सम्पादकीय

सवालों से बौनी हुई माउंट एवरेस्ट की सर्वोच्चता, कब जगेगी पर्यावरण सुधार की प्रेरणा

Gulabi
15 Dec 2020 11:23 AM GMT
सवालों से बौनी हुई माउंट एवरेस्ट की सर्वोच्चता, कब जगेगी पर्यावरण सुधार की प्रेरणा
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विश्व के ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना और उन्हें मापना बेहद जोखिम भरा काम है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्व के ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना और उन्हें मापना बेहद जोखिम भरा काम है। लेकिन पर्वतों की इन ऊंचाइयों से इंसान को अपनी क्षुद्रताओं या कहें कि छोटेपन का अहसास अवश्य होता है। यही नहीं, हर साल तमाम लोग इस जोखिम को इसलिए उठाते हैं, ताकि वे अपना पराक्रम दिखा सकें और कई इसलिए इन पर जाते हैं, ताकि अच्छा जीवन बसर करने की उनकी आकांक्षा फलीभूत हो सके। बेशक, दुनिया में एवरेस्ट एक ही है और सिर्फ पर्वतारोहियों की नजर से ही नहीं, जीवन में एक ऊंचाई हासिल करने के हरेक ख्वाहिशमंद के लिए भी वह एक असीम प्रेरणा है।


इधर, माउंट एवरेस्ट की चर्चा छिड़ने की एक खास वजह यह है कि नेपाल-चीन के संयुक्त अभियान में इस पर्वत शिखर को फिर से नापने का नतीजा यह निकला है कि इसकी ऊंचाई पहले के मुकाबले करीब एक मीटर (86 सेंटीमीटर) बढ़ गई है। एवरेस्ट की यह नई ऊंचाई (8,848.86 मीटर) इस मायने में उल्लेखनीय कही जाएगी कि वर्ष 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप में इस शिखर की ऊंचाई घट जाने का अनुमान लगाया गया था। इसकी एक वजह और है।



असल में, चीन अभी तक दुनिया भर में एवरेस्ट की मान्य ऊंचाई को स्वीकारने से इन्कार करता रहा है और इसे चार मीटर कम करके आंकता रहा है। ध्यान रहे कि एवरेस्ट की इस ऊंचाई का आकलन ब्रिटिश राज में भारतीय सर्वे विभाग की ओर से किया गया था। आधिकारिक तौर पर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848 मीटर ही है। यह आकलन वर्ष 1955 में सर्वे ऑफ इंडिया ने किया था और नेपाल समेत पूरे विश्व ने इसे मान्यता दी थी। हालांकि खुद चीन वर्ष 1975 और वर्ष 2005 में चोमोलोंगमा (माउंट एवरेस्ट का चीनी नामकरण) को नाप चुका है और उसने इसे 8,844.43 मीटर ऊंचा बताया था। तब के मापन में चीन ने एवरेस्ट शिखर पर मौजूद स्नो कैप को नकारा था, जबकि इस बार उसने स्नो कैप को मान्यता दी है, जिससे ऊंचाई चार मीटर बढ़ गई है।

