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- नवाचार के यथार्थ में

दिव्याहिमाचल । मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक समारोह में हिमाचल के अधिकारियों को, लीक से हटकर काम करने और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया है। नवाचार के यथार्थ में, हर घोषणा, योजना और परियोजना को मंच से जमीन पर उतारना पड़ेगा। यह इसलिए भी कि नवाचार एक गैर-राजनीतिक शब्द है और इसे चिंटियों पर सवार करके मंजिल तक नहीं पहुंचाया जा सकता है। अगर हर विभाग से यह पूछा जाए कि कोविड काल से बाहर आने के लिए क्या किया, तो मालूम हो जाएगा कि सुरक्षित नौकरी व पूरी तनख्वाह से पसरी सरकारी कार्यसंस्कृति में ऐसे सरोकार ही पैदा नहीं हुए कि नवाचार पैदा किया जाए। हिमाचल प्रदेश के दो स्मार्ट शहरों की परियोजनाओं में ही अगर नए भविष्य का नवाचार दर्ज नहीं हो रहा, तो सरकारी ढांचे से सिर्फ कंकरीट ही निकलेगा। आश्चर्य यह कि बाइस करोड़ की लागत से धर्मशाला में स्थापित हो रहा ट्यूलिप गाड्र्न अब वन विभाग की अमानत में थोपा जा रहा है, बिना यह पूछे कि आखिर ट्यूलिप उगाने की परिकल्पना को किसने क्यों खारिज किया। नवाचार तो बिलासपुर के हरिमन शर्मा ने पैदा किया और अकेले अपने दम पर चालीस डिग्री तापमान में सेब उगा दिए। इस बागबान के कारण प्रदेश के निचले इलाकों में सेब आर्थिकी का नया दौर पांव पसार रहा है और चार-पांच रुपए किलो के हिसाब से आम बेचने वाले अब डेढ़-दौ सौ रुपए प्रति किलो की दर से सेब बेच रहे हैं। ऐसे में बागबानी या कृषि विश्वविद्यालय से पूछा जाए कि उनकी वैज्ञानिक सोच क्यों आज तक हिमाचल के फसल चक्र में आयातित बीज या पौधारोपण ही कर रही है। आश्चर्य यह कि निजी तौर पर किसान-बागबान नित नए प्रयोग करके कॉफी, मौसमी या मूंगफली तक उगा रहे, लेकिन प्रदेश के शिक्षण संस्थान केवल इमारतों के भीतर कीड़े उगा रहे हैं।
