सम्पादकीय

किसान आंदोलन का औचित्य: कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की तलाश रहे वापसी की राह

Triveni
23 May 2021 1:18 AM GMT
किसान आंदोलन का औचित्य: कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की तलाश रहे वापसी की राह
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इस पर हैरानी नहीं कि कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की वापसी की राह तलाश रहे हैं

भूपेंद्र सिंह | इस पर हैरानी नहीं कि कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की वापसी की राह तलाश रहे हैं। भले ही किसान नेताओं ने केंद्र सरकार से नए सिरे से बातचीत शुरू करने की चिट्ठी लिखी हो, लेकिन लगता नहीं कि ऐसा हो पाएगा, क्योंकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे उन बिंदुओं पर सहमत हैं या नहीं, जो 11 दौर की बातचीत टूटने के बाद केंद्र ने उनके समक्ष रखे थे। यह बातचीत टूटी ही इसलिए थी, क्योंकि केंद्र की तमाम नरमी के बाद भी किसान नेता अपने हठ का परित्याग करने को तैयार नहीं थे। वे न केवल केंद्र सरकार को आदेश देने की मुद्रा अपनाए हुए थे, बल्कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ मंजूर करने को भी तैयार नहीं थे। इस अड़ियलपन ने यही प्रतीति कराई थी कि उनका मकसद किसानों की समस्याओं का समाधान कराना नहीं, बल्कि केंद्र सरकार को झुकाना है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आम किसान इस आंदोलन से दूरी बनाने लगे। यह किसान नेताओं की जिद के अलावा और कुछ नहीं कि वे कोरोना संक्रमण के भीषण खतरे के बाद भी धरना देने में लगे हुए हैं। इस धरने को तत्काल प्रभाव से खत्म करने की जरूरत है, क्योंकि अब यह एक खौफनाक तथ्य है कि किसान संगठनों के जमावड़े के कारण ही पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में कोरोना का संक्रमण फैला है।

पंजाब के गांवों में शहरों के मुकाबले कोरोना से अधिक मौतें यही बता रही हैं कि किसान नेताओं की जिद किसानों पर बहुत भारी पड़ी। यदि किसान संगठन किसानों का सचमुच भला चाहते हैं तो उन्हेंं बिना किसी देरी के अपने जमावड़े को खत्म करना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि धरना स्थलों पर भी कोरोेना ने अपने पैर पसार लिए हैं और कुछ मौतें भी हुई है। समझना कठिन है कि किसान संगठनों की हिमायत करने वाले समाजसेवी संगठन और राजनीतिक दल किसान नेताओं पर इसके लिए दबाव क्यों नहीं बनाते कि वे अपना धरना खत्म करें? सवाल यह भी है कि कृषि कानूनों पर विशेषज्ञ समिति की समीक्षा रपट पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला कब सुनाएगा? क्या यह विचित्र नहीं कि जो सुप्रीम कोर्ट कोरोना संकट से जुड़ी समस्याओं का स्वत: संज्ञान ले रहा है, वह संक्रमण फैलाने का कारण बन रहे किसान आंदोलन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझ रहा है? बेहतर हो कि वह कोरोना काल में भी किसान आंदोलन जारी रहने का स्वत: संज्ञान लेने के साथ कृषि कानूनों पर अपना फैसला सुनाए। केंद्र सरकार को भी किसानों को समझा-बुझाकर वापस भेजने की कोई पहल करनी चाहिए।


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