भारतीय कोशिशों को नकार : वैसे तो एवरेस्ट के मापन का यह अभियान नेपाल पर पड़ोसी देशों के प्रभुत्व की कसौटी भी साबित हुआ है। इधर भले ही नेपाल ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई दोबारा नापने का काम चीन के साथ मिलकर किया हो, लेकिन अप्रैल 2015 के भूकंप के मद्देनजर 2017 में भारत ने प्रस्ताव किया था कि वह भूकंप की वजह से इसकी ऊंचाई में आए अंतर के अनुमानों की पुष्टि का काम करना चाहता है। नेपाल सरकार को सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से उस सयम यह समझाने का प्रयास किया गया था कि इस साझा मिशन से एवरेस्ट पर पड़े भूकंप के असर के अलावा नेपाल-भारत की मैत्री को भी इससे बढ़ावा मिलेगा। निश्चय ही इसका एक प्रत्यक्ष लाभ खुद सर्वे ऑफ इंडिया को भी होना था।
असल में वर्ष 1767 में स्थापित हुआ सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया अपनी 250वीं वर्षगांठ के मौके पर इस परियोजना को पूरा करके इस मौके को यादगार बनाना चाहता था। पांच करोड़ की लागत वाली इस परियोजना में कुछ शेरपाओं को भी शामिल करने की योजना थी। परियोजना में नेपाल की ओर से भी सर्वेयर रखना तय किया गया था। चूंकि इस परियोजना में नेपाल का सहयोग लेना स्वाभाविक था, इसी उद्देश्य से सर्वे ऑफ इंडिया ने भारत के विदेश मंत्रलय के माध्यम से नेपाल के विदेश मंत्रलय को अपना प्रस्ताव भेजा था। उस दौरान नेपाल के सर्वे विभाग के उप-प्रमुख का यह बयान मीडिया में आया था कि इस बारे में भारत के साथ कोई करार नहीं हुआ है और दरअसल नेपाल स्वयं ही एक सर्वे करने की योजना बना रहा है। प्रस्ताव भेजे जाने के कई महीनों बाद तक सर्वे ऑफ इंडिया को नेपाल सरकार से कोई जवाब नहीं मिला तो इसका अंदाजा लग गया कि इसकी वजह पिछले कुछ वर्षो में भारत-नेपाल के रिश्तों में आया बदलाव है। उस दौर में दोनों देशों के बीच कुछ मामलों को लेकर विवाद था, जिसका फायदा उठाते हुए चीन ने हिमालय क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा लिया। भारत से रिश्तों में बिगाड़ का नेपाली रवैया एवरेस्ट की सर्वोच्चता पर सवालिया निशान लगा रहा है, जिस पर नेपाल को विचार करना चाहिए।
कितना बदला एवरेस्ट : फिलहाल वैज्ञानिक नहीं जानते कि नेपाल के विनाशकारी भूकंप का माउंट एवरेस्ट की पारिस्थितिकी और ऊंचाई पर क्या और कैसा असर पड़ा है। ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि यह पर्वत शिखर पहले के मुकाबले कुछ सिकुड़ गया है। यूनिवर्सटिी ऑफ ऑक्सफोर्ड के अर्थ साइंस के प्रोफेसर माइक सिअर्ले के मुताबिक, वर्ष 2015 के भूकंप के दौरान नेपाल उत्तर-दक्षिण की ओर हिमालय के देशांतर पर एक मीटर तक खिसक गया था। साथ ही काठमांडू घाटी के उत्तर की पहाड़ियां एक मीटर तक उठ गईं। इससे यह समझ बनी थी कि हो सकता है कि एवरेस्ट की ऊंचाई भी बढ़ गई हो, जिसकी पुष्टि अब चीन-नेपाल के साझा आकलन से हुई है। लेकिन ऊंचाई तय करने का यह काम आसान नहीं था। यह तय करने के लिए कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी में कुछ सेंटीमीटर का बदलाव हुआ है या नहीं, एक जमीनी सर्वेक्षण और जीपीएस के साथ हवाई सर्वेक्षण की जरूरत थी।

माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापने के लिए जीपीएस और त्रिकोणों को नापने की विधि को एक साथ मिलाकर अपनाने से ही ऐसा नजदीकी आकलन हो सकता है जो एवरेस्ट की सटीक ऊंचाई बता सके। उल्लेखनीय है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई संबंधी आंकड़ों की मदद से भू-वैज्ञानिकों को भूकंप की भविष्यवाणी और धरती की चट्टानी सतहों यानी टेक्टॉनिक प्लेटों के संचलन (मूवमेंट) को समझने में मदद मिलती है।

आसान नहीं शिखरों का मापन : बात सिर्फ एवरेस्ट सरीखे सर्वोच्च शिखर के मापन की नहीं है, बल्कि दुनिया के कई अन्य पर्वत शिखर हैं, जिनकी ऊंचाई के सिर्फ अंदाजे ही हैं। हालांकि हाल के दशक में नई तकनीकों ने यह काम आसान किया है। उल्लेखनीय है कि सैटेलाइट नेटवर्क और जीपीएस की मदद से पृथ्वी के केंद्र से एक सेंटीमीटर या उससे भी कम की हेरफेर से पर्वतों की ऊंचाई नापी जा सकती है। गौरतलब है कि पृथ्वी पर अलग-अलग जगहों पर द्रव्यमान के अलग-अलग वितरण की वजह से व्यावहारिक रूप से समुद्र तल से ऊंचाई एक जैसी नहीं है। दिन और रात के फर्क से भी इस द्रव्यमान में अंतर आ जाता है। ऐसे में एवरेस्ट के मामले में तो यह आकलन और भी मुश्किल काम होता है।

