सम्पादकीय

नवाचार के यथार्थ में

Rani Sahu
29 Aug 2021 6:58 PM GMT
नवाचार के यथार्थ में
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मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक समारोह में हिमाचल के अधिकारियों को, लीक से हटकर काम करने और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया है

दिव्याहिमाचल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक समारोह में हिमाचल के अधिकारियों को, लीक से हटकर काम करने और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया है। नवाचार के यथार्थ में, हर घोषणा, योजना और परियोजना को मंच से जमीन पर उतारना पड़ेगा। यह इसलिए भी कि नवाचार एक गैर-राजनीतिक शब्द है और इसे चिंटियों पर सवार करके मंजिल तक नहीं पहुंचाया जा सकता है। अगर हर विभाग से यह पूछा जाए कि कोविड काल से बाहर आने के लिए क्या किया, तो मालूम हो जाएगा कि सुरक्षित नौकरी व पूरी तनख्वाह से पसरी सरकारी कार्यसंस्कृति में ऐसे सरोकार ही पैदा नहीं हुए कि नवाचार पैदा किया जाए। हिमाचल प्रदेश के दो स्मार्ट शहरों की परियोजनाओं में ही अगर नए भविष्य का नवाचार दर्ज नहीं हो रहा, तो सरकारी ढांचे से सिर्फ कंकरीट ही निकलेगा। आश्चर्य यह कि बाइस करोड़ की लागत से धर्मशाला में स्थापित हो रहा ट्यूलिप गाड्र्न अब वन विभाग की अमानत में थोपा जा रहा है, बिना यह पूछे कि आखिर ट्यूलिप उगाने की परिकल्पना को किसने क्यों खारिज किया। नवाचार तो बिलासपुर के हरिमन शर्मा ने पैदा किया और अकेले अपने दम पर चालीस डिग्री तापमान में सेब उगा दिए। इस बागबान के कारण प्रदेश के निचले इलाकों में सेब आर्थिकी का नया दौर पांव पसार रहा है और चार-पांच रुपए किलो के हिसाब से आम बेचने वाले अब डेढ़-दौ सौ रुपए प्रति किलो की दर से सेब बेच रहे हैं। ऐसे में बागबानी या कृषि विश्वविद्यालय से पूछा जाए कि उनकी वैज्ञानिक सोच क्यों आज तक हिमाचल के फसल चक्र में आयातित बीज या पौधारोपण ही कर रही है। आश्चर्य यह कि निजी तौर पर किसान-बागबान नित नए प्रयोग करके कॉफी, मौसमी या मूंगफली तक उगा रहे, लेकिन प्रदेश के शिक्षण संस्थान केवल इमारतों के भीतर कीड़े उगा रहे हैं।

उदाहरण के लिए निचले इलाकों में अमरूद की फसल कीड़ों की वजह से लगातार खराब हो जाती है, लेकिन इससे जूझने का सामथ्र्य तक नहीं है। प्रदेश की भौगोलिक व भूगर्भीय परिस्थितियों के बीच टै्रफिक कंट्रोल सिस्टम अपनाने तक में पुलिस महकमा कागजी दिखाई देता है। आर्थिक संसाधनों की बर्बादी पर उधार उठाने की परवरिश में जी रहे निगम, क्या कभी नवाचार कर पाएंगे। उदाहरण के लिए एचआरटीसी के करीब दो हजार करोड़ के घाटे पर भी अगर नए डिपो खोलने का शगूफा रहेगा, तो नवाचार का आधार पैदा नहीं होगा। प्रदेश की नीतियों और कार्यक्रमों के तहत जवाबदेही तथा पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए, तो विभाग निश्चित रूप से कुछ नया करेंगे, वरना पुराने डिजाइन पर नई इमारतें उभरती हुई तो देखी जा सकती हैं। हैरानी होती है कि स्कूल, कालेज, चिकित्सा संस्थान से लाइब्रेरी तक के भवनों में एक जैसा डिजाइन चल रहा है। वर्षों पहले पंडित सुखराम ने मंडी शहर के बीचोंबीच स्थिति उपेक्षित व गंदगी से भरे हुए स्थान को शानदार इंदिरा मार्केट का रूप देकर बता दिया था कि सोच बदलते ही संसाधन कितना बड़ा काम कर सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने संयुक्त कार्यालय भवनों के निर्माण पर जोर देकर एक नई परिकल्पना दी। हम निजी निवेश के लिए इन्वेस्टर मीट करते हैं, लेकिन यह नहीं समझ पाते कि हिमाचल के घरेलू व्यवसायी कैसे आगे बढ़ें। क्यों नहीं प्रदेश के सौ बस स्टैंड को नए प्रारूप में विकसित करने के लिए कुछ हिमाचली ढूंढे जाएं, ताकि ये स्थल पार्किंग, मनोरंजन, पर्यटन और व्यापार के प्रमुख केंद्र बन जाएं।
प्रदेश के इतने ही शहरों में सिटी हास्पिटल खड़े कर दिए जाएं। योजनाओं और परियोजनाओं की प्राथमिकताओं में अगर स्काई बस, रोप-वे व एरियल ट्रॉम स्थापित किए जाएं, तो प्रदेश कितना आगे बढ़ेगा। जहां सरकारी मशीनरी का सवाल है तो कई अधिकारी चाहकर भी पहल करंे, तो उत्तराधिकारी या राजनीतिक नेतृत्व इसे खुर्द-बुर्द कर देता है। कुछ साल पहले मंडी प्रशासन ने फल-सब्जी के भाव मंडी से बाजार तक, उपभोक्ता के लिए एक फार्मूले के तहत तय किए, लेकिन आज यह कारनामा कहां है। कुछ पुलिस अधिकारियों ने नशे के खिलाफ तथा टै्रफिक व्यवस्था के लिए इनोवेटिव स्टैप्स लिए, लेकिन वे अधिकारी ही आज ढूंढे नहीं मिलते। व्यवस्था के मौजूदा ताने-बाने में सिर्फ घोषणाओं का बुरादा रहता है और इसलिए चाहकर भी लीक से हटकर चलने वालों को प्रताडि़त किया जाता है। वर्षों पहले जब सत महाजन पर्यटन मंत्री थे तो पौंग व गोबिंदसागर झीलों में कश्मीर की तर्ज पर शिकारे चलाने तथा ट्री टॉप हट बनाने का संकल्प लिया गया था, क्या कोई बता सकता है कि ऐसी फाइलों का कबाड़ कहां है।


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