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- निजी स्वतन्त्रता और...
कथित कांग्रेस 'टूलकिट' से शुरू हुआ विवाद अब व्हाट्सएप सोशल मीडिया मंच के दिल्ली उच्च न्यायालय में लगाई गई गुहार पर आकर ठहर आ गया है। इस मामले में मूल मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता व निजी आजादी के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा का भी है। दोनों ही पक्षों पर हमें गंभीरता के साथ विचार करके ऐसे हल पर पहुंचना होगा जिससे व्यक्ति की निजी स्वतन्त्रता भी अक्षुण्य रह सके और राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी आंच न आये।
इस मामले में भारत का संविधान ही हमारा मार्गदर्शन कर सकता है जिसमें निजी स्वतन्त्रा को मूलभूत अधिकार कहा गया है। यह अधिकार किसी भी नागरिक द्वारा अपने विचार व्यक्त करने से लेकर रहन-सहन, खानपान व जीवन साथी चुनने से लेकर जीवन जीने की शैली पर लागू होता है। जाहिर है इस काम में कोई भी सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती मगर जब राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल आता है तो हमें अपने बीच में ही रह रहे एेसे व्यक्तियों की निशानदेही करनी होती है जिनके कार्यों से राष्ट्र की एकता व सुरक्षा प्रभावित होती है।
इस श्रेणी में वे लोग भी निश्चित रूप से आते हैं जो सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने से लेकर राष्ट्रद्रोही कृत्यों में संलग्न होते हैं। पेंच यहां आकर फंस रहा है कि एेसे व्यक्तियों की निशानदेही करने में सोशल मीडिया की जिम्मेदारी व जवाबदेही किस हद तक हो ? तकनीकी रूप से सोशल मीडिया मंच चाहे वह ट्विटर हो या व्हाट्सएप अथवा फेसबुक सभी नागरिक व समाज के बीच में मध्यस्थ होते हैं। कोई भी व्यक्ति इन पर अपने विचार लिख सकता है जिसे ये मंच अपने अन्य उपयोगकर्ताओं को परोस देते हैं।
उसमें सुधार करने का अधिकार इनके पास नहीं होता है। यदि कोई तीसरा व्यक्ति किसी पठनीय सामग्री पर एतराज करता है या उसे तथ्यों के विरुद्ध या तोड़-मरोड़ कर पेश करने योग्य समझता है तो लिखने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार भी इन मंचों के पास नहीं होता है। अधिक से अधिक ये उसके द्वारा लिखे गये कथन को हटा या मिटा सकते हैं अथवा उस पर अपना मंच प्रयोग करने से रोक सकते हैं जिसे अकाऊंट प्रतिबन्धित करना कहते हैं। एेसे व्यक्ति पर कार्रवाई तो भारत के फौजदारी कानून के तहत करने के अधिकार केवल शासन को ही हैं।