जिस एवरेस्ट को सर एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग ने 1953 में फतह कर लिया था, उस पर आरोहण का सिलसिला हाल के दशक में इतना बढ़ा है कि एवरेस्ट पर ट्रैफिक जाम के दृश्य उपस्थित होने लगे हैं। दरअसल दुनिया जान गई है कि एवरेस्ट पर पहुंचना उतना कठिन नहीं है, जितना पहले सोचा जाता था। इसकी बड़ी वजह तकनीकी विकास है, जिसने पर्वतारोहियों की मुश्किलें आसान की हैं। नेपाल भी विदेशी मुद्रा के मोह में पर्वतारोहियों पर अंकुश नहीं लगाना चाहता। इन कारणों से एवरेस्ट की ओर दौड़ लगाने वालों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहा है। इस बीच पर्यावरणवादी चेतावनी दे रहे हैं कि एवरेस्ट पर बढ़ रहे दबाव और उसके पर्यावरण के साथ हो रही सतत छेड़छाड़ के ही नतीजे में एवलांच और जलजलों की जमीन तैयार हो रही है। इसके कुछ उदाहरण भी मिल चुके हैं।

छह वर्ष पूर्व 18 अप्रैल 2014 को एवरेस्ट के बेस कैंप पर 16 शेरपाओं की एवलांच से मौत हो गई थी। इसके अलावा, देश-विदेश के कई पर्वतारोही इसके रास्तों से लापता बताए जाते हैं। यही नहीं, वर्ष 2015 में आए भूकंप में जहां पूरे नेपाल में करीब नौ हजार मौतें हुई थीं, तो एवरेस्ट के बेस कैंप के एवलांच में दबने से 18 पर्वतारोहियों और गाइडों की मौत हो गई थी। हालांकि इन घटनाओं की वजह से वर्ष 2015 में नेपाल के कुल पर्यटन में 31 फीसद की कमी आई थी, तो एवरेस्ट पर जाने वालों की संख्या में लगभग 95 प्रतिशत तक गिरावट आ गई थी।

बेशक, एवरेस्ट की ऊंचाई को छू लेने का संकल्प बहुत प्रेरक है, लेकिन सवाल है कि क्या इंसान को इसके लक्ष्य की तलाश थी। मानव जिजीविषा को चुनौती देने वाले एवरेस्ट के लिए आज चुनौती यह है कि उसे पददलित करने की चाह प्रकृति के साथ हो रहे सबसे बड़े खिलवाड़ का प्रतीक बन गई है। आज हालात ये हैं कि इसकी ढलानें टनों कचरे से पटी पड़ी हैं, जिससे दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत की आबोहवा बिगड़ रही है। इस स्थिति को पर्यावरण-प्रेमी चिंताजनक बताते रहे हैं। शिखर पर पहुंचने के बाद तमाम पर्वतारोही वहां उपयोग की गई वस्तुओं का कचरा छोड़ तो आते हैं, लेकिन उनके निस्तारण की कोई अंतिम व्यवस्था नहीं हो पाई है। मानवीय हस्तक्षेप तथा बढ़ती आवाजाही से शिखर का नैसíगक सौंदर्य खतरे में पड़ता जा रहा है। यह स्थिति तब है, जब नेपाल सरकार किसी भी छह सदस्यीय एक दल से चार हजार डॉलर इसकी साफ-सफाई के उद्देश्य से ही अग्रिम राशि के तौर पर सुरक्षित रखती है। यह समस्या बड़ी परेशानी इसलिए पैदा कर रही है, क्योंकि अब एवरेस्ट पर ऐसे नौसिखिए भी तकनीक और साधनों के बल पर चढ़ने का प्रयत्न करते हैं, जिनका दम शायद अपने बूते पर किसी छोटे पहाड़ पर चढ़ने पर ही फूल जाए। ऐसे अधिकांश पर्वतारोही यह नहीं जानते हैं कि प्रकृति और पर्वतों के साथ हमें किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। उन्हें सिर्फ अपने सपने से लगाव है।

प्रकृति की शुचिता का सवाल उनके जेहन में कभी नहीं कौंधता। इन चिंताओं से सर एडमंड हिलेरी और एक अन्य प्रसिद्ध महिला पर्वतारोही जापान की जंको ताबेई भी वाकिफ हैं। इसी कारण वे दोनों नेपाल सरकार को कुछ साल के लिए एवरेस्ट अभियानों पर पाबंदी लगाने की सलाह दे चुके हैं। हो सकता है कि यह बंदिश समस्या का सही इलाज न हो, लेकिन यह तो संभव है कि इस कदम से दुनिया में एवरेस्ट और समूचे पर्यावरण के प्रति हमारी लापरवाही प्रकट हो जाए और लोग पर्यावरण की सार-संभाल को लेकर थोड़ा सचेत हो जाएं।


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