सम्पादकीय

मजहबी मानसिकता का सवाल?

Subhi
14 April 2022 4:10 AM GMT
मजहबी मानसिकता का सवाल?
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भारत ऐतिहासिक काल से ही विभिन्न मत-मतान्तरों के मध्य ऐसे भौगोलिक राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व को संजो कर चलता रहा है जिसमें विविधता सदैव इसका गहना बनी रही।

आदित्य चोपड़ा: भारत ऐतिहासिक काल से ही विभिन्न मत-मतान्तरों के मध्य ऐसे भौगोलिक राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व को संजो कर चलता रहा है जिसमें विविधता सदैव इसका गहना बनी रही। यहां सम्राट चन्द्रगुप्त अपने अन्तिम जीवन काल में 'जैन मत' में दीक्षित हो गया औऱ उसका पौत्र सम्राट अशोक 'भगवान बुद्ध' की शरण में चला गया। सनातन धर्म के भीतर भी 'शैव' और 'वैष्णव' काविवाद रहा और फिर इनमें भी 'द्वैत' और 'अद्वैत' द्वन्द छिड़ा रहा। 'साकार' व 'निराकार' का मतभेद भी इसके समानान्तर चलता रहा मगर कभी भी अपने पंथ या मत के अनुसार मान्यता निर्वाह करने पर समाज ने कभी कोई विरोध नहीं किया। बेशक बौद्ध धर्म को राज्याश्रय मिलने पर सामाजिक मतभेद के कुछ दृष्टान्त सामने आते हैं मगर उनका स्वरूप कभी हिंसक नहीं हो पाया। इसका प्रमाण यह है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में दक्षिण भारत के सभी राजा सनातन धर्म के मानने वाले ही थे किन्तु सातवीं सदी में भारत में इस्लाम धर्म के पदार्पण के बाद जिस प्रकार की हिंसक घटनाएं हुईं उनसे इस देश में धार्मिक असिहुष्णता का वातावरण बनना शुरू हुआ जिसका शिकार सबसे पहले सिन्ध प्रान्त बना और बाद में पंजाब में इसका प्रभाव बाद में भारत पर हुए मुस्लिम आक्रान्ताओं के हमलों के साथ बढ़ता गया और कालान्तर में उनके भारत के शासक बन जाने पर इस्लाम का प्रभाव उत्तर भारत में भी फैला। यह एेसा पुख्ता इतिहास है जिसका खंडन कम्युनिस्ट इतिहासकार भी नहीं कर सकते हैं। भारत की हिन्दू जनता पर 'जजिया' कर लगाने की प्रथा सबसे पहले सिन्ध के हिन्दू राजा दाहिर को परास्त करने वाले मोहम्मद बिन कासिम ने शुरू की। यह प्रथा इतनी जालिमाना थी कि सुल्तान के कारिन्दे हिन्दू प्रजा से जजिया वसूलते समय कर रूप में अदा की जानी वाली धनराशि को उनके हाथों से छीनते थे और उनके हाथों पर थूक तक देते थे। हिदायत होती थी कि जजिया देते समय आंखें झुकी रहें और यदि एेसा करने में कोई व्यक्ति हिचकिचाहट दिखाता था तो कारिन्दे जमीन से मिट्टी उठा कर उसकी आंखों पर फैंक देते थे। इस जिल्लत की जिन्दगी से तंग आकर भारत में धर्म परिवर्तन की शुरूआत हुई लेकिन मुगल बादशाह अकबर ने इन हालात को बदल दिया और जजिया की वसूली पर केवल रोक ही नहीं लगाई बल्कि कट्टरपंथी इस्लामी उलेमाओं से अपनी सल्तनत को बचाने के लिए नये मजहब 'दीन-ए-इलाही' की भी स्थापना की जिसका विरोध हिन्दू व मुसलमान दोनों की तरफ से ही किया गया। अकबर के बाद जहांगीर व शाहजहां के शासन में यथास्थिति में परिवर्तन तो आया मगर वह बहुत हिंसक नहीं था और मुगलिया सल्तनत की जड़ें मजबूत करने से इस तरह बावस्ता था कि मुल्क की हिन्दू रियाया को भी हुकूमत चलाने में बराबर का शरीक किया जाये। इसके बाद औरंगजेब ने तस्वीर को पूरी तरह पलट दिया और हिन्दू रियाया पर जुल्मों-सितम का दौर शुरू करके पुनः मोहम्मद बिन कासिम के दौर में लौटना चाहा। इसके बाद 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो जाने के बाद जब मुगलिया सल्तनत लड़खड़ाने लगी तो हिन्दू स्वराज्य का दौर शुरू हुआ मगर सितम यह हुआ कि मुस्लिम सल्तनत को मुसलमान आक्रमणकारियों नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली