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![सवाल साख का है सवाल साख का है](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/04/26/1031844-bb.webp)
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अमेरिका की साख इतनी कमजोर है कि वहां से होने वाली घोषणाएं दिलचस्पी से ज्यादा सवाल पैदा करती हैं। इसीलिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए जो अमेरिकी योजना पेश की है, हालांकि वो प्रभावशाली है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता पर सवाल बने हुए हैँ। ये सवाल वाजिब है कि अगर 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी जीत गई, तो क्या होगा? इससे पहले दो मौकों पर डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों की जलवायु वचनबद्धता को उनके बाद निर्वाचित हुए रिपब्लिकन राष्ट्रपति तोड़ चुके हैँ। 1997 में बिल क्लिंटन ने अमेरिका को क्योतो प्रोटोकॉल का हिस्सा बनाया था। लेकिन साल 2001 में जीते जॉर्ज डब्लू बुश ने उससे अपने देश को निकाल लिया। बराक ओबामा ने 2015 में पेरिस संधि को संपन्न कराने में सक्रिय भूमिका निभाई। लेकिन 2017 में रिपब्लिकन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस संधि से अमेरिका को अलग कर लिया। तो मुद्दा यह है कि वही कहानी फिर नहीं दोहराई जाएगी, इसकी क्या गारंटी है? वैसे बाइडेन सचमुच ये योजना लागू कर पाएंगे, यह भी तय नहीं है। घोषित योजना पर अमल के लिए संसदीय मंजूरी की जरूरत होगी।