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अतिक्रमण की समस्या लगभग समाप्त हो गई
सुबह-सुबह को बुलाया था मुख्यमंत्री ने, बोले-'देखो हम सड़कें चौड़ी कर रहे हैं। आवागमन सुविधाजनक होता जा रहा है।' मैंने कहा-'सड़कें ही क्यों, पुल बन रहे हैं और नए-नए फ्लाई ओवर। शहर को आपने चमाचम कर दिया है। बिजली अबाधित है। थोड़ा सा गांवों पर भी ध्यान दें तो अगले चुनाव में नौका आसानी से किनारे जा लगेगी।' मेरी बात पर थोड़ा झंुझलाए, फिर सहज होकर बोले-'गांवों की और चुनावों की चिंता तुम छोड़ो। मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया था कि तुमने देख लिया कि राजधानी में विकास किस गति से गतिमान है।' मैं बोला-'विकास की मत पूछिए। इसके नाम पर तो आपने गंगा बहा दी है।
अतिक्रमण की समस्या लगभग समाप्त हो गई है। थोड़ा सा हाउसिंग सोसाइटीज पर ध्यान दे लेते तो और उत्तम रहता।' वे फिर बोले-'हाउसिंग सोसाइटीज को मारो गोली। विकास की बही गंगा पर एक 'राइटअप' लिख मारो।' मैंने कहा-'लिखने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन छपवाना जरा जटिल है।' वे बोले-'उसकी चिंता छोड़ो, सब मैनेज करा दूंगा। तुम तो अपना 'राइटअप' तैयार करो।' मैंने कहा-'सर, यह अकाल का क्या लफड़ा है? आए दिन चला आता है।' वे बोले-'जरा धीरे बोलो, अकाल को कन्टीन्यु करने दो। यह बहुत जरूरी है। काफी लोग जूझ रहे हैं। काफी लोग काम कर रहे हैं। इस तरह काफी लोग खा रहे हैं। काफी लोग जीविका जुटा रहे हैं। अकाल बहुत जरूरी है हमारे लिए। बारिश शुरू तो हो गई है, लेकिन इससे बात बनी नहीं है। राइटअप में अकालों को तो सब साइड ही कर देना। इसे आवश्यकता हुई तो बाद में देखेंगे। तुम तो हमने जो सड़कें चौड़ी की हैं, उस पर गौर करो। कुल मिलाकर विकास की गंगा बह निकली है, उसे केंद्रबिंदु बनाना है।' मैं बोला-'सड़कों पर तो लिखना ही पड़ेगा। वाकई सड़कें बहुत चौड़ी हो गई हैं। मकान-दुकान तोड़कर भी इन्हें चौड़ा किया गया है।
लेकिन सर इधर सड़क बनकर तैयार होती है और उधर दूसरे ही दिन इन्हें खोद दिया जाता है। कभी सीवर लाइन के लिए और कभी टेलीफोन के लिए?' 'इसे भी छोड़ो, इसे मैं देख लूंगा, राइटअप में इसका भी जिक्र नहीं करना है।' मैंने कहा न, सड़कें पेरिस का मुकाबला कर रही हैं। इस पर ध्यान देना है तुम्हें।' वे बोले तो मैंने कहा-'मैं मानता हूं। सड़कों के मामले में हम पेरिस से आगे जा रहे हैं। परंतु महंगाई सुरसा की तरह फैलती जा रही है।' इस बार उन्होंने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। बालों को खींचा, आसमान को देखा और फिर मुझे घूरकर बोले-'तुम क्यों नहीं बात का मर्म समझ रहे। महंगाई से मेरा लेना-देना क्या है? सुनो भूख से कोई मर जाए, लेकिन महंगाई से मरते मैंने किसी को नहीं देखा। इधर कलर टीवी हमने सस्ता किया है। खरीदने वालों का तांता लगा हुआ है। इसलिए महंगाई की बात बेमानी है। 'राइटअप' में महंगाई का जिक्र तो 'भूले' से भी नहीं करना है, मैंने कहा न, सड़कें बहुत चौड़ी हो गई हैं। विकास की गंगा बह रही है।' 'सर मैं दोनों ही बातों से इंकार नहीं करता, परंतु गरीबों को दिया जाने वाला सस्ता राशन अभी तक दुकानों पर नहीं पहुंचा है। वहां कतारें लंबी हो रही है। गरीबी हटाने के मुद्दे से तो आप मुकर नहीं सकते।' मैंने कहा तो इस बार वे लगभग चिल्लाकर बोले-'शर्मा समझो। गरीबी नहीं मिटाना हमारी विवशता है। कहना और करना दो अलग-अलग बातें हैं और हम उस पर अमल कर रहे हैं। इसलिए इस बात को भी अलग रखो। सड़कें चौड़ी हो गई हैं।'
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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