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Vijay Garg: भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर लंबे समय से विचार- विमर्श होता रहा है। आर्थिक उदारीकरण के बाद, गुणवत्ता की परिभाषा आर्थिक कारकों और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के प्रभाव से परिवर्तित हुई है। पारंपरिक रूप से, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करना तथा उन्हें आजीवन सीखने के लिए तैयार करना रहा है। हालांकि, वर्तमान सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों में इस अवधारणा को स्पष्ट करना तथा उसे प्राप्त करना और जटिल होता जा रहा है यह एक चुनौती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में शिक्षा की पहुंच, समानता और गुणवत्ता जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया है। हालांकि, इसमें कुछ विरोधाभास भी दिखते हैं। एक ओर यह सभी शिक्षार्थियों के लिए सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समान पहुंच पर जोर देती है। वहीं दूसरी ओर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निजी परोपकारी प्रयासों पर निर्भरता जताती है, जिससे इसकी समावेशिता और व्यवहार्यता को लेकर गंभीर चिंता पैदा होती है।
शिक्षा में 'गुणवत्ता' की अवधारणा बहुआयामी है इसमें व्याख्यान, शिक्षक, पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या की संरचना, छात्रों की गुणवत्ता, शैक्षणिक संस्थान, परीक्षा प्रक्रिया का प्रबंधन और संस्थागत सुविधाओं की पर्याप्तता सहित कई पहलू समाहित हैं। इन सभी कारकों का सम्मिलित प्रभाव शिक्षा की समग्र गुणवत्ता निर्धारित करता है। शिक्षा की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना विवादास्पद काम रहा है। इसमें यह विचार करना कठिन होता है कि शिक्षण विधियों और पाठ्यचर्या में कितनी प्रौद्योगिकी शामिल की जाए। अगर शिक्षकों को पर्याप्त बुनियादी ढांचा, वित्तीय सहायता, पुस्तकालयों और र अनुसंधान सुविधाओं जैसे संसाधन प्रदान किए जाएं तथा उन्हें अत्यधिक प्रशासनिक कार्यों से मुक्त रखा जाए, तो वे शिक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। अपनी शिक्षण विधियों में नवाचार ला सकते हैं। ऐसी | परिस्थितियों में 1 में, गुणवत्ता स्वाभाविक से सुधरती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य सभी विद्यार्थियों के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास पर केंद्रित होता है, जो लिंग, नस्ल, जातीयता, सामाजिक-आर्थिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति की परवाह किए बिना समान अवसर प्रदान करता है।
यूरोपीय चिंतक वान केमेनेड और उनके सहयोगियों के अनुसार, शिक्षा की गुणवत्ता को चार मुख्य बिंदुओं से समझा जा सकता है: उद्देश्य मानदंड, विषय और मूल्य शिक्षा का लक्ष्य क्या है? किस प्रकार का ज्ञान और कौशल प्रदान करना है ? गुणवत्ता की को मापने के लिए क्या पैमाने मानदंड हैं? किस विषय या क्षेत्र में गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जा रहा है? शिक्षा में किन मूल्यों महत्त्व दिया जाता है? इन बिंदुओं से पता चलता है कि शिक्षा की गुणवत्ता को समझना कितना जटिल है, क्योंकि ये अलग-अलग परिस्थितियों और लक्ष्यों के अनुसार बदलते रहते हैं। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को परिभाषित करना और उसका मूल्यांकन करना चुनौती बना हुआ है। अक्सर हम आंकड़ों का इस्तेमाल करते हैं, जो देखने में तो निष्पक्ष लगते हैं, लेकिन वास्तव में उनके चुनाव या बहिष्कार मैं कहीं न कहीं व्यक्तिपरकता होती है ये तरीके गुणवत्ता की सही तस्वीर नहीं दिखाते और अनजाने में संस्थानों तथा विद्यार्थियों के लिए नुकसानदायक भी हो सकते हैं। इसलिए शिक्षा में गुणवत्ता को समझने के लिए हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो सभी पहलुओं पर विचार करे। उच्च शिक्षा और जीवन-वृत्ति परिणामों का आपस में संबंध एवं गुणवत्ता की चर्चा को और पेचीदा बना देता है। अगर किसी स्नातक को नौकरी नहीं मिलती या उसकी जीवन-वृत्ति में तरक्की नहीं होती, तो आवश्यक नहीं कि यह उच्च शिक्षा की कमियों का नतीजा हो। इसकी वजह व्यापक आर्थिक चुनौतियां हो सकती हैं, बढ़ती संख्या में स्नातकों के लिए पर्याप्त रोजगार सृजन की कमी भी हो सकती है। हालांकि उच्च शिक्षा तक पहुंच का विस्तार महत्त्वपूर्ण है, लेकिन समानता और सामर्थ्य की दोहरी चिंताओं को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आज के समय में, छात्र और उनके परिवार सिर्फ उच्च शिक्षा के अवसर नहीं, बल्कि कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, जिसमें सभी के लिए समान अवसर हों, की अपेक्षा करते हैं। यह कोई गलत भी नहीं। शिक्षा के समान अवसर तो मिलना ही चाहिए |
