सम्पादकीय

मोदी की अजेयता का रहस्य

Rani Sahu
14 May 2022 6:12 PM GMT
मोदी की अजेयता का रहस्य
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मैंने उन्हें पहली बार नजदीक से 24 जनवरी, 1992 को देखा था। वह जम्मू में पत्रकारों से अनौपचारिक बात कर रहे थे

शशि शेखर

मैंने उन्हें पहली बार नजदीक से 24 जनवरी, 1992 को देखा था। वह जम्मू में पत्रकारों से अनौपचारिक बात कर रहे थे। मुझे उनकी दृढ़ता, साफगोई और सटीक शब्दों के चयन ने प्रभावित किया था। उन दिनों वह 'महज' गुजरात, यानी एक प्रादेशिक इकाई के महासचिव थे, पर उनकी उपस्थिति सबसे बडे़ नेताओं के बीच दर्ज थी

वह नरेंद्र मोदी थे, मौजूदा प्रधानमंत्री।
इससे पहले नरेंद्र मोदी का नाम लालकृष्ण आडवाणी की 'राम-रथयात्रा' के दौरान चर्चा में आया था। इस बार वह पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष प्रोफेसर मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से कश्मीर के श्रीनगर स्थित लाल चौक तक की 'एकता यात्रा' के संयोजक थे। बताने की जरूरत नहीं, ये दोनों यात्राएं आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के लिए सत्तादायी जड़ी-बूटी साबित हुईं।
जम्मू से लौटने के बाद भी मन के एक कोने में उनकी छाप बनी रही। करीब 10 साल बाद उनका नाम अचानक फिर सुर्खियों में आया। इस बार भाजपा आलाकमान ने उन्हें केशुभाई पटेल की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री चुना था। 26 जनवरी, 2001 को आया जलजला केशुभाई के शासन की कलई खोल गया था। जिस दिन यह खबर आई, मेरे चैनल के सहयोगियों में चर्चा महज यह थी कि मोदी अभी तक किसी सरकारी पद पर नहीं रहे हैं। इस विकट वक्त में उन्हें मुख्यमंत्री का दायित्व देकर उनका भला किया गया है या बुरा? उन दिनों केशुभाई का कद बहुत बड़ा था। अंग्रेजी की कहावत का सहारा लें, तो नरेंद्र मोदी को उनके पांवों से बडे़ जूते थमा दिए गए थे। आकलनकर्ता आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे, पर मोदी चुपचाप काम में जुटे थे।
इतिहास बनाने वाली सफलताओं की शुरुआत ऐसे ही छोटे, पर सधे और सुविचारित कदमों से होती है।
अगले साल मुख्यमंत्री मोदी ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे तबाह हो चुके भुज और उसके आसपास के इलाके को पुन: मुख्यधारा में दौड़ने लायक बना दिया गया है। अगर आप आज कच्छ के रण से गुजरें, तो आपको नमक से सफेद हुई भुरभुरी बालू के बीच से गुजरती शानदार सड़कें, गांवों में बिजली के खंभे, पानी की टंकियां और अस्पताल दिखाई पड़ेंगे। यह आसान काम नहीं था, पर यदि मोदी आसान कामों में ही उलझे रहते, तो आज देश के प्रधानमंत्री नहीं होते।
उसी साल गुजरात में दंगे हो गए।
आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अहमदाबाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब 'राजधर्म' का पालन करने की नसीहत दी, तब बिना एक भी क्षण गंवाए मुख्यमंत्री मोदी अपना मुंह माइक्रोफोन के पास लाए और दृढ़ता से जवाब दिया- 'वही तो कर रहा हूं साहब'। उनके आलोचकों ने इसे 'दुस्साहस' साबित किया, पर मोदी जानते थे कि दोबारा ऐसा न हो, इसका इंतजाम उन्हीं को करना है। वह इसी मुहिम में बिना किसी शोर-शराबे के जुटे थे। यह ऐतिहासिक तथ्य है, इसके बाद नरेंद्र मोदी 12 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और इस दौरान एक भी दंगा नहीं हुआ। इस ऐतिहासिक तथ्य से कौन मुंह चुरा सकता है?
यह तभी हो सकता था, जब कानून-व्यवस्था के अनुपालनकर्ता किसी एक वर्ग के मोह में अंधे न हों। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी ने कल्याणकारी राज्य की स्थापना की हरचंद कोशिश की। सरकारी सुविधा और सहायता बिना किसी भेदभाव हर वर्ग तक समान भाव से पहुंची। इससे सभी तबकों में भरोसा कायम हुआ।
