सम्पादकीय

सीता वनवास की कलंक कथा एक, कथाएं अनेक !

Rani Sahu
13 Oct 2021 8:11 AM GMT
सीता वनवास की कलंक कथा एक, कथाएं अनेक !
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देश में राम विकल्पहीन हैं और रामकथाएं अनेक. अर्थात राम तो हर जगह मौजूद हैं

शंभूनाथ शुक्ल देश में राम विकल्पहीन हैं और रामकथाएं अनेक. अर्थात राम तो हर जगह मौजूद हैं पर उनके वर्णन के तरीके भिन्न-भिन्न हैं. फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि मूल कथा ऋषि वाल्मीकि द्वारा वर्णित रामायण ही हैं. सब में रूपक वहीं से लिए गए हैं. राम का बाना तो अलग-अलग है पर न तो राम बदले न उनका देश न उनका उद्देश्य. इसीलिए इस देश में राम ही सब में समाए हैं.

पूरब हो या पश्चिम या उत्तर अथवा दक्षिण, सब जगह राम हैं और सब जगह रावण भी. राम जन्म ही लेते हैं, रावण के वध के लिए. जितनी भी राम कथाएं हैं, सब वाल्मीकि रामायण से प्रेरित हैं. रामायण के बाद दसवीं शताब्दी में कंबन ने रामायण महाकाव्य लिखा, जो दक्षिण में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ.

ईसा के 600 वर्ष पूर्व लिखी गई रामायण?

माना जाता है कि त्रेता युग में कोशल नरेश दशरथ के घर राम ने जन्म लिया था. कुछ लोग कहते हैं कि ऋषि वाल्मीकि ने ईसा के 600 वर्ष पूर्व रामायण लिखी थी. महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है. यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है. अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व की होनी चाहिए. भाषा-शैली से भी यह ग्रंथ पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिए. रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था. अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु के अवतार थे. कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादास्पद है. छह सौ वर्ष ईसा पूर्व से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं, जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है.

सबने अपने समय के अनुरूप गाया राम चरित

कई चीज़ें हर रामायण में भिन्न हैं. उदाहरण के लिए इस समय सर्वाधिक प्रचिलित तुलसी की रामायण- राम चरित मानस में अग्नि परीक्षा और सीता वनवास प्रसंग नहीं है. लगता है तुलसी उससे बच कर निकल गए. जबकि कंबन ने अपनी तमिल रामायण में इन दोनों प्रसंगों के लिए राम की आलोचना की है. इन दोनों प्रसंगों से यह तो पता ही चलता है कि महर्षि वाल्मीकि ने उस समय की देश-काल परिस्थियियों के अनुसार राम कथा लिखी, तो परवर्ती रचनाकारों ने अपने समय के आदर्शों को लिया. अब इतना तो तय ही है कि तुलसी का समय आते-आते ये प्रसंग समाज में अमान्य हो गए थे, इसीलिए तुलसी इनसे बचे.

सीता वनवास का कलंक

चौदहवीं सदी में पूर्वी भारत में शंकरदेव ने असमी भाषा में रामायण लिखी. उसके भी कुछ प्रसंग भिन्न हैं. भारत के किसी भी कोने में लोक मानस ने राम को सीता वनवास के लिए माफ़ नहीं किया. बौद्ध जातकों और जैन परंपरा की रामायण विमल सूरि कृत पउम चरिउ (300-400ई.) में राम की आलोचना है. डॉक्टर रमानाथ त्रिवेदी ने लिखा है कि वाल्मीकि-रामायण में सीता के चरित्र पर राम ने संदेह नहीं किया. संदेह का आरंभ जैन राम-कथाओं से होता है. "पउम चरिउ" में वर्णित है कि नागरिकों ने राम से भेंट कर सीता के कलंक की बात कही. राम ने लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को वन में छोड़ आएं. लक्ष्मण तैयार नहीं हुए तो राम ने यह कार्य अपने सेनापति से करवाया. राम को सीता के चरित्र पर संदेह हुआ, इसे युक्ति-संग बनाने के लिए रावण के चित्र की कल्पना हुई. हरिभद्र (आठवीं शती) के उपदेश-पद में इसका प्राचीनतम उल्लेख है. सीता की ईर्ष्यालु सौतों ने सीता से रावण के चरणों का चित्र बनवाया, फिर उसे राम को दिखाया. राम ने उपेक्षा की तो सौतों ने दासियों के द्वारा जनता में प्रचार करा दिया. राम गुप्त-वेश धारण कर निकले, उन्हें सीता के कलंक के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने सेनापति द्वारा सीता का त्याग करा दिया. हेमचन्द्र की जैन रामायण में भी इस प्रसंग का अनुसरण है. इसमें सौतों की संख्या तीन बतायी गयी है.

