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Written by जनसत्ता: ब्रह्मांड अब केवल जिज्ञासा का विषय नहीं, बल्कि विज्ञान ने इसकी संभावनाओं को खंगालना शुरू कर दिया है। दुनिया अब दूसरे ग्रहों पर मानव बस्तियां बसाने की होड़ में है। सौरमंडल के ग्रहों में चंद्रमा पर संभावनाओं का काफी कुछ अध्ययन किया जा चुका है, मगर उसके बहुत सारे रहस्य अभी खुलने बाकी हैं। हालांकि मानव बस्तियां बसाने की दृष्टि से सबसे अनुकूल वातावरण वहीं का माना जाता है। इसी सिलसिले में दुनिया के अनेक देश अपने अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर भेजते रहते हैं।
पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा चंद्रयान-तीन
भारत ने भी इसी मकसद से चंद्र मिशन की शुरुआत की थी। इस क्रम में अभी चंद्रयान-तीन को चंद्रमा की तरफ रवाना कर दिया गया है। पांच अगस्त को यह यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा और आखिरी हफ्ते में उसके चंद्रमा की सतह पर उतरने की संभावना है। हालांकि चंद्रयान-तीन की रवानगी से पहले तरह-तरह की आशंकाएं जताई जा रही थीं, क्योंकि चंद्रयान-दो तकनीकी खामियों के चलते चंद्रमा की सतह पर उतर नहीं पाया था। उसे विफल मिशन माना गया। मगर इस तीसरे यान के पूरी तरह सफल होने का भरोसा जताया जा रहा है। पिछले यान में रह गई तकनीकी खामियों को इस बार सुधार दिया गया है, इसलिए इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिक अधिक निश्चिंत नजर आ रहे हैं।
दरअसल, अंतरिक्ष यानों को किसी ग्रह पर उतारना अनिश्चितताओं का खेल होता है। चंद्रयान का संपर्क धरती के कंप्यूटर से जरूर रहेगा, मगर लगभग चार लाख किलोमीटर दूर से उसे नियंत्रित करना संभव नहीं होगा। उसे अपनी कृत्रिम मेधा से ही स्थितियों और चंद्रमा की सतह आदि का आकलन करते हुए खुद स्थापित होना होगा। पिछली बार के मिशन को भी पूरी तरह विफल नहीं कहा जा सकता। दरअसल, उसके तीन हिस्से थे- आर्बिटर, लैंडर और रोवर। तकनीकी गड़बड़ी के चलते रोवर नहीं खुल पाया, जिसे चंद्रमा की सतह पर रेंगते हुए वहां की मिट्टी, पानी, खनिज आदि के बारे में अध्ययन करना था।
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उसका आर्बिटर अब भी चंद्रमा की कक्षा में चक्कर काट रहा है। इसलिए चंद्रयान-तीन में आर्बिटर नहीं भेजा गया है। सिर्फ रोवर और लैंडर भेजे गए हैं। हालांकि इस बार भारत ने चंद्रमा के जिस हिस्से को अध्ययन के लिए चुना है, वहां चुनौतियां अधिक हैं, मगर वहां संभावनाओं का आकाश बड़ा है। वहां खनिज, पानी और अन्य मानवीय जरूरतों से जुड़ी चीजों की संभावना अधिक है। इसलिए उस हिस्से में रोवर पहुंचता है, तो उसके जरिए किया गया अध्ययन अधिक उपयोगी साबित होगा।
रोवर दरअसल, एक छोटा-सा रोबोट है, जो चलते-फिरते चंद्रमा की सतह के नमूने लेकर उसका विश्लेषण करेगा और धरती तक उसके ब्योरे भेजेगा। चंद्रमा की सतह पर अपने यान उतारने में अभी तक दुनिया के कुछ ही देश कामयाब हो पाए हैं, जिनमें अमेरिका, रूस और चीन शामिल हैं। इस तरह भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में इन महाशक्तियों से कंधे से कंधा मिला कर खड़ा हो सकेगा। चंद्रयान की खासियत यह भी है कि यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार किया गया है।
वैसे भी अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण के मामले में भारत दुनिया के तमाम विकसित देशों को टक्कर दे रहा है और उसने अपनी तकनीक के बल पर सस्ती सेवाएं उपलब्ध कराने लगा है। चंद्रयान मिशन की कामयाबी अंतरिक्ष अध्ययन में एक नया कीर्तिमान रचेगी। देशों की ताकत केवल अर्थव्यवस्था, व्यापार और सामरिक शक्ति से नहीं आंकी जाती, उसकी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां भी इसका मानक होती हैं। भारत इस दिशा में कामयाबी हासिल कर रहा है।