सम्पादकीय

नहीं रुक रहा पराली जलाना : ठंड में सताएंगे धुंध और कोहरा, अभी से बनने लगी स्थितियां

Neha Dani
26 Oct 2022 2:24 AM GMT
नहीं रुक रहा पराली जलाना : ठंड में सताएंगे धुंध और कोहरा, अभी से बनने लगी स्थितियां
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पराली के प्रबंधन के मामले में सरकारों का रवैया भी दूरदर्शिता भरा नहीं है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शीतकालीन स्मॉग की स्थितियां तेजी से बन रही हैं, जिसका एक कारण पराली का जलाया जाना है। पराली जलने पर विभिन्न आकार के कणीय प्रदूषकों के साथ ही मीथेन, कार्बन मोनोक्साइड, ब्लैक कार्बन जैसे जहरीले प्रदूषक भी उत्सर्जित होते हैं। मशीनों से धान कटाई के कारण यह समस्या बड़े खेतों में ज्यादा उभरी है, क्योंकि मशीनें फसलों के लंबे ठूंठ खेतों में छोड़ देती हैं। जब हाथों से फसल कटाई होती है, तो उन्हें जमीन के पास तक काटा जा सकता है।
भारत में राष्ट्रीय फसल अवशेष प्रबंधन एनपीएमसीआर, 2014 की नीति अस्तित्व में है। फिर भी सारे जागरूकता कार्यक्रमों व प्रतिबंध, दंड या प्रोत्साहन के सरकारी उपायों व अपीलों के बावजूद फसल अवशेषों को जलाने की घटनाएं जारी हैं। किसान अब दक्षिण भारत में भी पराली को खेत में ही जला रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के समाधान को स्थायित्व देने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अपनी सख्ती दिखा रहा है।
इस क्षेत्र में पड़ने वाले जिलों के जिलाधिकारियों को तुरंत पराली जलाने की घटनाओं की रिपोर्टिंग व घटनाओं को अंजाम देने वालों पर मुकदमे कायम करने को कहा गया है। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान हरियाणा और पंजाब में पराली जलाना प्रतिबंधित कर दिया था, और इसे अपराध भी घोषित कर दिया गया था। पर पिछले साल कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान आंदोलन के बाद इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
हालांकि जगह-जगह स्थानीय प्रशासन पराली जलाने पर रोक लगाने के विभिन्न दंडात्मक प्रावधान लागू कर रहे हैं। दिल्ली के 2022 विंटर ऐक्शन प्लान में पराली प्रबंधन पर भी जोर है। दिल्ली सरकार द्वारा विगत तीन अक्तूबर से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्थापित ग्रीन वार रूम में पराली जलाने के मामलों की रियल टाइम डाटा मॉनीटरिंग हो रही है। हरियाणा सरकार ने भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल अपने जिलों में पराली जलाने पर रोक लगा रखी है।
हालांकि किसान आम जन की भूख मिटाने के लिए ही अनाज पैदा करता है, लिहाजा उसे ही पराली जलाने का अपराधी न माना जाए। अनेक राज्यों में खेतों में फसल जलाने पर दंड के प्रावधान हैं, जो ऋणग्रस्त किसानों के लिए एक और मुश्किल है। पंजाब सरकार ने किसानों से पर्यावरण बचाने में मदद करने की अपील की है। वहां सरकार की मुश्किल यह है कि किसान छह हजार रुपये प्रति एकड़ सहायता मांग रहे हैं, जबकि सरकार के लिए 2,500 रुपये प्रति एकड़ देना भी मुश्किल है।
उसने 2,500 में से 1,500 रुपये प्रति एकड़ की मदद के लिए केंद्र से अनुरोध किया था, पर केंद्र ने मदद देने से इनकार कर दिया है। दिल्ली सरकार पिछले साल से ही दावा कर रही है कि पूसा बायो डिकंपोजर के व्यापक निःशुल्क उपयोग के कारण दिल्ली के खेतों में पराली गलकर खाद बन जाती है, किंतु पंजाब के किसानों में इसकी स्वीकार्यता नहीं देखी गई है। ऐसी ही नकारात्मक स्थिति पराली प्रबंधन मशीनों को लेकर भी है।
पंजाब सरकार किसानों को रियायती दर पर एक लाख बाईस हजार पराली प्रबंधन मशीनें उपलब्ध करा चुकी है। आगे भी उसने मशीनों की आपूर्ति जारी रखने का भरोसा दिया है। पर जो मशीनें दी गई हैं, उनमें से एक तिहाई ही उपयोग में हैं। पूरे देश में सालाना फसल अपशिष्टों में करीब 34 प्रतिशत अपशिष्ट धान के होते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में सालाना 270 लाख टन धान की पराली पैदा होती है, जिनमें से 64 लाख टन का प्रबंधन नहीं हो पाता।
सरकारें जब जानती हैं कि पराली के खुले में खेतों में जलाने के आर्थिक व पर्यावरणीय हानि हैं, तो वे किसानों से समर्थन मूल्य पर पराली खरीद सकती हैं। फिर मनरेगा के तहत पराली से खाद बनाने की मजदूरी दी जा सकती है। पराली का उपयोग पैकिंग सामग्री, कागज, बोर्ड, मशरूम उत्पादन, बायो एथनॉल, बिजली उत्पादन आदि में किया जा सकता है। पराली से जैविक खाद बनाने का काम भी हो सकता है। पर विडंबना यह है कि पराली के प्रबंधन के मामले में सरकारों का रवैया भी दूरदर्शिता भरा नहीं है।

सोर्स: अमर उजाला

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