सम्पादकीय

क्वाड से मिली सामरिक बढ़त चीन को दबाव में तो ला सकती है, लेकिन उसके खिलाफ भारत को अपनी तैयारी रखनी होगी पुख्ता

Gulabi
27 March 2021 10:46 AM GMT
क्वाड से मिली सामरिक बढ़त चीन को दबाव में तो ला सकती है, लेकिन उसके खिलाफ भारत को अपनी तैयारी रखनी होगी पुख्ता
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क्वाड के सदस्य चीन की लगाम कसने में सक्षम हो सकते हैं

करीब एक पखवाड़ा पहले क्वाड देशों के राष्ट्रप्रमुखों की वर्चुअल बैठक हुई। हिंद-प्रशांत के क्षेत्र के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के इस संगठन ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता तय किया है। हालांकि चीन के आक्रामक विस्तारवाद ने क्वाड को धार देने का काम किया है, लेकिन जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद क्वाड के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे थे। विशेषकर इस पहलू को लेकर कि क्या नए राष्ट्रपति अपने पूर्ववर्ती की 'मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत रणनीति' को आगे बढ़ाएंगे या उससे किनारा कर लेंगे? दरअसल बाइडन के चुनाव अभियान से 'हिंद प्रशांत' क्षेत्र स्पष्ट रूप से नदारद रहा। राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद ही बाइडन 'स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत' क्षेत्र के विषय में बोले। इसके बाद उन्होंने क्वाड का पहला सम्मेलन बुलाकर यह दर्शाया कि बाइडन प्रशासन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर एक व्यावहारिक रणनीति अपनाई।

