यह सीधा सवाल नहीं था। इसमें जरा नकारात्मकता थी, शायद यह डर कि बायें हाथ में कुछ समस्या है। इसलिए मैंने उन्हें जवाब देने में वक्त लिया और मुझे एक आध्यात्मिक गुरु की बात याद आई, 'अगर आप दोनों हाथों का बराबर इस्तेमाल नहीं करेंगे तो दोनों के प्रदर्शन में हमेशा अंतर रहेगा।
वे बिल्कुल सही थे। जो चीज इस्तेमाल नहीं होती, अंतत: अपनी शक्ति खोने लगती है। प्रबंधन के दृष्टिकोण से जो चीज उपयोग नहीं हुई, उसका दुरुपयोग हुआ है। बिना इस्तेमाल के समय खत्म हो जाता है, हुनर मिट जाता है, मशीन में जंग लग जाती है, क्षमता क्षीण हो जाती है, पैसे का मोल कम हो जाता है और बिना इस्तेमाल के ज्ञान महज एक बोझ है।
मैंने उनसे कहा कि ऐसा हमारे विचारों के साथ भी होता है। मूलत: हमारे विचार नकारात्मक होते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग 'नहीं', 'मत करो', 'मैं डरा हुआ हूं' और 'तुमसे नहीं हो पाएगा' जैसी बातें इस्तेमाल करते हैं। मेरे एक परिचित ने कुछ उम्मीदवारों के साक्षात्कार के दौरान कहा था, 'ज्यादातर उम्मीदवार क्यों कहते हैं कि 'मैं झूठ नहीं बोलता।' वे किसी भी वाक्य में 'नहीं' क्यों इस्तेमाल करते हैं? वे यह भी तो कह सकते हैं 'मैं हमेशा सच बोलता हूं।''
याद रखें सुबह की खूबसूरती सिर्फ माहौल की ताजगी में नहीं है। बल्कि आपके विचारों, भावनाओं और दिन की शुरुआत के तरीके में ताजगी मायने रखती है। इसलिए सकारात्मक सोचने का अभ्यास करें और समय के साथ आपका मन भी ऐसा करने लगेगा।
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