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राजद्रोह कानून
जेएनएन। राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने यह सही सवाल किया कि आखिर अंग्रेजों का बनाया हुआ यह कानून आजादी के 75 साल बाद भी क्यों जारी है? इस कानून पर अमल होते रहने पर इसलिए भी सवाल उठते हैं, क्योंकि अंग्रेज शासकों ने इसे आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया था। आखिर ऐसा कानून स्वतंत्र भारत में क्यों अस्तित्व में होना चाहिए, जिसका इस्तेमाल तिलक और गांधी जैसे नेताओं के खिलाफ किया गया हो? समस्या केवल यह नहीं है कि अंग्रेजों का बनाया हुआ कानून अभी भी अमल में लाया जा रहा है, बल्कि यह भी है कि अक्सर इसका इस्तेमाल उन मामलों में किया जाता है, जो मुश्किल से राजद्रोह के दायरे में आते हैं।
आखिर किसी मामले में अनुचित बयान देने या फिर आपत्तिजनक लिखने वालों के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई करने का क्या मतलब? ऐसा किया जाना तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है। इस पर हैरत नहीं कि जब बेतुके-वाहियात बयान देने वालों पर राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई होती है, तो ऐसे ही स्वर सामने आते हैं कि लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है अथवा अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा बैठाया जा रहा है। यह सही है कि लोगों को राजनीतिक-सामाजिक विमर्श में आपत्तिजनक बातें करने से बचना चाहिए, लेकिन यदि कोई संयम-शालीनता का परिचय न दे तो फिर उसके खिलाफ राजद्रोह के तहत कार्रवाई करना ठीक नहीं। ऐसे लोगों के खिलाफ किसी अन्य कानून के तहत कार्रवाई तो समझ आती है, लेकिन उन्हें राजद्रोही करार देने का कोई औचित्य नहीं। कथनी और करनी में अंतर होता है। इस अंतर को समझा जाना चाहिए।
यह अच्छा है कि सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह संबंधी कानून की वैधानिकता परखने जा रहा है। कुछ देर से ही सही, यह काम किया ही जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि कुछ लोग वास्तव में ऐसे कृत्य करते हैं, जो राजद्रोह के दायरे में आते हैं। ऐसे लोग केवल देश के खिलाफ बोलते-लिखते ही नहीं हैं, बल्कि देश को नुकसान पहुंचाने वाले काम भी करते हैं। कई बार तो वे कानून एवं व्यवस्था अथवा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को क्षति पहुंचाने वाली गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं या फिर देश के लिए गंभीर खतरा बने तत्वों की हरसंभव सहायता करते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ तो प्रभावी कार्रवाई होनी ही चाहिए। स्पष्ट है कि वास्तव में राजद्रोही आचरण करने वालों के खिलाफ ठोस कानून की जो आवश्यकता है, वह भारतीय दंड संहिता में होनी ही चाहिए। इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि अंग्रेजों के बनाए ऐसे और कौन से कानून हैं, जिनकी समीक्षा आवश्यक है।
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