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सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को सबक सिखाया है
बिपुल पांडे
सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को सबक सिखाया है और इसी कोरोना ने भारतीय सेना (Indian Military) को भी अपनी शक्ति बढ़ाने का एक अनूठा मार्ग दिखाया है. आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रही केंद्र सरकार ने देश के लिए कठिन समय को देखते हुए अग्निपथ एंट्री स्कीम (Agneepath Entry Scheme) शुरू की है. अगर योजना, योजनाकार और युवाओं ने साथ दिया तो ये देश को स्वर्णिम युग में ले जाने वाली स्कीम साबित हो सकती है. इस स्कीम में युवाओं को 3 से 5 साल के लिए सेना में सेवा का मौका दिया जाएगा. इसके बाद वो सिविल जॉब में लौट सकते हैं. बताया जा रहा है कि इसी अवधि में रिक्रूट्स को सिविल जॉब (Civil Job) में जाने के लिए भी तैयार किया जाएगा. इस स्कीम का पूरा ढांचा क्या होगा, इसके बारे में सारी जानकारी अभी सामने नहीं आई है, लेकिन अगर इस स्कीम में बाबूगिरी से ऊपर उठकर, अगर युवाओं और देश के भविष्य को समाहित किया गया, तो रोजगार के लिए माथा पीटते देश के करोड़ों युवाओं के लिए ये स्कीम सुनहरा मौका साबित होगी. इस स्कीम में युवाओं की क्या कुछ उलझनें हो सकती हैं, उसे समझने की जरूरत है.
सेना में कॉन्ट्रैक्ट या अल्पावधि के लिए नियुक्ति की स्कीम क्या है?
कुछ दिन पहले नोएडा के एक युवक की तस्वीर वायरल हुई थी. ड्यूटी के बाद वो देर रात सड़क पर दौड़ता हुआ घर जाता हुआ दिखा था. एक वरिष्ठ पत्रकार ने उससे आधी रात की इस दौड़ की वजह पूछी तो एक झकझोर देने वाली सच्चाई सामने आई. उस युवा ने जो कुछ बताया, उसके अनुसार ये उसकी मजबूरी नहीं थी. बल्कि नौकरी के साथ खुद को फिट रखने का फंडा था, जो उसे सेना में जाने की उसकी उम्मीदें पूरी कर सकता था. देश में ऐसे करोड़ों युवा हैं, जो सेना में शामिल होने, देश के लिए जीने-मरने का सपना देखते हैं. इसी सपने के साथ उठते-बैठते हैं. ऐसे युवाओं के लिए सेना का एक 'गोल्डेन गेट' खुलने जा रहा है, जो ना सिर्फ सेना की शक्ति को शीर्ष पर पहुंचा देगा, बल्कि अल्पकालिक अवधि में सेना से अनुशासन और राष्ट्रप्रेम सीखकर वापस समाज में लौटने वाली युवा शक्ति देश की तकदीर बदलने की ताकत से लैस होगी.
स्कीम के मुताबिक 'अग्निपथ एंट्री स्कीम' में युवाओं को सिर्फ 3 से 5 साल के लिए भर्ती किया जाएगा, जिसे टूर ऑफ ड्यूटी (ToD) कहा जाता है. शुरुआत में इसे भारतीय थल सेना यानी मिलिट्री में लागू किया जाएगा, फिर उसके बाद वायुसेना और नेवी में भी इसे विस्तार दिया जाएगा. इसमें अफसर और सैनिक, दोनों की ही भर्ती होगी. लेकिन अफसर पद पर रिटायर हो चुके सेना के अफसरों को दोबारा सेवा का मौका दिया जाएगा, तो बाकी पदों पर आम भर्ती की ही तरह युवाओं को सेवा के लिए आमंत्रित किया जाएगा. बताया जाता है कि इसके पायलट प्रोजेक्ट में करीब 100 लोगों को रखा जाएगा. जिनमें से 25% तीन साल के लिए और 25% पांच साल के लिए चयनित होंगे, जबकि 50% को स्थायी नौकरी दी जा सकती है.
रोजगार समाचार नहीं, देश की तकदीर बदलने वाली युक्ति है.