दुस्साहसी चीन ताइवान को अपना अगला निशाना बना सकता है
यह अच्छी बात है कि क्वाड सम्मेलन के बाद संगठन की ओर से एक संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें एक स्पष्ट विजन था, लेकिन ठोस कदमों और दीर्घकालिक संकल्पों के बिना केवल जुबानी जमाखर्च से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कोई बड़ा अंतर नहीं आने वाला। दुस्साहसी चीन दक्षिण चीन सागर और हांगकांग में कुछ सफलता का स्वाद चखने के बाद ताइवान को अपना अगला निशाना बना सकता है। हिमालयी सीमा और पूर्वी चीन सागर में भी उसने बदनीयती दिखानी शुरू कर दी है।
क्वाड सम्मेलन में रणनीतिक मोर्चे पर कुछ खास हासिल नहीं हुआ
चीन की गहरी होती छाया के बावजूद इस सम्मेलन में रणनीतिक मोर्चे पर कुछ खास हासिल नहीं हुआ। इसमें वैक्सीन को लेकर की गई पहल को बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा सकता है। सम्मेलन की सबसे बड़ी पहल एक भारतीय कंपनी को 2022 के अंत तक एक अरब कोरोना रोधी टीके बनाने में मदद करने पर केंद्रित रही, लेकिन इस पहल में भी कुछ अवरोध हैं। अमेरिका को चाहिए कि वह वैक्सीन को लेकर बौद्धिक संपदा रियायत की पेशकश करे ताकि गरीब देशों को टीके के जेनेरिक संस्करण की सुविधा मिल सके। भारत और दक्षिण अफ्रीका ऐसी अस्थायी रियायत के लिए मुहिम चला रहे हैं।
क्वाड सदस्यो की सुरक्षा चुनौतियां असंगत हैं
भारत के जुड़ाव के साथ ही क्वाड ने फलना-फूलना शुरू कर दिया है, मगर अब भी कुछ कमियां शेष हैं। जैसे इसे नाटो का हिंद-प्रशांत संस्करण मानना तो दूर, उसे एक सामरिक गठजोड़ में परिवर्तित करने की ही कोई योजना नहीं दिखती। क्वाड सदस्यों की सुरक्षा चुनौतियां असंगत हैं। चीन से सुरक्षा का जितना बड़ा खतरा भारत और कुछ हद तक जापान को है, उतना दूर बसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को नहीं। क्वाड सामुद्रिक परिधि में केंद्रित संगठन अधिक है। हिमालयी क्षेत्र में कई मोर्चों पर चीनी आक्रामकता ने भारत के लिए चीन से जमीनी टकराव के खतरे को इंगित किया है। क्वाड सदस्यों में केवल भारत की भौगोलिक सीमा ही चीन से लगती है। ऐसे में बीजिंग को भारत के खिलाफ तत्काल आक्रामक कदम उठाने की गुंजाइश मिल जाती है।
भारत ही क्वाड का एकमात्र सदस्य, जिसे चीन से युद्ध झेलना पड़ा
भारत ही क्वाड का एकमात्र सदस्य है, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अवधि में चीन से युद्ध झेलना पड़ा। अमेरिका ने तो जमीनी स्तर पर चीन से कभी कोई चुनौती ही नहीं महसूस की। अमेरिका का मुख्य उद्देश्य गैर-सामरिक ही है, ताकि वह वैश्विक पटल पर चीन के उभार से पहले भू-राजनीतिक, वैचारिक और र्आिथक चुनौतियों के मामले में उसकी काट कर सके।
क्वाड एजेंडा चीन की चुनौती पर कम कोरोना महामारी एवं जलवायु परिवर्तन पर अधिक केंद्रित रहा
बाइडन अभी तक अपनी चीन नीति पर मुलम्मा ही चढ़ा रहे हैं। क्वाड नेताओं से फोन पर वार्ता के बाद बाइडन ने 10 फरवरी को चीनी तानाशाह शी चिनफिंग से दो घंटे तक फोन पर बात की। इसके अलावा अलास्का के एंकरेज शहर में अमेरिकी-चीनी उच्चाधिकारियों की बैठक हुई। अमेरिका वास्तव में चीन के साथ अपने रिश्तों को वापस पटरी पर लाने की समानांतर कोशिशों में जुटा है। यही कारण है कि क्वाड की विदेश मंत्री और राष्ट्रप्रमुखों के स्तर पर हुई दो बैठकों का एजेंडा चीन की चुनौती पर कम और कोरोना महामारी एवं जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मसलों पर अधिक केंद्रित रहा। यदि क्वाड हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सामरिक चुनौतियों को अनदेखा कर वैश्विक मुद्दों को प्राथमिकता बनाएगा तो दिशाहीन हो जाएगा और अपनी सैन्य एवं र्आिथक शक्ति के दम पर आक्रामक कूटनीति अपनाने के लिए चीन का हौसला बढ़ेगा।
केवल क्वाड से भारत की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान नहीं किया जा सकता
भारत में सार्वजनिक विमर्श रणनीतिक साझेदारी को लेकर होना चाहिए। हमें क्वाड की उपयोगिता और सीमाएं, दोनों समझनी होंगी। केवल क्वाड से ही भारत की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान नहीं किया जा सकता। जापान और ऑस्ट्रेलिया के उलट भारत को अमेरिकी सुरक्षा की छत्रछाया नहीं मिली हुई है। वैसे अमेरिका अपने साथियों से वादाखिलाफी भी करता आया है। 2012 में चीन ने स्कारबोरो शो पर कब्जा कर लिया और अमेरिका फिलीपींस की मदद नहीं कर सका। इससे चीन को द्वीप निर्माण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने और दक्षिण चीन सागर के भू-राजनीतिक नक्शे को बदलने में मदद मिली।
चीन की चुनौती का तोड़ भारत को अपने दम पर निकालना होगा
चीन की चुनौती का तोड़ भारत को अपने दम पर ही निकालना होगा। वैसे केवल आर्थिक या सैन्य शक्ति ही युद्ध के नतीजे नहीं तय करती। इतिहास ऐसी मिसालों से भरा पड़ा है जहां कमजोर पक्ष ने मजबूत प्रतिद्वंद्वी को धूल चटा दी। पर्वतीय रणक्षेत्र में भारत दुनिया की सबसे अनुभवी सेना वाला देश है। भारत की मजबूत वायु सेना और थल सेना को देखते हुए चीन ने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तिकड़मों का सहारा लिया है। भारत की मुख्य कमजोरी यही है कि यहां राजनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व के स्तर पर जोखिम को लेकर बहुत सोच-विचार होता है, फिर भी इससे इन्कार नहीं कि क्वाड जैसे संगठन से मिली सामरिक बढ़त विस्तारवादी चीन को दबाव में ला सकती है।
क्वाड के सदस्य चीन की लगाम कसने में सक्षम हो सकते हैं
चूंकि बाइडन चीन को लेकर सामरिक स्पष्टता तय करने में लगे हैं तो क्वाड उनकी हिंद-प्रशांत नीति का केंद्र बन सकता है। सैन्य, आर्थिक और तकनीकी मोर्चों पर सहयोग बढ़ाकर क्वाड के सदस्य चीन की लगाम कसने में सक्षम हो सकते हैं। परस्पर हितों को लेकर क्वाड देशों के साथ घनिष्ठता से काम करके भारत अपनी आर्थिक एवं सैन्य क्षमता से कहीं बढ़कर प्रहार करने में सक्षम हो सकेगा।
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