सम्पादकीय

जीवन-मरण का सवाल खड़ा

Gulabi
21 Oct 2020 2:35 AM GMT
जीवन-मरण का सवाल खड़ा
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अब ये आम धारणा बन गई है कि साल 2020 लोगों की जिंदगी में नहीं आया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अब ये आम धारणा बन गई है कि साल 2020 लोगों की जिंदगी में नहीं आया। एक पूरे साल को जिंदगी से घटाकर देखने की मजबूरी इसलिए बनी है कि इस महामारी के कारण जो मुश्किलें खड़ी हुईं, वो दूर होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसकी एक मिसाल दिल्ली के पटाखा व्यापारियों में छाया मायूसी का आलम है। लॉकडाउन और महामारी के कारण पटाखों की फैक्टरियां बंद रहीं, जिस वजह से इस बार अच्छे व्यापार की उम्मीद कम ही है। वैसे भी प्रदूषण व सामान्य पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के चलते पटाखा व्यापार बीते कुछ सालों से ठीक नहीं रहा। दिवाली के अलावा शादी जैसे अन्य मौके पर भी लोग पटाखे जलाकर खुशियां मनाते हैं, हालांकि इस बार पटाखों की मांग ना के बराबर है। अब ग्रीन पटाखों की नई किस्में बनने लगी हैं। ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों के मुकाबले 30 फीसद तक प्रदूषण कम करते हैं। लेकिन ये सामान्य पटाखों की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं। जब आर्थिक तबाही का आलम है, तो महंगे पटाखे आखिर कितने लोग चलाएंगे? इसीलिए पिछले साल ग्रीन पटाखे बेचने वाले दुकानदार इस बार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ग्रीन पटाखे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन के मानकों के अनुरूप बनाए जाते हैं। ये पटाखे तमिलनाडु के प्रसिद्ध शिवकाशी से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में बनते रहे हैं। लेकिन इस साल परेशानी यह है कि डिमांड बेदह कम है। व्यापारियों के मुताबिक इस बार 20 फीसदी डिमांड ही है और सप्लाई उससे भी कम है। बीते 5 साल में पटाखा व्यापार की स्थिति देखते हुए आधे पटाखा व्यापारी काम ही नहीं कर रहे हैं। वे कोई और काम कर रहे हैं या फिर बेरोजगार बैठे हैं। वैसे लोग अब ज्यादातर लोग सीजन के हिसाब से काम करते हैं- यानी होली के वक्त रंग बेचना, कभी पतंग बेचना, शादियों के वक्त शादियों का काम करना आदि। मगर इस साल कोविड-19 की वजह किसी काम में तेजी नहीं है। नतीजतन, हजारों लोगों के सामने जीवन-मरण का सवाल खड़ा है। इस व्यापार में सभी धर्म के लोग जुड़े हुए हैं। दुखद यह है कि तमाम आर्थिक चर्चाओं में इन तबकों की कोई बात नहीं होती।

एक पूरे साल को जिंदगी से घटाकर देखने की मजबूरी इसलिए बनी है कि इस महामारी के कारण जो मुश्किलें खड़ी हुईं, वो दूर होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसकी एक मिसाल दिल्ली के पटाखा व्यापारियों में छाया मायूसी का आलम है। लॉकडाउन और महामारी के कारण पटाखों की फैक्टरियां बंद रहीं, जिस वजह से इस बार अच्छे व्यापार की उम्मीद कम ही है। वैसे भी प्रदूषण व सामान्य पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के चलते पटाखा व्यापार बीते कुछ सालों से ठीक नहीं रहा। दिवाली के अलावा शादी जैसे अन्य मौके पर भी लोग पटाखे जलाकर खुशियां मनाते हैं, हालांकि इस बार पटाखों की मांग ना के बराबर है। अब ग्रीन पटाखों की नई किस्में बनने लगी हैं। ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों के मुकाबले 30 फीसद तक प्रदूषण कम करते हैं। लेकिन ये सामान्य पटाखों की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं। जब आर्थिक तबाही का आलम है, तो महंगे पटाखे आखिर कितने लोग चलाएंगे? इसीलिए पिछले साल ग्रीन पटाखे बेचने वाले दुकानदार इस बार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ग्रीन पटाखे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन के मानकों के अनुरूप बनाए जाते हैं। ये पटाखे तमिलनाडु के प्रसिद्ध शिवकाशी से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में बनते रहे हैं। लेकिन इस साल परेशानी यह है कि डिमांड बेदह कम है। व्यापारियों के मुताबिक इस बार 20 फीसदी डिमांड ही है और सप्लाई उससे भी कम है। बीते 5 साल में पटाखा व्यापार की स्थिति देखते हुए आधे पटाखा व्यापारी काम ही नहीं कर रहे हैं। वे कोई और काम कर रहे हैं या फिर बेरोजगार बैठे हैं। वैसे लोग अब ज्यादातर लोग सीजन के हिसाब से काम करते हैं- यानी होली के वक्त रंग बेचना, कभी पतंग बेचना, शादियों के वक्त शादियों का काम करना आदि। मगर इस साल कोविड-19 की वजह किसी काम में तेजी नहीं है। नतीजतन, हजारों लोगों के सामने जीवन-मरण का सवाल खड़ा है। इस व्यापार में सभी धर्म के लोग जुड़े हुए हैं। दुखद यह है कि तमाम आर्थिक चर्चाओं में इन तबकों की कोई बात नहीं होती।

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