ये सिर्फ रोजगार समाचार नहीं है, बल्कि देश की तकदीर बदलने वाली ऐसी अनोखी युक्ति है जो राष्ट्रबल को नई परिभाषा देगा और जिनसे देश को नया आयाम देने की अपेक्षा रखी जाएगी. सेना को ये आइडिया युवाओं में आर्मी को लेकर दिखे क्रेज से आया. दो साल पहले इस कॉन्सेप्ट पर सरकार ने सोचना शुरू किया था. आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने ये सुझाव दिया था कि युवाओं को फौज में पूर्णकालिक सेवा में रखने की जगह अल्पकालिक अवधि के लिए रखा जाए. तीन साल या पांच साल के लिए उन्हें एक सैनिक की तरह ड्यूटी पर रखा जाए. इसके बाद इन्हें नौकरी दिलाने में मदद की जाए.आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने कहा था- 'जब भी हमारे अफसर कॉलेजेज में नौजवानों को संबोधित करते हैं, हमें ये अनुभूति होती है कि देश में युवाओं का एक बड़ा वर्ग है, जो आर्मी लाइफ का स्वाद चखना चाहता है, लेकिन आर्मी को करियर के तौर पर नहीं चुनना चाहता. इसी सूत्र से हमें ये आइडिया आया कि उन्हें दो-तीन साल के लिए आर्मी में सर्व करने का मौका क्यों ना दिया जाए?'
सेना की शक्ति बढ़ेगी और सरकारी खजाने में पैसा भी बचेगा
दरअसल इससे सेना की शक्ति बढ़ेगी और सरकारी खजाने में पैसा भी बचेगा, जो सेना के आधुनिकीकरण के काम आ सकता है. कोरोना महामारी में दो साल से सेना में भर्तियां नहीं हो सकी हैं. रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक सेना की तीनों शाखाओं में सैनिकों अफसरों की कमी है. आर्मी में 80 हजार से ज्यादा पद खाली हैं. वायुसेना में 7 हजार और नौसेना में 12 हजार पद खाली हैं. तीनों सेनाओं में हर साल पेंशन पर सवा लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं. इसी खर्च को कम करने के लिए एक नई युक्ति निकाली गई है. कॉन्ट्रैक्ट पर सैनिक रखकर सेना के खर्च में कटौती करने की योजना है.
आर्मी में अभी मेडिकल स्ट्रीम समेत 45 हजार अफसर हैं. 11.3 लाख जवान और कर्मचारी हैं. अभी 17 साल की नौकरी के बाद एक जवान सेना की सर्विस छोड़ता है. उन्हें पेंशन के अलावा अन्य बेनेफिट दिए जाते हैं. बजट दस्तावेजों के मुताबिक, तीनों सेनाएं हर साल सवा लाख करोड़ रुपये पेंशन पर खर्च करती है. 2022-23 में ही पेंशन पर 1.19 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. एक तय समय के लिए युवाओं को सेना में रखने से पेंशन का खर्च बचेगा.
सूत्रों के मुताबिक आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्र, जो उच्च तकनीकी में कुशल होते हैं, उनकी सेना में इन्फॉर्मेशन टेक्लनोलॉजी को विस्तार देने में मदद ली जा सकती है. एक छोटी अवधि के लिए सेना में काम करने के बाद ये आईटी प्रोफेसनल्स कॉरपोरेट जगत में अपना सैटलमेंट आसानी से कर सकते हैं. दुनिया में ये कॉन्सेप्ट नया नहीं है, लेकिन नए कॉन्सेप्ट के साथ लाने की जरूरत जरूर है.