रावण का चित्र बनाने की चमत्कारिक घटना जनता को सहज स्वीकार्य हो गई. किंतु, जनता को यह स्वीकार न था कि एक पत्नी-व्रत-धारी राम की कई पत्नियां दिखायी जातीं. आगे चलकर चित्र बनाने का आग्रह करने वाली स्त्रियां सौत नहीं कुछ और दिखायी गईं. अब दो दृष्टियों से अध्ययन करना होगा –

1. चित्र बनाने का आग्रह करने वाली कौन है, तथा

2. चित्र बनाने का आधार क्या है?

आनंद-रामायण में कैकेयी ने रावण का चित्र बनाने का आग्रह किया. सीता ने रावण के पैर का अंगूठा देखा था, उसे ही उन्होंने दीवार पर बनाया. कृत्तिवासी बांग्ला-रामायण में सखियों के कहने पर सीता ने फर्श पर रावण का चित्र बनाया. बांग्ला भाषा की ही चन्द्रावती-रामायण में कैकेयी की पुत्री कुकुआ सीता से ताल-पंख पर रावण का चित्र बनवाती है. इस प्रकार बांग्ला रामायणों में सौतेली सास-बहू या ननद-भाभी का विवाद चल पड़ा. माड़िया गौड़ आदिवासियों की कथा में ननद के कहने पर सीता गोबर से चित्र बनाती है.

गुरु गोविंद सिंह की रामायण में सखियां दीवार पर चित्र बनवाती हैं. राम को संदेह होता है और सीता शपथपूर्वक धरती में समा जाती हैं. कश्मीरी रामायण में चित्र बनवाने वाली छोटी ननद है. लक्ष्मण सीता को वन-प्रदेश में ले जाते हैं. सीता सो जाती हैं तो जल-भरा लोटा टांगकर लक्ष्मण लौट जाते हैं. एक बुंदेलखंडी लोकगीत में भी ऐसा है. कई लोकवार्ताओं में भी चित्र-वृत्तांत है. यह प्रसंग पूरे देश और दक्षिण-पूर्वी एशिया में प्रचारित रहा. इसका विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है-

1. चित्र बनाने वाली सौत, सखी, कैकेयी, कैकेयी-पुत्री, कोई ननद, रावण-पुत्री या कोई राक्षसी बतायी गई.

2. चित्र का आधार रहा फर्श, ताल-पंख, दीवार, केले का पत्ता, थाली आदि.

3. चित्र बनाया गया पूरे शरीर, चरण या अंगूठे का.

4. विदेशी राम कथाओं में यह भी दिखाया गया कि राम के आदेश पर लक्ष्मण सीता का वध करने वन में ले गए, किंतु वे किसी पशु (कुत्ता, बकरी या मृग) को मारकर उसका रक्त या कोई अंग राम को दिखाने के लिए ले आए. आश्चर्य है कि बौद्ध-धर्म प्रभावित विदेशी रामकथाओं में ऐसा रक्तपात क्यों दिखाया गया? वैसे आनंद-रामायण में राम लक्ष्मण से सीता की दक्षिण भुजा काटने के लिए कहते हैं, क्योंकि इसी से उन्होंने रावण का चित्र बनाया था.

आनंद-रामायण में सीता-निर्वासन का एक अनोखा कारण खोजा गया. राम गर्भवती सीता के प्रति काम-भाव रखते हैं, इसलिए उन्हें आश्रम भेजा गया. सीता अपने सत्व रूप में, राम में ही समाहित रहीं, उनका रज-तम रूप ही वनवास भोगता है. प्रकारांतर से यह अध्यात्म-रामायण वाली छाया-सीता मानी जा सकती है.

