सम्पादकीय

2015 की ईरान न्यूक्लियर डील गले की फांस, ट्रम्प की नीति और अमेरिका के बैकफुट पर जाने की कहानी

Rani Sahu
4 Dec 2021 9:36 AM GMT
2015 की ईरान न्यूक्लियर डील गले की फांस, ट्रम्प की नीति और अमेरिका के बैकफुट पर जाने की कहानी
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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ईरान न्यूक्लियर समझौते से बाहर आना शीत युद्ध के बाद के युग में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सबसे खराब फैसला रहा

थाॅमस एल. फ्रीडमैनअमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का ईरान न्यूक्लियर समझौते से बाहर आना शीत युद्ध के बाद के युग में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सबसे खराब फैसला रहा। पर सिर्फ मेरे शब्दों पर न जाएं। जब न्यूक्लियर समझौता हो रहा था, (2015) तो इजरायल के रक्षा मंत्री मोशे यालों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। पर पिछले हफ्ते वियना में हुए सम्मेलन में उन्होंने कहा, 'जितनी बुरी वह डील थी, उससे ज्यादा बुरा था इससे बाहर निकलना।' यालोन ने इसे पिछले दशक की मुख्य गलती बताया।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने बताया कि ईरान ने समृद्ध यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड का स्टॉक कर रखा है, स्वतंत्र परमाणु विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार यह एक परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त वेपन ग्रेड यूरेनियम का तीन हफ्ते मेंं उत्पादन कर सकता है। ट्रम्प के ईरान समझौते से बाहर निकलने तक एक न्यूक्लियर बम बनाने के लिए पर्याप्त विखंडनीय सामग्री (फिजाइल मटेरियल) बनाने में एक साल का वक्त लगता, और ईरान उस बफर को 15 साल तक बनाए रखने पर राजी हो गया था, पर अब यह चंद हफ्तों में ही हो सकता है।
हालांकि अमेरिकी अधिकारियों को लगता है कि इस्तेमाल के लिए तैयार वॉरहेड बनाने में ईरान को डेड़-दो साल लगेंगे। पर ये झूठा दिलासा है। पांच महीने के गतिरोध के बाद सोमवार को वियना में समझौते को पुनर्जीवित करने की दिशा में ईरान, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन के बीच संयुक्त व्यापक कार्य योजना पर बात हुई, जबकि अमेरिका दूरदर्शक बना रहा।
ईरान की नई गैर-समझौतावादी सरकार चाहती है कि अमेरिका और यूरोपियन संघ सिर्फ न्यूक्लियर गतिविधियों से संबंधित नहीं बल्कि उसके मानवाधिकार उल्लंघनों से जुड़े सारे वित्तीय प्रतिबंध हटाए। ईरान ये भी सुनिश्चित करना चाहता है कि अगर वह समझौते की पहले जैसी स्थिति बहाल करता है और ट्रम्प के जाने के बाद से बढ़ाई विखंडनीय सामग्री को खत्म करता है तो अगले रिपब्लिकन अमेरिकी राष्ट्रपति इसे नहीं तोड़ेंगे। ये मांगें पूरी नहीं की जा सकती।
ईरानी वार्ताकार ये साबित करना चाह रहे हैं कि वह पहले वालों की तुलना में अच्छी डील कर सकते हैं क्योंकि उनके पास फिजाइल मटेरियल है। पर रुकिए मैंने ईरानी वार्ताकारों के चेहरे पर भी पसीना देखा है। आखिरकार ईरान के लोग क्या कहेंगे अगर शासकों को उन्हें कहना पड़े कि कड़े प्रतिबंधों के साए में तीन साल गुजारने के बाद अब वे और अंतहीन प्रतिबंधों का इंतजार कर रहे हैं।
निश्चित रूप से चीन ईरान से कुछ तेल खरीद लेगा ताकि उसका काम चलता रहे। पर जलवायु परिवर्तन के चलते गंभीर रूप से पानी की समस्या झेल रहे ईरान में अगर शासक प्रतिबंध खत्म करने की दिशा में वार्ता नहीं करेंगे तो ईरान की सड़कों पर किसी भी दिन आक्रोश फूट पड़ेगा।
सालों से इजरायल के लोग, अमेरिकी राष्ट्रपतियों को ये कहते हुए सुनते आ रहे हैं कि वे ईरान को बम नहीं गिराने देंगे। पहले उन्होंने ट्रम्प के समझौते से बाहर आने और प्रतिबंधों को फिर से लागू करने पर जश्न मनाया। उन्हें लगा कि यह ईरान के बम हासिल करने के प्रयास को कमजोर करेगा। पर ऐसा हुआ नहीं। ईरानी नेता चीन के पास गए और तेल बेचा और इससे अपने यूरेनियम भंडार बढ़ाने लगे।
आखिर में ट्रम्प ने ये हालात बाइडेन के हवाले कर दिए। पर बाइडेन ने भी उसे अच्छी तरह नहीं संभाला।। ट्रम्प के प्रतिबंधों को रद्द करने के लिए तुरंत कदम उठाने और समझौता बहाल करने के बजाय वह ईरानियों के साथ डिप्लोमेटिक लड़ाई में उलझ गए। और मध्यपूर्व से बाहर निकलने पर सारा ध्यान लगाने के साथ ही बाइडेन ने इरानियों के मन में डर पैदा नहीं किया। बाइडेन को डर है कि ईरान के खिलाफ किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई के संकेत से गैसोलीन की कीमत क्रिसमत तक 10 डॉलर प्रति गैलन तक भी जा सकती है। बहरहाल अनिश्चितता बनी हुई है।
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