इसके अलावा, आजकल विपणन और रैंकिंग के जरिए गुणवत्ता के बारे गलत धारणाओं का बढ़ता रुझान इन चुनौतियों को और बढ़ाता है। गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए जो नीतिगत हस्तक्षेप किए जाते हैं, वे अक्सर ‘मध्यमता के समुद्र' में अलग-थलग 'उत्कृष्टता के द्वीप' पैदा करते हैं, जो प्रणालीगत सुधार लाने में विफल रहते हैं। गुणवत्ता एक जटिल परिघटना है, जिसे किसी आसान सूत्र में बांधा जा सकता। इसे समझने की जरूरत है। परंपरागत रूप से, सीटों की संख्या के मुकाबले आवेदकों की संख्या जैसे कुछ मापदंडों का इस्तेमाल उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता दिखाने के लिए किया जाता रहा है। मगर मापदंड कार्यक्रम की लोकप्रियता को ज्यादा महत्त्व देकर विशिष्टता और अभिजात्यवाद को बढ़ावा दे सकते हैं। योग्यता के आधार पर होने वाली चयन प्रक्रियाएं अक्सर उन छात्रों को अधिक फायदा पहुंचाती हैं, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों से होते हैं। इससे असमानता बनी रहती है और जो लोग हाशिये पर हैं, उनके लिए उच्च शिक्षा तक पहुंच सीमित हो जाती है। इसके अलावा, अगर हम सिर्फ आर्थिक आधार पर गुणवत्ता मापने पर जोर देते देते हैं, तो उन सूक्ष्म सामाजिक और आर्थिक कारकों को नजरअंदाज कर देते हैं, जो छात्रों के परिणामों को प्रभावित करते हैं। इससे एक ऐसा दुश्चक्र बन बन जाता है, जहां विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि के छात्रों के होने की संभावना ज्यादा होती है और उच्च शिक्षा में असमानता बनी रहती है।
मूल्यांकन एवं सफल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (नैक) | जैसे संगठनों द्वारा अपनाए गए समग्र गुणवत्ता मापदंडों ने हमेशा इन जटिलताओं को समझने और सुधारने की की कोशिश की है, लेकिन हाल के वर्षों में इनकी प्रभावशीलता कम होती जा रही है। यह चिंता की बात है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के केंद्र में शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए सक्षम शिक्षकों | की नियुक्ति और उन्हें बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि छात्रों को सार्थक सीखने के विधियों के अनुभव मिल सकें। शिक्षकों को नवाचार करने और ऐसी शिक्षण का इस्तेमाल करने के लिए सहायता मिलनी चाहिए, जो आलोचनात्मक सोच और समग्र विकास को बढ़ावा दें। शिक्षकों की शिक्षण दक्षता के तरीके को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना जरूरी है। शिक्षकों की शिक्षण गुणवत्ता को सुधारने के लिए पाठ्यक्रम और व्यवस्था को आज के समय के अनुरूप प्रासंगिक और असरदार बनाने की आवश्यकता है।
शिक्षा में सार्थक सुधार के लिए, यांत्रिक शिक्षण पद्धति से हट कर, हमें ऐसे तरीकों को अपनाना होगा, जिनमें छात्र सक्रिय रूप से भाग लें और संवादात्मक शिक्षण विधियों का प्रयोग अनिवार्य हो। शिक्षकों को केवल निर्देश देने के बजाय वास्तविक रूप से सीखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, इसमें विद्यार्थियों की अंतर्निहित क्षमताओं का विकास, रचनात्मकता को बढ़ावा और सामाजिक जिम्मेदारी का संवर्धन शामिल है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य ऐसे नागरिकों का निर्माण होना चाहिए, जो समाज में सार्थक योगदान दे सकें। वे मानवीय और संवेदनशील हों। इन व्यापक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करके ही शिक्षा की वास्तविक गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है।
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Gulabi Jagat
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