अभी तक सीता-निर्वासन के जिन कारणों की चर्चा की गयी, उनमें निम्न दृष्टियाँ थीं-

1. सीता-निर्वासन का मनोवैज्ञानिक आधार खोजा गया कि उन्होंने अपहर्ता रावण का चित्र बनाया, इससे राम को उनके चरित्र पर संदेह हुआ.

2. राम एक लोकप्रिय शासक थे. उन्होंने धोबी जैसे एक सामान्य नागरिक की भावना का समादर किया, ऐसा दिखाना था.

3. राम के चरित्र पर कलंक न रह जाए, इसके लिए कारण गढ़े गये कि तारा-मंदोदरी ने शाप दिया था, देवता राम को स्वर्ग लौटाना चाहते थे, या राम पिता की आयु को भोगते हुए सीता के साथ नहीं रहना चाहते थे, या राम गर्भवती सीता के प्रति काम-भाव रखते हैं, इसलिए साथ नहीं रखना चाहते.

राम की बहन की कथा

दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के अनुसार भगवान श्री राम की एक बड़ी बहन भी थीं, जिनका नाम शांता था. शांता के बारे में भी कई कहानियां मिलती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं. एक कथा के अनुसार रावण को अपने पितामह ब्रह्मा से पता चला कि उसकी मृत्यु कौशल्या और दशरथ के यहां जन्में दिव्य बालक के हाथों होगी इसलिये रावण ने कौशल्या को विवाह पूर्व ही मार डालने की योजना बनाई. उसने कौशल्या को अगवा कर एक डिब्बे में बंद कर सरयू नदी में बहा दिया उधर विधाता भी अपना खेल रच रहा था, दशरथ शिकार करके लौट रहे थे. उनकी नजर रावण के भेजे राक्षसों के इस कृत्य पर पड़ गई, लेकिन जब तक दशरथ वहां पहुंचते मायावी राक्षस अपना काम करके जा चुके थे. राजा दशरथ अब तक नहीं जानते थे कि डिब्बे में कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या है. उन्हें तो यही आभास था कि हो न हो किसी का जीवन खतरे में है. राजा दशरथ बिना विचारे ही नदी में कूद गये और डिब्बे की तलाश में लग गए. कुछ शिकार के कारण और कुछ नदी में तैरने के कारण वे बहुत थक गये थे यहां तक उनके खुद के प्राणों पर संकट आ चुका था वो तो अच्छा हुआ कि जटायु ने उन्हें डूबने से बचा लिया और डिब्बे को खोजने में उनकी मदद की. तब डिब्बे में बंद मूर्छित कौशल्या को देखकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा. देवर्षि नारद ने कौशल्या और दशरथ का गंधर्व विवाह संपन्न करवाया. अब विवाह हो गया तो कुछ समय पश्चात उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया, लेकिन यह कन्या दिव्यांग थी. उपचार की लाख कोशिशों के बाद समाधान नहीं निकला तो पता चला कि इसका कारण राजा दशरथ और कौशल्या का गौत्र एक ही था इसी कारण ऐसा हुआ. समाधान निकाला गया कि कन्या के माता-पिता बदल दिये जाएं यानि कोई इसे अपनी दत्तक पुत्री बना ले तो इसके स्वस्थ होने की संभावना है. ऐसे में अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी ने शांता को अपनी पुत्री स्वीकार कर लिया और वह स्वस्थ हो गई. युवा होने के बाद ऋंग ऋषि से शांता का विवाह करवाया गया.