ने ही लूटा । जिसके बाद अंग्रेज ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत को कब्जा लिया हालांकि इसी दौर में दक्षिण में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर देनी चाही मगर वह कामयाब नहीं हो सका लेकिन तभी उत्तर भारत में महाराजा रणजीत सिंह का उदय हुआ औऱ उन्होंने काबुल से लेकर आगरा तक पंजाब सल्तनत को तामीर कर डाला। यह पूरा इतिहास बहुत संक्षिप्त में लिखने का एक ही आशय है कि हम भारत के उस उलझे हुए इतिहास का वैज्ञानिक विश्लेषण कर सकें जिसके मूल में यह तथ्य विद्यमान है कि भारत के मुसलमान वास्तव में 'हिन्दू' मुसलमान हैं क्योंकि उनके पूर्वज इसी भारत की धरती के मूल निवासी रहे हैं और किन्हीं कारणों से धर्म परिवर्तन करके वे मुस्लिम बने हैं। अतः इस धरती की संस्कृति के वे भी उतने ही हिस्सेदार हैं जितने कि हिन्दू। मगर सबसे बड़ी दिक्कत भारत के हिन्दू व मुसलमानों के बीच तब आयी जब 1857 में अंग्रेजों द्वारा विफल बनाये गये प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के बाद सर सैयद अहमद खां जैसे अशराफिया मुसलमानों ने अंग्रेजों को यह सलाह दी कि वे अपनी सेना में हिन्दू व मुसलमानों को आपस में मिलने न दें और इन्हें अलग-अलग रेजीमेंटों में बांट कर रखें और मुसीबत के समय इनका उपयोग एक-दूसरे के खिलाफ करें।यहीं से भारत में हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रीयता का सवाल उठा और भारत के पसमान्दा मुसलमानों का उपयोग उन्हें धर्मांध बना कर कालान्तर में मुहम्मद अली जिन्ना ने किया और एेलान किया कि हिन्दू व मुसलमान कभी एक साथ नहीं रह सकते क्योंकि दोनों की धार्मिक मान्यताएं एक-दूसरे के विपरीत हैं। इनकी सामाजिक रवायतें अलग हैं। हिन्दू जिन्हें अपना नायक मानते हैं मुसलमानों के लिए वे खलनायक हैं। जिन्ना की इस जहनियत को भारत के मुसलमानों में मजहब की दुहाई देते हुए इस तरह भरा गया कि 1947 में भारत के दो टुकड़े हो गये लेकिन स्वतन्त्र भारत में बचे हुए मुसलमानों को लगातार मजहब की चारदीवारी में ही कैद रखने को हुकूमतों ने अपनी नीतियां बनाईं जिसकी वजह से मुस्लिम तुष्टीकरण का बयानिया पैदा हुआ और मुस्लिम वर्ग केवल एक वोट बैंक बन कर रह गया। मजहबी हुकूकों को सुरक्षित रखने के नाम पर उनके दिल से जिन्ना की उस जहनियत को पूरी तरह नहीं निकाला जा सका जिसकी वजह से आज 'भारत माता की जय' तक कहने पर इस वर्ग के कथित नेताओं को गुरेज होता है और वन्देमातरम् कहना उन्हें नहीं भाता। यही वजह है कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर तक को मुस्लिम नेता अपने मजहब के खिलाफ बताते हैं। संपादकीय :अमेरिका में गन तंत्रकेसरी क्लब में मौजां ही मौजांकश्मीर रट छोड़ें शहबाज शरीफ'अंकल सैम' का बदला रुखमौत के सीवररामनवमी पर साम्प्रदायिक हिंसाआज इंडोनेशिया में दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं और यह एक इस्लामी देश है मगर यहां भगवान राम को अपनी सांस्कृतिक पहचान माना जाता है और भारत से बेहतर राम लीलाएं इस देश में होती हैं। इसके समानान्तर भारत में जब रामनवमी के अवसर पर शोभायात्रा निकलती है तो मुस्लिम मोहल्लों से उन पर पत्थर बरसाये जाते हैं। खरगौन हो या करोली अथवा लोहारदगा सभी के पीछे यही मानसिकता है। इसी मनसिकता में संशोधन करने की आवश्यकता है। मस्जिद के आगे लआऊडस्पीकर बजाने से क्यों मुस्लिम नाराज होते हैं जबकि 24 घंटे में पांच बार मस्जिदों से दी जाने वाली अजान को सभी हिन्दू सुनते हैं जबकि इसमें तो एेलान किया जाता है कि पूरी दुनिया का एक ही अल्लाह है।

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