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कोरोना संकट से उपजे हालात पर सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की कोई आवश्यकता नहीं थी कि वह मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता। ऐसी कोई टिप्पणी तो तब मायने रखती, जब यह सवाल उठा होता कि आखिर इस राष्ट्रीय संकट के समय शीर्ष न्यायपालिका क्या कर रही है? सुप्रीम कोर्ट इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि देश के कई उच्च न्यायालय भी कोरोना संकट से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। उनमें से कई राज्य सरकारों को डांटने-फटकारने में लगे हुए हैं।
जब उच्चतर अदालतें यह देख रही हैं कि केंद्र, राज्य और उनका प्रशासन कोरोना संकट से निपटने के लिए अपने स्तर पर भरसक कोशिश कर रहा है, तब फिर उनके खिलाफ कठोर टिप्पणियों से बचा जाना चाहिए। ये टिप्पणियां संकट से जूझ रहे तंत्र के मनोबल को प्रभावित करने अथवा उनकी प्राथमिकताओं को गड़बड़ाने वाली साबित हो सकती हैं। नि:संदेह वहां अवश्य हस्तक्षेप किया जाए, जहां जानबूझकर हीलाहवाली हो रही है, लेकिन यह समझना कठिन है कि मद्रास उच्च न्यायालय इस नतीजे पर कैसे पहुंच गया कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के लिए केवल चुनाव आयोग जिम्मेदार है। चुनाव तो केवल पांच राज्यों में हो रहे हैं। आखिर जिन राज्यों में चुनाव नहीं हो रहे, वहां कोरोना क्यों फैला? क्या चुनाव आयोग के कारण ही?