सम्पादकीय

तालिबान का खतरा और चीन-पाकिस्तान की तबाही का अफगान प्लान!

Tara Tandi
13 July 2021 12:47 PM GMT
तालिबान का खतरा और चीन-पाकिस्तान की तबाही का अफगान प्लान!
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चीनको अगर रोकना है तो उसे अफ़गानिस्तान में फंसाना ज़रूरी है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| मनोज सिंह | चीन (China) को अगर रोकना है तो उसे अफ़गानिस्तान (Afghanistan) में फंसाना ज़रूरी है. अमेरिका (America) के कुछ विचार समूहों में यह चर्चा काफ़ी अर्से से चल रही है. अब जब कि अमेरिका, अफगानिस्तान को लगभग लावारिस छोड़ कर जा रहा है, चीन की चिंता सचमुच में बढ़ती दिखाई दे रही है. हालांकि इस चिंता में चीन अकेला नहीं है. उसके साथ उसका हमसाया और हमदम मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) भी शामिल है. और दोनों ही मुल्क जानते हैं कि अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान में अशांति और गृहयुद्ध (Civil War) की आग, उनके भविष्य के मंसूबों को जलाकर ख़ाक कर सकती है. चीन जो इस वक्त विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की कगार पर है, अमेरिका की तरह अगली कई दहाईयों तक अफगानिस्तान की फांस में, फंस सकता है.

