सम्पादकीय

गैलीलियो के बहाने कहानी उनकी, जिन्‍हें चर्च ने सच बोलने के लिए जिंदा जलाया, जेल में डाला

Shiddhant Shriwas
22 Jun 2021 10:40 AM GMT
गैलीलियो के बहाने कहानी उनकी, जिन्‍हें चर्च ने सच बोलने के लिए जिंदा जलाया, जेल में डाला
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चर्च और पोप के लाख चाहने के बावजूद वो गैलीलियो की विरासत को मिटा नहीं पाए. आज इतिहास पढ़ते हुए हम गैलीलियो को प्‍यार और आदर से याद करते हैं और पोप को उस डरावने दैत्‍य की तरह, जिसे ज्ञान-विज्ञान से डर लगता था. जाहिर है, गुलामी की सबसे बड़ी खाद अज्ञानता ही तो है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज गैलीलियो गैलीली का जन्‍मदिन है. वही 16वीं शताब्‍दी के महान इतालवी खगोलशास्‍त्री, जिन्‍होंने पहली बार ये बताया कि पृथ्‍वी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाती है. आज यह कोई रहस्‍य नहीं कि पृथ्‍वी गोल है और वह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है. चंद्रमा पृथ्‍वी का उपग्रह है और वह पृथ्‍वी की परिक्रमा करता है. लेकिन आपको आश्‍चर्य होगा यह जानकर कि पहली बार विज्ञान के इस सत्‍य को खोजने और बताने वाले शख्‍स को किस-किस तरह का उत्‍पीड़न नहीं झेलना पड़ा.

गैलीलियो की बात रोमन चर्च और पदरियों को नागवार गुजरी. उसकी वजह भी थी. बाइबिल में तो लिखा था कि पृथ्‍वी ही अंतरिक्ष का केंद्र है और सूर्य पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगाता है. तब लोगों के लिए तर्क और विज्ञान का कोई अर्थ नहीं था. बाइबिल में लिखी बातें ही मानो अंतिम सत्‍य थीं. धर्म के ठेकेदार ही समाज को पूरी तरह नियंत्रित और संचालित करते थे. गौलीलियो जो कह रहे थे, वो अगर सच है तो इसका अर्थ था कि बाइबिल में झूठ लिखा है. पोप और पादरी जनता को जो बताते हैं, वो झूठ है.
धर्म को सत्‍य साबित करने के लिए विज्ञान को झूठ बताना जरूरी था. गैलीलियो को गलत साबित करना और यह सच कहने के लिए उसे सजा देना जरूरी था.
कहानी जर्दानो ब्रूनो की
लेकिन गैलीलियो की कहानी में और भीतर घुसने से पहले एक और कहानी सुनानी जरूरी है- गैलीलियो से पहले जन्‍मे एक दूसरे इतालवी भौतिकशास्‍त्री और खगोलशास्‍त्री जर्दानो ब्रूनो की कहानी.

जर्दानो ब्रूनो (फोटो: विकीपीडिया)
ब्रूनो का जन्‍म सन् 1548 में इटली में हुआ था. शुरू से ही तार्किक और व्रिदोही स्‍वभाव के ब्रूनो ने 17 साल की उम्र तक आते-आते वो तमाम किताबें खोज-खोजकर पढ़नी शुरू कर दी थीं जो रोमन कैथलिक साम्राज्‍य में प्रतिबंधित थीं. विज्ञान प्रतिबंधित था, धर्म और ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर प्रश्‍न करने और उसकी तार्किक व्‍याख्‍या करने वाली फिलॉसफी की किताबें प्रतिबंधित थीं. ब्रूनो छिप-छिपकर वो सारी किताबें पढ़ते रहे. दर्शनशास्‍त्र पढ़ने और कविताएं लिखने के अलावा खगोलशास्‍त्र में भी उनकी विशेष दिलचस्‍पी थी.
ब्रूनो और गैलीलियो समेत अंतरिक्षविज्ञान में रुचि रखने वाले उस वक्‍त के तमाम खगोलशास्त्रियों को ऑब्‍जवेशनल एस्‍ट्रोनॉमर कहा जाता है. 15वीं सदी में खगोल विज्ञान उस तरह विकसित नहीं हुआ था और न ही आज की तरह इतने उपकरण, संसाधन और मशीनें थीं, जिनसे ग्रह-नक्षत्रों को करीब से देखा जा सकता और गणनाएं की जा सकतीं. एक दूरबीन की मदद से जर्दानो ब्रूनो पूरी-पूरी रात चांद-सितारों को देखते और उनकी गति की गणना करते.
लगातार कई वर्षों तक सूर्य, चंद्रमा और पृथ्‍वी की गति की गणना कर रहे ब्रूनो को समझ में आया कि इन सभी ग्रह-नक्षत्रों के बारे में अब तक जो भी बातें कही गई थीं, वह सत्‍य से कोसों दूर है. पृथ्‍वी अंतरिक्ष का केंद्र नहीं है. पृथ्‍वी चपटी भी नहीं है. पृथ्‍वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है और चंद्रमा पृथ्‍वी के चारों ओर और उसी वजह से धरती पर दिन-रात होते हैं और मौसम बदलते हैं. सूर्य एक तारा है, पृथ्‍वी ग्रह है और चंद्रमा उसका उपग्रह. ऐसी तमाम बातें थीं, जिन पर जर्दानो ब्रूनो की वो किताब रौशनी डाल रही थी, जिसे वे छिप-छिपकर लिख रहे थे.
निकोलाई कोपरनिकस (फोटो: विकीपीडिया)