एक अन्य कथा के अनुसार राजा कौशल्या की एक बहन थी वर्षिणी जिनका विवाह राजा रोमपाद के साथ हुआ था, लेकिन उनके यहां कोई संतान नहीं थी. वहीं राजा दशरथ और कौशल्या की एक पुत्री थी जिसका नाम था शांता वह बहुत ही गुणवान और हर कला में निपुण थी. एक बार राजा रोमपाद और वर्षिणी राजा दशरथ के यहां आये हुए थे. वर्षिणी ने हंसी-हंसी में ही कह दिया कि काश मेरे यहां भी शांता जैसी संतान होती बस यह सुनते ही राजा दशरथ उन्हें शांता को गोद देने का वचन दे बैठे. इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं. राजा रोमपाद का शांता से विशेष लगाव हो गया, वह अपनी पुत्री को बहुत चाहते थे. एक बार कोई ब्राह्मण द्वार पर आया, लेकिन वह अपनी पुत्री के साथ वार्तालाप करते रहे और ब्राह्मण खाली हाथ लौट गया. ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था. अपने भक्त के अनादर से इंद्र देव कुपित हो गए और अंगदेश में अकाल के हालात पैदा हो गये. तब राजा ने विभंडक ऋषि के पुत्र ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के लिये बुलवाया. यज्ञ के फलस्वरुप भारी बारिश हुई और राज्य धन-धान्य से फलने-फूलने लगा. ऐसे में राजा रोमपाद और वर्षिणी ने अपनी पुत्री का विवाह ऋंग ऋषि के साथ कर दिया.

एक अन्य लोककथा के अनुसार यह भी माना जाता है कि जब शांता का जन्म हुआ तो अयोध्या में 12 वर्षों तक भारी अकाल पड़ा. राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शांता के कारण ही यह अकाल पड़ा हुआ है. ऐसे में राजा दशरथ ने नि:संतान वर्षिणी को अपनी पुत्री शांता दान में दे दिया. कहीं फिर अयोध्या अकालग्रस्त न हो जाये इस डर से शांता को कभी अयोध्या वापस बुलाया भी नहीं गया. वहीं एक और लोककथा मिलती है जिसमें यह बताया जाता है कि राजा दशरथ ने शांता को सिर्फ इसलिये गोद दे दिया था, चूंकि वह लड़की थी और राज्य की उत्तराधिकारी नहीं बन सकती थीं.

