सम्पादकीय

असली चीनी चुनौती यह है

Triveni
10 Aug 2021 5:09 AM GMT
असली चीनी चुनौती यह है
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यह तो दुनिया के हर जानकार मानता है कि सैनिक क्षेत्र में चीन अभी अमेरिका से बहुत कमजोर है।

यह तो दुनिया के हर जानकार मानता है कि सैनिक क्षेत्र में चीन अभी अमेरिका से बहुत कमजोर है। लेकिन जिस मोर्चे पर उसने अमेरिका की नींद उड़ा रखी है, वह आधुनिक विज्ञान और तकनीक है। इस क्षेत्र में उसने जो निवेश किए, उसका फायदा अब उसे मिल रहा है। इससे उसकी आर्थिक ताकत भी बढ़ रही है। ये बात खुद अमेरिका में स्वीकार की जा रही है। मसलन, अमेरिका की जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी में हुए एक ताजा अध्ययन से सामने आया है कि चीन के विश्वविद्यालयों में अब अमेरिकी विश्वविद्यालयों की तुलना में अधिक संख्या में छात्र विज्ञान- टेक्नोलॉजी- इंजीनियरिंग- गणित में पीएचडी डिग्रियां हासिल कर रहे हैँ। इन चारों विषयों को मिला कर स्टेम कहा जाता है। स्टेम वैसे अनुसंधानों को कहा जाता है, जिनमें छात्र एक से ज्यादा डिस्पलीन का अध्ययन करते हुए डॉक्टरेट डिग्री हासिल करते हैँ

ऐसे प्रशिक्षित कर्मी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, बायो-टेक्नोलॉजी और ऐसी दूसरी अति आधुनिक तकनीकों में अनुसंधान और विकास के लिए जरूरी माने जाते हैँ। ये तकनीक ही दुनिया का भविष्य तय करेंगे। इस अध्ययन में अमेरिका को चिंतित करने वाली बात यह है कि अब अमेरिका और चीन में ली जा रही स्टेम डिग्रियों में जो खाई पैदा हो गई है, उसके आने वाले वर्षों में और चौड़ी होने की संभावना है। इस खाई से अमेरिका के दीर्घकालिक आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी हितों को नुकसान पहुंच सकता है। अध्ययन रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक चीनी विश्वविद्यालय हर साल 77 हजार से अधिक स्टेम पीएचडी डिग्रियां देंगे।
जबकि अमेरिका में ये संख्या तकरीबन 40 रहेगी। अगर अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की गिनती ना की जाए, तब तो चीन से अमेरिका का फासला और भी बढ़ा हुआ दिखेगा। तब चीन में तीन गुना ज्यादा ऐसे डिग्रीधारी तैयार होते दिखेंगे। चीन मं मिलने वाली डिग्रियों की गुणवत्ता पहले संदिग्ध मानी जाती थी। लेकिन अब खुद जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में कहा है कि इस दिशा में चीन में काफी सुधार हुआ है। इस ओर भी ध्यान खींचा गया है कि चीन में जितने छात्र पीएचडी कर रहे हैं, उनमें 80 फीसदी विज्ञान और इंजीनियरिंग में हैं। तो अमेरिका क्या करे। एक रास्ता यह है कि वह विदेशी छात्रों के लिए अपने यहां आना आसान बनाए। अमेरिकी राजनीति में डॉनल्ड ट्रंप परिघटना ने आव्रजन के खिलाफ तीखा माहौल रखा है। असल सवाल यह है कि इससे आखिर वह कैसे निपटेगा?


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