हालांकि ये खेाज करने वाले खुद ब्रूनो भी पहले नहीं थे. ब्रूनो से पहले पोलैंड में जन्‍मे एक और खगोलशास्‍त्री निकोलाई कोपरनिकस इन बातों की खोज कर चुके थे. उनकी किताब भी कैथलिक रोम में प्रतिबंधित थी, लेकिन एक दिन वो किताब किसी तरह 15 साल के ब्रूनो के हाथ लग गई और वहीं से खगोलशास्‍त्र और गणित में ब्रूनो की रुचि पैदा हुई.
ब्रूनो दरअसल कोपरनिकस के सिद्धांतों और खोज का समर्थन कर रहे थे. लेकिन वो समाज और सत्‍ता इतनी कुंदजेहन और बंद थी कि वहां विज्ञान के रास्‍ते पर चलने और वैज्ञानिक बात कहने की कीमत बहुत बड़ी थी. आखिरकार जर्दानो ब्रूनो को भी वह कीमत चुकानी पड़ी.
चर्च ने धर्म और ईश्‍वर के आदेश का उल्‍लंघन करने के लिए जर्दानो ब्रूनो पर मुकदमा चलाया और उन्‍हें मृत्‍युदंड की सजा सुनाई गई. इतिहास की किताबों में उस दिन का विस्‍तृत उल्‍लेख मिलता है, जिस दिन जर्दानो ब्रूनो को मौत की सजा दी गई. उसे सलीब पर नहीं टांगा गया था, न ही गर्दन काटी गई थी और न ही सुकरात की तरह जहर का प्‍याला पिलाया गया था. जर्दानो ब्रूनो को सरेआम रोम के चौराहे पर भरी भीड़ के सामने जिंदा जलाया गया था. चर्च चाहता था कि मौत की यह सजा एक नजीर हो कि इसके बाद कोई भी चर्च और बाइबिल के खिलाफ जाने की हिम्‍मत न करे.
जब जर्दानो को जिंदा जलाया जा रहा था तो रोम की सड़कें चर्च के विशालकाय घंटों की आवाज से गूंज रही थी ताकि उसकी चीखें लोगों के कानों तक न पहुंचने पाएं.

गैलीलियो की वापसी
जर्दानो ब्रूनो के बाद गैलीलियो दूसरे ऐसे खगोलशास्‍त्री थे, जिन्‍होंने छिप-छिपकर कोपरनिकस और जर्दानो ब्रूनो की किताब पढ़ी थी और खुद भी कई वर्षों तक दूरबीन की मदद से अंतरिक्ष का अध्‍ययन करते रहे थे. आखिरकार गैलीलियो को भी अपने पूर्वज खगोलशास्त्रियों की बात ही सही लगी. उन्‍होंने इस विज्ञान को और आगे बढ़ाया, लेकिन गैलीलियो के साथ भी वही हुआ, जो उनके पूर्ववर्तियों के साथ हुआ था.
चर्च ने गैलीलियो को बंदी बना लिया. गैलीलियो के सामने चर्च ने एक शर्त रखी. अगर वो सार्वजनिक रूप से चर्च और ईश्‍वर की नाफरमानी करने के लिए माफी मांग ले तो उसे आजाद किया जा सकता है. वरना बाकियों की तरह उसे मृत्‍युदंड दिया जाएगा.

गैलीलियो ब्रूनो का हश्र जानते थे. आखिरकार उन्‍होंने माफी मांगने का फैसला किया. गैलीलियो ने भरे चर्च में सबके सामने अपनी कही सारी वैज्ञानिक बातों को झूठ कहते हुए ईश्‍वर की सत्‍ता का उल्‍लंघन करने के लिए माफी मांग ली, लेकिन चर्च ने उन्‍हें धोखा दिया. गैलीलियो को मृत्‍युदंड तो नहीं दिया, लेकिन माफी मांगने के बाद भी उन्‍हें आजाद नहीं किया. चर्च ने गैलीलियो को कैद कर दिया.
ये कैद एक तरह का हाउस अरेस्‍ट था. न वो कहीं जा सकते थे, न कोई उनके पास आ सकता था. लेकिन इसी दौरान गैलीलियो ने अपनी सबसे महत्‍वपूर्ण किताब लिखी- टू न्‍यू साइंस. इस किताब में उन्‍होंने अपने 40 साल के काम और अनुभवों को एक जगह संकलित किया है. यह किताब चोरी से इटली से हॉलैंड (अब नीदरलैंड) पहुंचाई गई और वहीं पर छपी. खुद आइंस्‍टीन गैलीलियो की इस किताब के बहुत बड़े मुरीद थे.
8 जनवरी, 1642 को कैद में रहते हुए ही गैलीलियो की मृत्‍यु हो गई. चूंकि चर्च और पोप तो गैलीलियो से वैसे भी नफरत करते थे, इसलिए उन्‍होंने उन्‍हें यूं ही आनन-फानन में दफना दिया. उसके तकरीबन 100 साल बाद 1737 में गैलीलियो को वहां से निकालकर बासिलिया में बाकायदा पूरे सम्‍मान के साथ दफन किया गया और वहां एक मॉन्‍यूमेंट बनाया गया. उन्‍हें नई जगह दफनाने से पहले उनकी देह के बचे रह गए अवशेषों में से एक दांत को सुरक्षित रख लिया गया. वह दांत अब फ्लोरेंस, इटली के गैलीलियो संग्रहालय म्‍यूजो गैलीलियो में रखा है.
चर्च और पोप के लाख चाहने के बावजूद वो गैलीलियो की विरासत को मिटा नहीं पाए. आज इतिहास पढ़ते हुए हम गैलीलियो को प्‍यार और आदर से याद करते हैं और पोप को उस डरावने दैत्‍य की तरह, जिसे ज्ञान-विज्ञान से हमेशा डर लगता था. जाहिर है, गुलामी की सबसे बड़ी खाद अज्ञानता ही तो है.
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