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- स्वास्थ्य कर्मियों की...
कोरोना की दूसरी लहर ने जिस अप्रत्याशित तरीके से लोगों की जान ली, उससे तमाम बुनियादी सबक भी मिले हैं। इनमें सबसे प्रमुख है एलाइड यानी सहायक सॢवसेज की गुणवत्ता। यदि ईमानदारी से कोई ऑडिट किया जाए तो यह प्रमाणित होगा कि भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली सहायक सेवाओं की भारी कमी का सामना कर रही है। संक्रमण की दूसरी लहर में तमाम लोग अस्पतालों में इसलिए जान से हाथ धो बैठे, क्योंकि उन्हेंं समय पर वेंटिलेटर नहीं लगाया जा सका। आक्सीजन कंसंट्रेटर पर मरीजों को रखने के बाद उनकी सतत निगरानी नहीं हुई या यह ध्यान नहीं रखा गया कि किस क्षमता का कंसंट्रेटर किस मरीज को लगाया जाना चाहिए? आक्सीजन पाइपलाइन से कितनी मात्रा आक्सीजन फ्लो की जानी है? उपयोग किए जा चुके उपकरणों को किस मानक विधि से नए मरीजों पर हाइजीन के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए? नतीजतन कम संक्रमित मरीज बड़ी संख्या में अस्पताल में आकर ज्यादा संक्रमित हुए और मौतों का आंकड़ा लाखों में पहुंच गया। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों पर बगैर एसओपी (मानक प्रविधि) से इलाज किया गया, जिसके चलते शहरी अस्पतालों में गंभीर मरीजों का तांता लगा गया। कई नए खुले मेडिकल कॉलेजों में वेंटिलेटर पैकिंग से बाहर नहीं निकाले जा सके, क्योंकि उन्हेंं चलाने वाले दक्ष स्टाफ की उपलब्धता नहीं थी। कई राज्यों में तमाम वेंटिलेटर मरीजों के लिए उपयोगी साबित नही हुए। हजारों की संख्या में आरटीपीसीआर के नमूने प्रयोगशालाओं में खारिज हुए, क्योंकि उन्हेंं लेते समय सावधानी नहीं बरती गई।