कुछ कहानियों में भगवान राम की दो बहनों के होने का जिक्र भी है, जिनमें एक का नाम शांता तो एक का कुतबी बताया गया है.लेकिन ये सब क्षेपक हैं, जिन्हें बाद में लोगों ने अपनी-अपनी सुविधा से जोड़ लिया. पर हर राम कथा में नायक राम ही हैं और खलनायक रावण. लोक के हित के लिए राम रावण का वध करते हैं और उसके छोटे भाई प्रजा वत्सल विभीषण को लंका का राज सौंपते हैं. राम का यही रूप पूज्य है. लोक में श्लाघ्य है.शंभूनाथ शुक्ल
देश में राम विकल्पहीन हैं और रामकथाएं अनेक. अर्थात राम तो हर जगह मौजूद हैं पर उनके वर्णन के तरीके भिन्न-भिन्न हैं. फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि मूल कथा ऋषि वाल्मीकि द्वारा वर्णित रामायण ही हैं. सब में रूपक वहीं से लिए गए हैं. राम का बाना तो अलग-अलग है पर न तो राम बदले न उनका देश न उनका उद्देश्य. इसीलिए इस देश में राम ही सब में समाए हैं.
पूरब हो या पश्चिम या उत्तर अथवा दक्षिण, सब जगह राम हैं और सब जगह रावण भी. राम जन्म ही लेते हैं, रावण के वध के लिए. जितनी भी राम कथाएं हैं, सब वाल्मीकि रामायण से प्रेरित हैं. रामायण के बाद दसवीं शताब्दी में कंबन ने रामायण महाकाव्य लिखा, जो दक्षिण में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ.
ईसा के 600 वर्ष पूर्व लिखी गई रामायण?
माना जाता है कि त्रेता युग में कोशल नरेश दशरथ के घर राम ने जन्म लिया था. कुछ लोग कहते हैं कि ऋषि वाल्मीकि ने ईसा के 600 वर्ष पूर्व रामायण लिखी थी. महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है. यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है. अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व की होनी चाहिए. भाषा-शैली से भी यह ग्रंथ पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिए. रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था. अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु के अवतार थे. कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादास्पद है. छह सौ वर्ष ईसा पूर्व से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं, जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है.
सबने अपने समय के अनुरूप गाया राम चरित
कई चीज़ें हर रामायण में भिन्न हैं. उदाहरण के लिए इस समय सर्वाधिक प्रचिलित तुलसी की रामायण- राम चरित मानस में अग्नि परीक्षा और सीता वनवास प्रसंग नहीं है. लगता है तुलसी उससे बच कर निकल गए. जबकि कंबन ने अपनी तमिल रामायण में इन दोनों प्रसंगों के लिए राम की आलोचना की है. इन दोनों प्रसंगों से यह तो पता ही चलता है कि महर्षि वाल्मीकि ने उस समय की देश-काल परिस्थियियों के अनुसार राम कथा लिखी, तो परवर्ती रचनाकारों ने अपने समय के आदर्शों को लिया. अब इतना तो तय ही है कि तुलसी का समय आते-आते ये प्रसंग समाज में अमान्य हो गए थे, इसीलिए तुलसी इनसे बचे.
सीता वनवास का कलंक
चौदहवीं सदी में पूर्वी भारत में शंकरदेव ने असमी भाषा में रामायण लिखी. उसके भी कुछ प्रसंग भिन्न हैं. भारत के किसी भी कोने में लोक मानस ने राम को सीता वनवास के लिए माफ़ नहीं किया. बौद्ध जातकों और जैन परंपरा की रामायण विमल सूरि कृत पउम चरिउ (300-400ई.) में राम की आलोचना है. डॉक्टर रमानाथ त्रिवेदी ने लिखा है कि वाल्मीकि-रामायण में सीता के चरित्र पर राम ने संदेह नहीं किया. संदेह का आरंभ जैन राम-कथाओं से होता है. "पउम चरिउ" में वर्णित है कि नागरिकों ने राम से भेंट कर सीता के कलंक की बात कही. राम ने लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को वन में छोड़ आएं. लक्ष्मण तैयार नहीं हुए तो राम ने यह कार्य अपने सेनापति से करवाया. राम को सीता के चरित्र पर संदेह हुआ, इसे युक्ति-संग बनाने के लिए रावण के चित्र की कल्पना हुई. हरिभद्र (आठवीं शती) के उपदेश-पद में इसका प्राचीनतम उल्लेख है. सीता की ईर्ष्यालु सौतों ने सीता से रावण के चरणों का चित्र बनवाया, फिर उसे राम को दिखाया. राम ने उपेक्षा की तो सौतों ने दासियों के द्वारा जनता में प्रचार करा दिया. राम गुप्त-वेश धारण कर निकले, उन्हें सीता के कलंक के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने सेनापति द्वारा सीता का त्याग करा दिया. हेमचन्द्र की जैन रामायण में भी इस प्रसंग का अनुसरण है. इसमें सौतों की संख्या तीन बतायी गयी है.