यह काम सरल नहीं था। इसकी शुरुआत सबसे दूर और सबसे निचली सीढ़ी पर बैठे व्यक्ति से की जानी थी। इसके लिए एक दिन उन्होंने गुजरात के मुख्य सचिव से पूछा कि आपने किस ताल्लुका से अपने करियर की शुरुआत की थी? मुख्य सचिव का जवाब मिलते ही उन्होंने तपाक से पूछा, क्या आपको मालूम है कि उस ताल्लुका की हालत कैसी है? आप तो मुख्य सचिव हो गए, पर वह ताल्लुका वहीं का वहीं पड़ा हुआ है। क्यों न आप उस तहसील को गोद लेकर उसका कायाकल्प करने की कोशिश करें? मुख्य सचिव द्वारा सहमति जताते ही उन्होंने सभी सचिवों को बुलाकर इस निर्देश को दोहराया। हर सचिव के हिस्से उसका पहला ताल्लुका आया। आज गुजरात में 33 जिले हैं। हो सकता है, उस वक्त कुछ कम रहे हों, पर अंकगणित का सहारा लें, तो मुख्य सचिव सहित 40 से अधिक सचिवों ने इस तरह हर जनपद की बेहतरी में सीधा योगदान किया।
मोदी आज प्रधानमंत्री हैं और इस नाते उनके प्रयोग की जमीन अब पूरा देश है। उन्होंने 112 जिलों में युवा कलक्टरों की तैनाती करवाकर उन्हें यह नेक काम सौंपा है। इन जिलों का चयन करने के लिए दो दर्जन से अधिक बिंदु बनाए गए, ताकि सर्वाधिक पिछडे़ स्थानों पर विकास की किरणें सबसे पहले पहुंच सकें। यह 'अंत्योदय' नहीं, तो और क्या है?
इस विवरण से आप समझ गए होंगे कि नरेंद्र मोदी की अजेयता का रहस्य क्या है? बतौर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री वह पिछले 21 वर्षों से सत्ता-सदन में हैं। अपने आप में यह अनोखा कीर्तिमान है।
अपने लंबे करियर में मुझे इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी प्रधानमंत्रियों को देखने, सुनने और समझने का मौका मिला है। सभी ने मुल्क की तरक्की में अपने-अपने हिसाब से योगदान किया, पर मुझे कहने में संकोच नहीं कि दृढ़ता और लक्ष्य के प्रति स्पष्टता का ऐसा मेल पहले मैंने कभी नहीं देखा। वह खुद गरीब परिवार में जन्मे, इसलिए गरीबी का दंश जानते हैं। संघ का कार्यकर्ता रहते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने के दौरान उन्हें समझने का मौका मिला कि सरकारी योजनाएं समूची नेकनीयती के बाद असफल क्यों हो जाती हैं? यही वजह है कि उनके फैसले संपूर्ण क्रियान्वयन के लिए होते हैं। समाज, सत्ता और व्यवस्था की गहरी समझ के कारण ही वे अब तक वर्जित रहे विषयों पर फैसले ले सके। सर्जिकल स्ट्राइक, अनुच्छेद-370, तीन तलाक, सीएए आदि इसके प्रमाण हैं।
इसी महीने वह अपने कार्यकाल का आठवां साल पूरा करने जा रहे हैं। हाल में हुए पांच राज्यों के चुनावी परिणाम साबित कर चुके हैं कि सियासी तौर पर वह चुनौती विहीन हैं। अगर सामाजिक और आर्थिक मामलों की बात करें, तो प्रधानमंत्री को यकीनन कुछ मोर्चों पर जूझना होगा। पिछले कुछ महीनों से देश में कभी भाषा, तो कभी मजहब के नाम पर अजनबी और आहत कर देने वाले स्वर उभरे हैं। इसी तरह कोरोना के साथ रूस-यूक्रेन युद्ध ने आर्थिक क्षेत्र में तमाम मुसीबतें खड़ी की हैं। साल के अंत में गुजरात और हिमाचल में चुनाव भी होने हैं। जाहिर है, हर बार की तरह हर निगाह उनकी तरफ है।
यकीनन, प्रधान सेवक इन चुनौतियों को जानते हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने लक्ष्यों में सबका साथ, सबका विकास के साथ 'सबका विश्वास' जोड़ा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वह अपने इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं?


Rani Sahu

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