- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कोरोना के बढ़ते कहर ने...
x
समय की मांग है कि विपक्ष इस महामारी के दौरान विभेदकारी राजनीति करने के बजाय एक रचनात्मक भूमिका अपनाए
रमण रावल। समय की मांग है कि विपक्ष इस महामारी के दौरान विभेदकारी राजनीति करने के बजाय एक रचनात्मक भूमिका अपनाए। यह एक युद्ध है, जिसके विरुद्ध सामूहिक रूप से लड़ने की आवश्यकता है।कोरोना के बढ़ते कहर ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया है। इस समय उससे बड़ा हैसियतदार कोई नहीं जो किसी को एक अदद रेमडेसिविर इंजेक्शन दिलवा पाए।
जान की सलामती का यह अपूर्व, अनथक संघर्ष कब थमेगा, कोई नहीं जानता। अस्पताल में या तो बेड ही नहीं है, है तो वार्ड में नहीं गलियारे में। बेड है तो रेमडेसिविर नहीं, ऑक्सीजन नहीं। दोनों है तो समय पर देखभाल के लिए डॉक्टर और नर्स नहीं। ऐसे में हिम्मत और शरीर दोनों जवाब दे जाए तो मृत देह को समय पर अग्नि मिलना भी इंजेक्शन जितना ही मुश्किल, यानी अस्पताल से अंतिम पड़ाव तक कहीं सुकून नहीं।
विसंगति कहें या आमजन की नियति कि जब जीवन रेंगने को अभिशप्त है तब राजनीति सरपट दौड़ रही है। दावे-प्रतिदावे, प्रेस कांफ्रेंस, बयानबाजी, रैलियां, जन संपर्क, आमसभा, आरोप-प्रत्यारोप सब बदस्तूर है। कोई कह रहा है कि मेरा हॉस्टल ले लो, कोई कह रहा है हम देंगे रेमडेसिविर, कोई प्लाज्मा का दावा कर रहा है। इंटरनेट मीडिया में संपर्क नंबर रॉकेट की गति से जा रहे हैं तो जरूरतमंद उतने ही वेग और आशा से लबरेज होकर मोबाइल पर अंगुलिया घुमा रहे हैं। हकीकत बेहद निष्ठुर है, जरा मुरव्वत नहीं करती। वह बताती है कि कोई फोन नहीं उठा रहा। ऐसी कोई राहत कहीं से नहीं आ रही, जो दिलों में उमंग जगा दे।
यह भी समझ से परे है कि सरकारी अस्पतालों के मरीजों के लिए इंजेक्शन सरकार जुटा रही है तो क्या निजी अस्पतालों में जीवन-मौत के बीच संघर्ष कर रहे लोग बाहरी हैं? वैक्सीन के उत्पादन और वितरण की विसंगति टीकाकरण के तीन माह बाद भी दूर न होना पीड़ादायक है। यदि विसंगति के बीच 14 करोड़ टीकाकरण हो गया तो व्यवस्था के साथ यह आसानी से 20 करोड़ हो जाता, तो बड़ी राहत होती। अव्वल तो इस समय कोई किसी से बात करने को तैयार नहीं। बात हो जाए तो मानने को तैयार नहीं। पार्षद, विधायक, सांसद, पार्टी पदाधिकारी मुंह फेरकर जा रहे हैं, देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं। फोन ज्यादा लगाओ तो बंद कर दिया जाता है, लग जाए तो सुनता कोई और है, बोलता कुछ और है।
फिर भी मेरी दृढ़ मान्यता है कि कोई किसी की उपेक्षा नहीं कर रहा। समय और परिस्थितियां उस चैराहे पर खड़ी हैं, जहां से आगे बढ़ने का ही कोई स्पष्ट संकेत नहीं। यह वो दौर है, जब चाहकर भी कोई किसी की मदद नहीं कर पा रहा, क्योंकि अस्पताल में जगह नहीं, इंजेक्शन नहीं, ऑक्सीजन नहीं और ये सब तुरंत उपलब्ध नहीं कराए जा सकते तो डॉक्टर, प्रशासन, नेता करें भी तो क्या? इस संक्रमण के प्रति जितने लापरवाह हम सब हो गए थे, उससे दस गुना बेफिक्री शासन-प्रशासन को हो गई थी। हम बाजारों में टूट पड़े थे, प्रशासन राजस्व वसूली में तो सत्ताधारी दल अपना दायरा बढ़ाने में और विपक्ष अपनी पकड़ न छूटे, इस जद्दोजहद में लगा रहा।
यदि किसी को लगता है कि कोरोना का खतरा अब गया तो उससे बड़ा कोई नादान नहीं। जो गलती हम सबने मिलकर की, उसे दोहराना आत्मघाती होगा। इसी क्षण से हमें अस्पतालों के निर्माण, उनके रखरखाव, संसाधन जुटाने, बढ़ाने, औषधि की उपलब्धता, ऑक्सीजन के उत्पादन और भंडारण और रेमडेसिविर के निर्माण को तेज करने पर ध्यान देना होगा। टीके का उत्पादन और टीकाकरण की गति को बढ़ाना होगा। यह ऐसा सबक है जिसमें साफ शब्दों में लिखा है कि यदि सेहत के मामले में केवल सरकार के भरोसे रहना है तो अपनी बेहाली के जिम्मेदार आप खुद होंगे। यदि आगामी कुछ वर्षों में कोरोना वायरस को नियंत्रित कर भी लिया गया तो इस बात की गारंटी नहीं है कि भविष्य में कोई नया वायरस सिर नहीं उठाएगा। (ईआरसी)
[वरिष्ठ पत्रकार]
Gulabi
Next Story