रावण का चित्र बनाने की चमत्कारिक घटना जनता को सहज स्वीकार्य हो गई. किंतु, जनता को यह स्वीकार न था कि एक पत्नी-व्रत-धारी राम की कई पत्नियां दिखायी जातीं. आगे चलकर चित्र बनाने का आग्रह करने वाली स्त्रियां सौत नहीं कुछ और दिखायी गईं. अब दो दृष्टियों से अध्ययन करना होगा –
1. चित्र बनाने का आग्रह करने वाली कौन है, तथा
2. चित्र बनाने का आधार क्या है?
आनंद-रामायण में कैकेयी ने रावण का चित्र बनाने का आग्रह किया. सीता ने रावण के पैर का अंगूठा देखा था, उसे ही उन्होंने दीवार पर बनाया. कृत्तिवासी बांग्ला-रामायण में सखियों के कहने पर सीता ने फर्श पर रावण का चित्र बनाया. बांग्ला भाषा की ही चन्द्रावती-रामायण में कैकेयी की पुत्री कुकुआ सीता से ताल-पंख पर रावण का चित्र बनवाती है. इस प्रकार बांग्ला रामायणों में सौतेली सास-बहू या ननद-भाभी का विवाद चल पड़ा. माड़िया गौड़ आदिवासियों की कथा में ननद के कहने पर सीता गोबर से चित्र बनाती है.
गुरु गोविंद सिंह की रामायण में सखियां दीवार पर चित्र बनवाती हैं. राम को संदेह होता है और सीता शपथपूर्वक धरती में समा जाती हैं. कश्मीरी रामायण में चित्र बनवाने वाली छोटी ननद है. लक्ष्मण सीता को वन-प्रदेश में ले जाते हैं. सीता सो जाती हैं तो जल-भरा लोटा टांगकर लक्ष्मण लौट जाते हैं. एक बुंदेलखंडी लोकगीत में भी ऐसा है. कई लोकवार्ताओं में भी चित्र-वृत्तांत है. यह प्रसंग पूरे देश और दक्षिण-पूर्वी एशिया में प्रचारित रहा. इसका विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है-
1. चित्र बनाने वाली सौत, सखी, कैकेयी, कैकेयी-पुत्री, कोई ननद, रावण-पुत्री या कोई राक्षसी बतायी गई.
2. चित्र का आधार रहा फर्श, ताल-पंख, दीवार, केले का पत्ता, थाली आदि.
3. चित्र बनाया गया पूरे शरीर, चरण या अंगूठे का.
4. विदेशी राम कथाओं में यह भी दिखाया गया कि राम के आदेश पर लक्ष्मण सीता का वध करने वन में ले गए, किंतु वे किसी पशु (कुत्ता, बकरी या मृग) को मारकर उसका रक्त या कोई अंग राम को दिखाने के लिए ले आए. आश्चर्य है कि बौद्ध-धर्म प्रभावित विदेशी रामकथाओं में ऐसा रक्तपात क्यों दिखाया गया? वैसे आनंद-रामायण में राम लक्ष्मण से सीता की दक्षिण भुजा काटने के लिए कहते हैं, क्योंकि इसी से उन्होंने रावण का चित्र बनाया था.
आनंद-रामायण में सीता-निर्वासन का एक अनोखा कारण खोजा गया. राम गर्भवती सीता के प्रति काम-भाव रखते हैं, इसलिए उन्हें आश्रम भेजा गया. सीता अपने सत्व रूप में, राम में ही समाहित रहीं, उनका रज-तम रूप ही वनवास भोगता है. प्रकारांतर से यह अध्यात्म-रामायण वाली छाया-सीता मानी जा सकती है.
अभी तक सीता-निर्वासन के जिन कारणों की चर्चा की गयी, उनमें निम्न दृष्टियाँ थीं-
1. सीता-निर्वासन का मनोवैज्ञानिक आधार खोजा गया कि उन्होंने अपहर्ता रावण का चित्र बनाया, इससे राम को उनके चरित्र पर संदेह हुआ.
2. राम एक लोकप्रिय शासक थे. उन्होंने धोबी जैसे एक सामान्य नागरिक की भावना का समादर किया, ऐसा दिखाना था.
3. राम के चरित्र पर कलंक न रह जाए, इसके लिए कारण गढ़े गये कि तारा-मंदोदरी ने शाप दिया था, देवता राम को स्वर्ग लौटाना चाहते थे, या राम पिता की आयु को भोगते हुए सीता के साथ नहीं रहना चाहते थे, या राम गर्भवती सीता के प्रति काम-भाव रखते हैं, इसलिए साथ नहीं रखना चाहते.
राम की बहन की कथा
दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के अनुसार भगवान श्री राम की एक बड़ी बहन भी थीं, जिनका नाम शांता था. शांता के बारे में भी कई कहानियां मिलती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं. एक कथा के अनुसार रावण को अपने पितामह ब्रह्मा से पता चला कि उसकी मृत्यु कौशल्या और दशरथ के यहां जन्में दिव्य बालक के हाथों होगी इसलिये रावण ने कौशल्या को विवाह पूर्व ही मार डालने की योजना बनाई. उसने कौशल्या को अगवा कर एक डिब्बे में बंद कर सरयू नदी में बहा दिया उधर विधाता भी अपना खेल रच रहा था, दशरथ शिकार करके लौट रहे थे. उनकी नजर रावण के भेजे राक्षसों के इस कृत्य पर पड़ गई, लेकिन जब तक दशरथ वहां पहुंचते मायावी राक्षस अपना काम करके जा चुके थे. राजा दशरथ अब तक नहीं जानते थे कि डिब्बे में कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या है. उन्हें तो यही आभास था कि हो न हो किसी का जीवन खतरे में है. राजा दशरथ बिना विचारे ही नदी में कूद गये और डिब्बे की तलाश में लग गए. कुछ शिकार के कारण और कुछ नदी में तैरने के कारण वे बहुत थक गये थे यहां तक उनके खुद के प्राणों पर संकट आ चुका था वो तो अच्छा हुआ कि जटायु ने उन्हें डूबने से बचा लिया और डिब्बे को खोजने में उनकी मदद की. तब डिब्बे में बंद मूर्छित कौशल्या को देखकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा. देवर्षि नारद ने कौशल्या और दशरथ का गंधर्व विवाह संपन्न करवाया. अब विवाह हो गया तो कुछ समय पश्चात उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया, लेकिन यह कन्या दिव्यांग थी. उपचार की लाख कोशिशों के बाद समाधान नहीं निकला तो पता चला कि इसका कारण राजा दशरथ और कौशल्या का गौत्र एक ही था इसी कारण ऐसा हुआ. समाधान निकाला गया कि कन्या के माता-पिता बदल दिये जाएं यानि कोई इसे अपनी दत्तक पुत्री बना ले तो इसके स्वस्थ होने की संभावना है. ऐसे में अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी ने शांता को अपनी पुत्री स्वीकार कर लिया और वह स्वस्थ हो गई. युवा होने के बाद ऋंग ऋषि से शांता का विवाह करवाया गया.
एक अन्य कथा के अनुसार राजा कौशल्या की एक बहन थी वर्षिणी जिनका विवाह राजा रोमपाद के साथ हुआ था, लेकिन उनके यहां कोई संतान नहीं थी. वहीं राजा दशरथ और कौशल्या की एक पुत्री थी जिसका नाम था शांता वह बहुत ही गुणवान और हर कला में निपुण थी. एक बार राजा रोमपाद और वर्षिणी राजा दशरथ के यहां आये हुए थे. वर्षिणी ने हंसी-हंसी में ही कह दिया कि काश मेरे यहां भी शांता जैसी संतान होती बस यह सुनते ही राजा दशरथ उन्हें शांता को गोद देने का वचन दे बैठे. इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं. राजा रोमपाद का शांता से विशेष लगाव हो गया, वह अपनी पुत्री को बहुत चाहते थे. एक बार कोई ब्राह्मण द्वार पर आया, लेकिन वह अपनी पुत्री के साथ वार्तालाप करते रहे और ब्राह्मण खाली हाथ लौट गया. ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था. अपने भक्त के अनादर से इंद्र देव कुपित हो गए और अंगदेश में अकाल के हालात पैदा हो गये. तब राजा ने विभंडक ऋषि के पुत्र ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के लिये बुलवाया. यज्ञ के फलस्वरुप भारी बारिश हुई और राज्य धन-धान्य से फलने-फूलने लगा. ऐसे में राजा रोमपाद और वर्षिणी ने अपनी पुत्री का विवाह ऋंग ऋषि के साथ कर दिया.
एक अन्य लोककथा के अनुसार यह भी माना जाता है कि जब शांता का जन्म हुआ तो अयोध्या में 12 वर्षों तक भारी अकाल पड़ा. राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शांता के कारण ही यह अकाल पड़ा हुआ है. ऐसे में राजा दशरथ ने नि:संतान वर्षिणी को अपनी पुत्री शांता दान में दे दिया. कहीं फिर अयोध्या अकालग्रस्त न हो जाये इस डर से शांता को कभी अयोध्या वापस बुलाया भी नहीं गया. वहीं एक और लोककथा मिलती है जिसमें यह बताया जाता है कि राजा दशरथ ने शांता को सिर्फ इसलिये गोद दे दिया था, चूंकि वह लड़की थी और राज्य की उत्तराधिकारी नहीं बन सकती थीं.
कुछ कहानियों में भगवान राम की दो बहनों के होने का जिक्र भी है, जिनमें एक का नाम शांता तो एक का कुतबी बताया गया है.लेकिन ये सब क्षेपक हैं, जिन्हें बाद में लोगों ने अपनी-अपनी सुविधा से जोड़ लिया. पर हर राम कथा में नायक राम ही हैं और खलनायक रावण. लोक के हित के लिए राम रावण का वध करते हैं और उसके छोटे भाई प्रजा वत्सल विभीषण को लंका का राज सौंपते हैं. राम का यही रूप पूज्य है. लोक में श्लाघ्य है.


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