विदेशों में ये योजना पहले से ही चलन में है
दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश वायुसेना में पायलट्स की कमी हो गई थी, तब ब्रिटिश गवर्नमेंट ने टूर ऑफ ड्यूटी का कॉन्सेप्ट लाया था. इसमें देश के युवाओं को सीमित समय के लिए वायुसेना में शामिल किया गया था. वायुसेना से जुड़ने के इच्छुक लोगों को 2 साल में 200 घंटे तक विमान उड़ाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था. उसके बाद से ToD एक हिट फॉर्मूला बन गया, जिसका चलन अमेरिका के कई कॉर्पोरेट घरानों में आज भी है. इस कॉन्सेप्ट के तहत रिटायर्ड लोगों को अल्प अवधि के लिए काम पर रखा जाता है. इजरायल में पुरुष और महिला, दोनों के लिए आर्मी को सर्विस देना अनिवार्य है. ब्राजील में भी मिलिट्री सेवा अनिवार्य है. ये बात अलग है कि हर देश में भर्ती का तरीका और ट्रेनिंग की अवधि अलग-अलग होती है. दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय सैन्य सेवा को लोगों के जीवन का अनिवार्य अंग बनाया जा चुका है. कई देशों में कुछ लोगों को अनिवार्य भर्ती से छूट भी दे दी जाती है, जिसके अलग मापदंड होते हैं. रूस में एक साल की सैन्य सेवा अनिवार्य है. सीरिया में तो 18 माह के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य तौर पर ही लागू की गई है. जो लोग सेना में सेवा नहीं देना चाहते या फिर जानबूझकर बच निकलते हैं, उन्हें दंडित किया जाता है. स्विट्जरलैंड, तुर्की में पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. यूक्रेन, ऑस्ट्रिया, ईरान और म्यांमार में भी लोगों के लिए सेना में सेवा देना अनिवार्य है.
सेना की ड्यूटी से हटने के बाद युवाओं का अग्निपथ क्या होगा?
ये मानने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि जब एक जवान सेना में भर्ती होता है, तब उसकी शारीरिक शक्ति सर्वोत्कृष्ट होती है. उत्साह भले ही बना रहे, परंतु धीरे-धीरे शारीरिक बल कम होता जाता है. इसलिए एक सैनिक आजीवन बाहुबली नहीं बना रह सकता. लेकिन सामाजिक प्रश्न ये है कि जब शरीर की क्षमता कम होने लगे तो एक सैनिक कहां जाएगा. इस स्कीम की मूल थीम यही होनी चाहिए. तीन साल या पांच साल में एक सैनिक अगर सेवा में आता है, तो वो सेवा से मुक्त होने के बाद क्या करेगा? अगर इस प्रश्न को बाबुओं को सॉल्व करने को दे दिया जाए तो ये योजना विनाशकारी साबित हो सकती है. लेकिन अगर ईमानदार और व्यावहारिक हल ढूंढा जाए तो वरदान. सवा अरब की आबादी में हर पांच साल में 12 लाख क्या, करोड़ों बाहुबली युवा तैयार होते हैं. जो सेना की शक्ति में सौ गुना बढ़ोतरी कर सकते हैं. ये ही वो समय भी होता है, जब युवाओं को एक राह की आवश्यक्ता होती है. अगर उन्हें सेना का प्रशिक्षण, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना मिलती है, तो देश की एक सर्वोत्कृष्ट पीढ़ी तैयार होती है, जो समाज में वापस लौटकर क्रांति ला सकती है और आवश्यक्ता होने पर सीमा पर लौटकर दुश्मनों के दांत भी खट्टे कर सकती है.
ये बहुत देसी आइडिया है, पर इसमें सफलता की गारंटी छिपी हुई है!
सरकार की योजना का पूरा ब्लूप्रिंट अभी सामने नहीं आया है. भय ये है कि कहीं सेना ये ना सोच रही हो कि रिटायर होने वाले जवानों को सेक्युरिटी गार्ड या टीचर बनाने के लिए सिस्टम को मोबिलाइज किया जाए. इस तरह से युवा एक बार फिर देश के लिए बोझ बन जाएगा. अगर ऐसे 'सैनिकों' को कॉर्पोरेट ट्रेनिंग दी जाए, उनमें उद्यमिता लाई जाए, तो देश का विकास तय है. उन्हें ऋण उपल्ब्ध कराया जाए, तीन से पांच साल के अंदर MSME सेक्टर में भेजने के लक्ष्य और प्रशिक्षण के साथ तैयार किया जाए, तो वे सेना से मुक्त होकर ना सिर्फ स्वरोजगार की ओर बढ़ सकेंगे, बल्कि रोजगार प्रदाता भी बन सकेंगे.
Rani Sahu
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