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संदीप घोष।
नरेन्द्र मोदी जबसे भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे बीता एक साल उनके लिए सबसे मुश्किल भरा रहा। वैसे तो उनके आलोचकों ने उन्हें निशाना बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा, लेकिन गत एक वर्ष के दौरान उन्होंने अपने हमले तेज कर दिए। कोविड की दूसरी लहर के दौरान बंगाल चुनाव में भाजपा को झटका लग। तब देश टीकाकरण के मोर्चे पर पिछड़ा हुआ था। इसके लिए सरकार को आड़े हाथों लिया जा रहा था। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत पर अपनी वैक्सीन खरीदने के लिए दबाव बना रही थीं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत की चेतना पर आघात करने वाली छवियां दिखा रहा था। अर्थव्यवस्था संकट में थी। दिल्ली की सड़कों को कथित किसान आंदोलन के नाम पर साल भर से अधिक तक घेरे रखा गया। इसने दुनिया भर का ध्यान खींचा। भारत में लोकतंत्र के भविष्य पर सवाल खड़े किए। मोदी के नेतृत्व को 'बहुसंख्यक हिंदू राष्ट्रवादी सरकार' करार दिया गया। इसके बावजूद वह न केवल देश में अपने प्रतिद्वंद्वियों, बल्कि बाइडन से लेकर बोरिस जानसन जैसे तमाम दिग्गज वैश्विक नेताओं से भी लोकप्रियता के मामले में अव्वल रहे। इसके बाद भी बंगाल के नतीजों ने विपक्ष को एक आधार दिया।