वहीं अब चीन के विदेश मंत्री का ताज़ा बयान इस शंका को बल भी दे रहा है. पिछले हफ़्ते चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने जो कहा उसका संदेश यही था कि, इस पूरे क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्तान बातचीत के माध्यम से अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता बनाने के रास्ते तलाश करे. अफगानिस्तान से सुरक्षा का ख़तरा आस-पास के मुल्कों में फैलने का सबसे ज्यादा डर इस वक्त चीन को ही है. इसकी कई वजहें हैं. लेकिन हर वजह का तार एक रणनीति से जुड़ा है. और वह है, मध्य एशिया देश के बाज़ारों तक चीन का खुला रास्ता.
शिंजियांग में इस्लामिक स्टेट का ख़तरा!
चीन की पहली चिंता शुरू होती है शिंजियांग से. चीन की यह सीमा अफ़गानिस्तान से लगती है. चीन कई वर्षों से यहां के उइगर मुसलमानों के विद्रोह का सामना करता आया है. कई विद्रोही घटनाओं के बाद से चीन ने यहां उइगर मुसलमानों की आबादी पर ज़बरदस्त पाबंदियां लगा रखी हैं. उइगर मुसलमानों को यातना कैंपों में बंद कर, उनकी धार्मिक विचार धारा को खत्म करने का आरोप चीन पर लगता रहता है. तस्वीरों और गोपनीय दस्तावेजों में उइगर मुसलमानों के यातना कैंप की दास्तान दुनियाभर ने देखी और पढ़ी है. मगर चीन दुनिया भर की आलोचना और अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंध झेलकर भी ऐसा क्यों कर रहा है. ज़ाहिर है, चीन के लिए यह पूरा इलाका रणनीति के तौर पर महत्वपूर्ण और बेहद संवेदनशील भी है.
अभी कुछ साल पहले ही जर्मनी की समाचार एजेंसी डॉचे विले (Deutsche Welle) में छपा कि- चीन, तालिबान और अफगान सरकार के बीच सुलह की कोशिश कर रहा है. इसकी वजह यह है चीन का डर कि अगर अफगानिस्तान में अशांति हुई तो वहां इस्लामिक स्टेट की पकड़ मज़बूत हो सकती है. ऐसा हुआ तो इस्लामिक स्टेट के आतंकी चीन के शिंजियांग प्रांत में उइगर मुसलमान विद्रोहियों की मदद करेंगे. शिंजियांग की सीमा से ही जुड़े देश किर्गिस्तान से उइगर मुसलमानों को पहले भी मदद मिलती रही है. हालांकि चीन ने उसपर काबू पा लिया है. वहीं तालिबान ने अपने ताज़ा बयान में कहा है कि, वह चीन से दोस्ताना रिश्ते चाहता है और उइगर मुसलमानों का मुद्दा चीन का आंतरिक मामला है. लेकिन चीन भी समझता है कि ऐसे बयानों का भविष्य में कोई मतलब नहीं रहता. अफगानिस्तान में अशांति और गृहयुद्ध की आग शिंजियांग के ज़रिए चीन की सीमा में दाखिल हो सकती है.
गिलगित बल्टिस्तान में तालिबान कमांडर!
चीन की दूसरी सबसे बड़ी चिंता है चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर जो गिलगिट बल्टिस्तान से होते हुए ग्वादर पोर्ट तक जाती है. इसके आगे वह वन बेल्ट वन रोड योजना के ज़रिए मध्य एशियाई देशों तक पहुंचना चाहता है. अफगानिस्तान में अशांति और गृहयुद्ध का सबसे बड़ा असर सीपेक और उससे जुड़ी योजनाओं पर होगा. फ़िलहाल सीपेक की सुरक्षा का जिम्मा पाकिस्तान आर्मी के पास है. सीपेक चीन के कशगर शहर से शुरू होता है. यह दक्षिणी शिजियांग प्रांत का इलाक़ा है जिसकी सीमा अफगानिस्तान, किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान और पाकिस्तान से जुड़ती है. विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में अशांति का असर सीपेक के इस शुरूआती हिस्से पर सबसे ज्यादा पड़ने का ख़तरा है. वहीं पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के जिस हिस्से से सीपेक गुज़रता है वहां इस योजना को लेकर पहले से ही विरोध के स्वर सुनाई देते रहे है
लेकिन सबसे बड़ी चिंता वाली ख़बर अभी एक हफ़्ते पहले ही आई है. यहां 7 जुलाई को तालिबान के एक कमांडर, हबीब-उर रहमान ने यहां के एक पोलो ग्राउंड में खुली अदालत लगाई. इस तालिबान कमांडर ने खुद को ज़िला दियामर का नायब अमीर बताया और गिलगिट में तालिबानी शासन की बात कही. इतना ही नहीं एक लोकल टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में इस कमांडर ने स्थानीय लोगों के लिए संदेश भी जारी किया. हालांकि पाकिस्तान की नेशनल मीडिया में इस ख़बर को दबा दिया गया. लेकिन तालिबान कमांडर का पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में खुलेआम जन अदालत लगाना पाकिस्तान-चीन इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए ख़तरे की बड़ी घंटी है. चीन और पाकिस्तान दोनों ही देश अफगानिस्तान में तालिबान से अछूते नहीं रह सकते यह इसका सबसे बड़ा सबूत है.
'वख़ान कॉरिडोर' में चीनी सेना का कैंप!
चीन काफ़ी अरसे से अफगानिस्तान में अपने ख़तरों को भांप रहा है. इसका सबसे बड़ा सुबूत है- वख़ान कॉरिडोर. यह एक पट्टीनुमा इलाका है जो अफगानिस्तान से चीन के शिंजियांग क्षेत्र में दाखिल होता है. इस पट्टीनुमा इलाके के एक तरफ़ तज़ाकिस्तान और दूसरी तरफ़ पाकिस्तान है. वख़ान, अफगानिस्तान के बदख्शन राज्य का ज़िला है. चीन ने बदख्शन प्रोविंस के विकास के लिए अब तक करीब 90 मिलियन अमेरिकी डॉलर की विकास योजनाएं दी हैं. अफगानिस्तान के इस एक ज़िले पर चीन की इस मेहरबानी की एक बड़ी वजह भी है. इंटरनेशनल मीडिया और इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने दावा किया है कि चीन ने एक अरसे से यहां पर अपना मिलिट्री बेस कायम कर रखा है. यानि चीन की सेना अफगानिस्तान के भीतर अपना अड्डा बनाए हुए है
चीन हमेशा की तरह इन रिपोर्ट्स का खंडन करता रहा है. लेकिन इस क्षेत्र में चीन की संवेदनशील स्थिति को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता. हाल ही में चीन के विदेश मंत्री ने घोषणा की थी कि- सीपेक का विस्तार पाकिस्तान के आगे अफगानिस्तान में भी किया जा सकता है. वख़ान कॉरिडोर वही पट्टीनुमा इलाका है जहां से चीन सीपेक को अफगानिस्तान के भीतर दाखिल करने की योजना पर काम कर रहा है.
चीन फंसा तो डूब जाएगी इकोनॉमी
चीन अपने व्यापारिक हितों के लिए जिस सेंट्रल एशिया तक का रास्ता बना रहा है, अफगानिस्तान उस सेंट्रल एशिया का दिल है. अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि अगर वहां गृहयुद्ध जैसे हालात बने तो चीन का सारा प्लान और अब तक का सारा निवेश डूब सकता है. चीन को अपना यह निवेश बचाने के लिए अफगानिस्तान की आग में उतरना एक मजबूरी बन सकती है. एक तालिबान हो तो संभाल सकते हैं, लोकतांत्रिक सरकार हो तो मैनेज कर सकते हैं. मगर अफगानिस्तान में अलग-अलग तालिबान हों या फिर इस्लामिक स्टेट की भी हिस्सारी हो जाए तो चीन और पाकिस्तान दोनों ही बड़ी मुसीबात फंस जाएंगे. साफ़ है, अंकल सैम तो निकल चले, अब चीन और चचा जानी पाकिस्तानी, दोनों ही चिंता में हैं.


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