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
धर्म का प्रयोग आज धर्म के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा देश की एकता व अखंडता को खंडित करने के लिए किया जा रहा है। शिक्षा जिसका शाब्दिक अर्थ है सीखना या सिखाना अर्थात अंदर से आगे बढ़ना है तथा किसी व्यक्ति या बालक की आंतरिक शक्तियों को विकसित करने का नाम ही शिक्षा है। इसी तरह धर्म का शाब्दिक अर्थ है धारण करना या जो सभी को धारण किए हुए हों। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध व जैन, यह सभी धर्म न होकर संप्रदाय या समुदाय हैं। देश में आज़ादी के दिनों में भी धर्म के ठेकेदारों ने देश को विभाजित करके ही सांस ली तथा अब भी धर्म की आड़ में संविधान का मुखौटा पहन कर यह लोग देश को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट कर अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में जुटे हुए हैं। सनातन धर्म जो विश्व का सबसे पुराना धर्म है, ने हमेशा सहिष्णुता व भाईचारे का पाठ पढ़ाया तथा सत्यम-शिवम-सुुंदरम को अपना आधार मान कर मानवता की अलख को जगाया। आज हमारे कुछ राजनेता भली-भांति समझकर नसमझ बने हुए हैं तथा जानते हुए भी धार्मिक उन्माद व हिंसा फैलाने से बाज़ नहीं आ रहे। धर्म की आड़ में ही हमारे देश का विभाजन हुआ तथा अब भी धर्म और मज़हब के नाम पर समय समय पर विभिन्न समुदायों में दंगे फसाद होते रहते हैं।
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