सम्पादकीय

90 के दशक की अदाकाराओं की वापसी; उम्र पर केंद्रित रहा बॉलीवुड अब ओटीटी से बदल रहा है

Rani Sahu
17 Dec 2021 2:49 PM GMT
90 के दशक की अदाकाराओं की वापसी; उम्र पर केंद्रित रहा बॉलीवुड अब ओटीटी से बदल रहा है
x
‘टिप -टिप बरसा पानी...’ 27 साल पुरानी फिल्म ‘मोहरा’ का यह गाना फिर से चर्चित है

अनुपमा चोपड़ा'टिप -टिप बरसा पानी...' 27 साल पुरानी फिल्म 'मोहरा' का यह गाना फिर से चर्चित है। 'सूर्यवंशी' में अक्षय इसमें रोमांस करते नजर आ रहे हैं। मोहरा से लेकर सूर्यवंशी तक अक्षय हैं, लेकिन पुरानी अभिनेत्रियां मुख्यधारा की फिल्मों से नदारद हैं। बॉलीवुड महिलाओं को एक तय उम्र तक ही अभिनेत्री मानता है। 35-40 साल की हुईंं कि उन्हें साइड रोड मिलने लगते हैं। और वे लीड रोल लायक नहीं मानी जातीं। पर हमारे अभिनेता सदाबहार बने रहते हैं।

शुक्र है कि अब मनोरंजन के नए माध्यम ओटीटी ने ये अवसरों ने नए रास्ते खोल दिए हैं। 'आर्या-2' में देखिए, सुष्मिता ही सुष्मिता हैं। इतना दमदार रोल है कि आप मुरीद हुए बिना नहीं रह पाएंगे। पिछले कई सालों से अभिनय से दूर सुष्मिता की यह वापसी अभिनेत्रियों के लिए वाकई ऊर्जा भरने वाली है। आप देखिए माधुरी दीक्षित 'फाइंडिंग अनामिका' से ओटीटी पर आ रही हैं। ओटीटी पर सुप्रिया पाठक के पास कितना काम है, रत्ना पाठक शाह बहुत काम कर रही हैं, रवीना टंडन के पास काम है।
ये बेहतरीन अदाकाराएं अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं, बल्कि उनका अभिनय भी निखरकर सामने आ रहा है। बॉलीवुड हमेशा से उम्र पर केंद्रित इंडस्ट्री रहा है, खासतौर पर महिलाओं के लिहाज से। लेकिन इन ओटीटी माध्यमों के कारण बदलाव हुआ है। इन माध्यमों पर महिलाओं के लिए एक जगह बन रही है। यह बहुत अच्छी बात है। इसका एक कारण तो ये है कि इन स्ट्रीमिंग माध्यमों में महिलाएं अच्छी-खासी संख्या में हैं। ऊंचे पदों पर आसीन महिलाएं निर्णायकों की भूमिका में हैं।
लेकिन सिर्फ यही एक कारण नहीं है। वजह बॉक्स ऑफिस भी है। इन स्ट्रीमिंग माध्यमों पर बॉक्स ऑफिस का भार नहीं होता है, इन्हें ओपनिंग की चिंता नहीं होती। इसलिए फिल्म निर्माता-निर्देशक ज्यादा प्रयोग करना चाह रहे हैं। मुख्यधारा की फिल्में बनाने वाले प्रोड्यूसर्स अभिनेत्रियों को लीड रोल में लेने से कतराते हैं। वे सेफ गेम खेलना चाहते हैं, इसलिए ए ग्रेड अभिनेताओं को लेकर परंपरागत फिल्में बनाते हैं। हालांकि अब धीरे-धीरे बॉक्स ऑफिस भी बदल रहा है।
महिला कैरेक्टर को लीड लेकर भी फिल्में बन रही हैं। 'गंगूबाई काठियावाड़ी' का उदाहरण लें। या फिल्म 'छपाक' लें। 'एनएच-10' का उदाहरण लें। हालांकि आज तक किसी भी एक्ट्रेस की फिल्म को 50 करोड़ की ओपनिंग नहीं मिली है, जैसे आमिर की 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' को ओपनिंग मिली थी। अगर 'जी ले जरा...' 50 करोड़ के साथ ओपन होती है, उस दिन से तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा। पिछले चार हफ्तों में जितनी भी फिल्में आई हैं, उसमें 'माचो' आदमी एक-दूसरे को मार रहा है।
हीरोज एक-दूसरे की पिटाई कर रहे हैं। वही घिसी-पिटी पटकथा है। लेकिन स्ट्रीमिंग माध्यमों पर विविधता की भरमार है। एक इंटरव्यू में तापसी कहती हैं कि हीरो से कोई कभी नहीं पूछता कि आप हर फिल्म में स्ट्रॉन्ग रोल करते हैं। लेकिन अगर हीरोइन हर फिल्म में स्ट्रॉन्ग रोल प्ले करती हैं, तो सवाल होने लगते हैं।
एक्टर्स राउंड टेबल कार्यक्रम में सान्या मल्होत्रा कहती हैं कि लोग चाहते हैं कि वह सिर्फ एक चुलबुली सी लड़की का रोल करें। दीपिका की फिल्म छपाक बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। लेकिन वह कहती हैं कि इस तरह के विषयों को बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिस्पॉन्स न मिले, लेकिन ये बदलाव लाती हैं। शायद यही इनकी सफलता है।
Next Story