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रणनीतिक और सामरिक महत्व के चलते आज अंतरिक्ष अनुसंधान किसी भी राष्ट्र की वैज्ञानिक उन्नति का एक बड़ा मापदंड बन चुका है
रणनीतिक और सामरिक महत्व के चलते आज अंतरिक्ष अनुसंधान किसी भी राष्ट्र की वैज्ञानिक उन्नति का एक बड़ा मापदंड बन चुका है. लिहाजा हमारे सबसे करीबी खगोलीय पिंड चांद पर भी जाने की होड़ एक नए सिरे से शुरू हो चुकी है क्योंकि जो भी देश चांद पर सबसे पहले कब्जा करेगा उसका अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दबदबा बढ़ेगा. चंद्रमा की दुर्लभ खनिज संपदा ने भी इसे सबका चहेता बना दिया है.
वर्ष 2021 में कोविड-19 महामारी की मार दुनिया भर के अंतरिक्ष अनुसंधानों पर पड़ी. 2022 में भी कोविड-19 के हावी रहने के आसार हैं. 2021 में भले ही चांद से जुड़ी खबरें गाहे-बगाहे सुर्खियों में रहीं, लेकिन बीते साल कोई भी रोबोटिक मिशन या स्पेसक्राफ्ट चांद की ओर नहीं भेजा गया और न ही कोई इसकी सतह पर उतरा. विभिन्न देशों की सरकारी-प्राइवेट स्पेस एजेंसियों ने चांद पर रोबोटिक रोवर और स्पेसक्राफ्ट भेजने के लिए अंतरिक्ष मिशनों की योजनाएं बनाईं हैं इसलिए चंद्र अन्वेषण के लिहाज से 2022 बेहद खास साल साबित होने वाला है.
इस साल की शुरुआत ही इस खबर से हुई है कि चीन ने पृथ्वी पर ही चंद्रमा के अध्ययन को और भी बेहतर करने के मकसद से आर्टिफिशियल लो-ग्रेविटी रिसर्च फैसिलिटी या एक छोटे कृत्रिम चांद का निर्माण किया है. इस कृत्रिम चांद (आर्टिफिशियल मून) की मदद से वैज्ञानिक धरती पर ही उन महंगे उपकरणों और तकनीकों का भली-भांति परीक्षण कर पाएंगे जिन्हें चंद्रमा पर भेजने की योजना बनाई जा रही है. ऐसे में यह आर्टिफिशियल मून चांद के वातावरण को समझने और उसके हिसाब से वैज्ञानिक उपकरणों को विकसित करने में काफी मददगार साबित होगा.
इसके अलावा हाल ही में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपने चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम (लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम) के चौथे चरण को मंजूरी दे दी है, जिसके अंतर्गत चीन भविष्य में रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस के साथ मिलकर चांग ई-6, चांग ई-7 और चांग ई-8 मिशनों के जरिए चांद पर 'लूनर रिसर्च स्टेशन' को स्थापित करेगा. चीन के पास पहले से ही 2030 तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद की जमीं पर उतारने की योजना है. चीन का लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम 2022 में रफ्तार पकड़ सकता है.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी अपने आर्टेमिस मिशन के ज़रिए इंसानों को तकरीबन 50 साल बाद एक फिर से चांद पर उतारने की योजना बना रहा है. नासा 2022 से आर्टेमिस मिशन पर काम शुरू करने जा रहा है. नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह मिशन इस दशक का सबसे ख़ास और महत्वपूर्ण मिशन होने जा रहा है जो कि अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा. नासा का कहना है कि भले ही यह मिशन चांद से शुरू होगा पर यह निकट भविष्य के मंगल अभियानों के लिए वरदान साबित होगा क्योंकि चांद पर जाना, मंगल पर पहुंचने से पहले आने वाला एक बेहद अहम पड़ाव है. दरअसल, नासा चांद को मंगल पर जाने के लिए एक लॉन्चपैड की तरह इस्तेमाल करना चाहता है.
नासा 12 मार्च 2022 को मानव रहित आर्टेमिस-1 मिशन को दुनिया के सबसे ताकतवर रॉकेट एसएलएस (स्पेस लॉन्च सिस्टम) से लॉन्च करने वाला है. आर्टेमिस-1 नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत उड़ानों की शृंखला में पहला होगा.
