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- हत्याओं का सिलसिला :...

कश्मीर में फिर से पहचान के आधार पर निशाना बनाने का जो दौर शुरू हुआ है, उसे विगत तीस वर्ष से जारी नरसंहार के ताजा पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए। कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर-कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुनकर मारना दरअसल बीती सदी के 90 के दशक की वापसी है। जिहादी आतंकवाद का वही तौर-तरीका, दुकानों और स्कूलों में घुसकर चयनित ढंग से सिखों सहित हिंदुओं की शिनाख्त कर उनकी निर्मम हत्या करना। उससे पहले ये अफवाहें फैलाना कि मारा गया आदमी मुखबिर था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा था या फिर संपत्ति के झगड़े के कारण उसे किसी अपने ने ही मारा है। और उसके बाद घोषित रूप से यह स्वीकार भी करना कि हमारा संगठन इस हत्याकांड की जिम्मेदारी लेता है। मक्खनलाल बिंदरू और सड़क किनारे गोलगप्पे बेचकर गुजारा करने वाले वीरेंद्र पासवान की हत्या के बाद आतंकी संगठन द रेजिस्टेंट फोर्स (टीआरएफ) ने दूसरे ही दिन इसकी जिम्मेदारी ले ली। उन्हें मारने की उसने बेतुकी और निराधार वजहें भी बताई।