इसके अलावा रूस, जापान, साउथ कोरिया और भारत भी 2022 में अपने चंद्र अन्वेषण यान चांद की ओर भेजने वाले हैं. यही नहीं, कई निजी कंपनियां चांद पर सामान व उपकरण पहुंचाने और प्रयोगों को गति देने के उद्देश्य से सरकारी स्पेस एजेंसियों का ठेका हासिल करने की कतार में खड़ी हैं. लब्बोलुआब यह है कि इस साल चांद पर पहुंचने के लिए होड़ मचती दिख सकती है. इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल की वैज्ञानिक डॉ. जोई लियोनहार्ट के मुताबिक यह साल एक नए तरह के स्पेस रेस का साक्षी बनेगा और इस सूची में कई और देशों के नाम जुड़ेंगे.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि फिलहाल चंद्रमा से जुड़े रोबोटिक मिशनों, जमीनी प्रेक्षणों और प्रयोगों के मामलों में चीन की सरकारी स्पेस एजेंसी चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (सीएनएसए) अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से कहीं आगे है. चीन ने चांद पर सफलता पूर्वक अपने कई रोवर उतारें हैं, धरती पर ही बैठकर चांद का सटीक अवलोकन करने की उन्नत प्रणालियाँ विकसित कीं हैं और चंद्रमा की सतह की खुदाई करके डेढ़ किलोग्राम से ज्यादा पत्थर और मिट्टी के नमूने (सैंपल्स) पृथ्वी पर लाने में कामयाब रहा है. चांद की सतह से नमूने लाने का कारनामा अभी तक अमेरिका और सोवियत रूस ही कर पाए हैं. पिछले 40 वर्षों में चीन के अलावा किसी भी देश को यह कामयाबी नहीं मिली है. चीन ने जिस चांग ई-5 मिशन के जरिए पत्थर और मिट्टी के नमूने इकट्ठे किए थे, उसे चांद तक पहुंचाने के लिए लॉन्ग मार्च रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था जिसे दुनिया के सबसे ताकतवर रॉकेटों में से एक माना जाता है. चीन चांद के पृथ्वी से न दिखाई देने वाले हिस्से में भी पहली बार चांग ई-4 मिशन के तहत एक मानवरहित यान उतारने में सफल रहा है.
2019 में भारत के चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर-रोवर बंडल के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद, भारत इस साल की तीसरी तिमाही में चंद्रयान-3 मिशन के तहत दोबारा लैंडर और रोवर को चांद पर भेजने की योजना बना रहा है. चंद्रयान-2 मिशन के दौरान मिले सबक के आधार पर चंद्रयान-3 मिशन की तैयारी की गई है. इसमें विशेष रूप से डिजाइन, क्षमता बढ़ाने सहित अन्य तकनीकी बातों का ध्यान रखा गया है. चंद्रयान-2 के दौरान लॉन्च किए गए ऑर्बिटर का इस्तेमाल चंद्रयान-3 के लिए किया जाएगा. भारत जैसे विकासशील देश के लिए चंद्र अभियान खुद को तकनीकी तौर पर उन्नत दिखाने का एक सुनहरा मौका होगा.
इस साल चाँद पर जाने की तैयारी में विभिन्न देशों की सरकारी और निजी स्पेस एजेंसियां पूरे दमखम के साथ जुटीं हैं. साउथ कोरिया की स्पेस एजेंसी 'कोरिया एयरोस्पोस रिसर्च इंस्टीट्यूट' इस साल अगस्त में चांद की ओर अपना पहला 'कोरिया पाथफाइंडर लूनर ऑर्बिटर मिशन' भेजेगा. यह ऑर्बिटर चंद्रमा के भौगोलिक और उसकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करेगा. इसी साल रूस भी अपने स्वदेशी लैंडर लूना-25 को चांद की सतह पर उतारने की तैयारियों में जुटा हुआ है. गौरतलब है कि पिछले 45 वर्षों में यह चांद की ओर रूस का पहला अभियान होगा. इनके अलावा जापानी स्पेस एजेंसी (जैक्सा) भी इसी साल अप्रैल में चांद पर अपना स्मार्ट लैंडर उतारने की तैयारियों में जुटा हुआ है.
फिर भी, इस दशक में लांच होने वाले बड़े चंद्र मिशनों में से ज़्यादातर अमेरिका और चीन के इर्द-गिर्द ही केंद्रित हैं. अमेरिका और चीन के बीच चांद को लेकर एक होड़ छिड़ती दिखाई दे रही है. कई अंतरिक्ष विशेषज्ञों का यहाँ तक मानना है कि चंद्रमा की ओर अमेरिका की वापसी चीन के इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ जाने की वजह से ही हो रही है. जहां चीन तकनीक के स्तर पर खुद को ताकतवर दिखाकर महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ जाना चाहता है, वहीं अमेरिका यह दिखाना चाहता है कि दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होने का खिताब अभी भी उसी के पास है. आने वाले दिनों में चांद को लेकर चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा और भी तेज हो सकती है.
चीन और अमेरिका के बीच छिड़ी चांद पर जाने की होड़ में भारत (इसरो) के लिए दोनों के ही दरवाजे खुले हुए हैं. हालांकि भारत के लिए यह उलझन की स्थिति बन गई है कि वह दोनों गुटों में से किसी एक को चुने या फिर गुट निरपेक्षता की नीति अपनाते हुए अकेले ही चंद्र अन्वेषण की राह में अपने कदम बढ़ाए. लेकिन अगर भारत गुट निरेपेक्ष रहकर दोनों के समानांतर अपने चंद्र अभियानों को अंजाम देना चाहता है तो हमारे हाथ से एक बड़े मौके के निकलने का डर है. राजनीतिक रूप से भारत का चीन से जुड़ना बेहद टेढ़ी खीर है, ऐसे में उसके पास सबसे बढ़िया विकल्प नासा के लूनर प्रोग्राम से जुड़ना हो सकता है. बहरहाल, इनमें से किसी एक गुट में शामिल होना है या चांद को लेकर अकेले ही आगे बढ़ना है, इसका निर्णय किसी न किसी दिन हमारे अंतरिक्ष नीति निर्माताओं को करना ही होगा. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप तकनीक विशेषज्ञ
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