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मनमोहन शेट्टी की पुत्रियां पूजा और आरती शेट्टी ने ‘तेरे बिन लादेन’ नामक फिल्म बनाई थी
जयप्रकाश चौकसे। मनमोहन शेट्टी की पुत्रियां पूजा और आरती शेट्टी ने 'तेरे बिन लादेन' नामक फिल्म बनाई थी, जिसे अभिषेक शर्मा ने लिखा और निर्देशित किया था। गौरतलब है कि पाकिस्तान में रहने वाला एक पत्रकार अमेरिका में बसना चाहता है। उसे तीन बार प्रयास करने के बाद भी वीजा नहीं मिलता। अमेरिका के खिलाफ उसके मन में खुन्नस पैदा होती है। वह इसी जुगाड़ में लगा रहता है कि अमेरिका से अपने अपमान का बदला ले सके क्योंकि वीजा नहीं दिए जाने को वह अपमान मानता है।
एक दिन वह कस्बे में एक मुर्गी पालने वाले को देखता है, जिसकी शक्ल 'ओसामा बिन लादेन' से बहुत कुछ मिलती है। वह फिल्म बनाने वाले लोगों से मिलता है। इस दल के पास मूवी कैमरा है, अन्य उपकरण भी हैं परंतु पूंजी का अभाव है। पत्रकार इन सब लोगों को एकजुट करता है और धन मिलने के ख्वाब दिखाता है। सपने बेचने पर नेताओं का एकाधिकार नहीं है। फिल्मकार भी सपनों का सौदागर माना जाता है। वह पूंजी निवेश करने के साथ जोखिम भी उठाता है। अपनी प्रतिभा की पूंजी लगाता है।
इन नौसिखियों के दल में एक युवा महिला मेकअप विशेषज्ञ है। यह दल उस ओसामा के हमशक्ल से अमेरिका को धमकी देने वाले वीडियो बनाता है। टेलीविजन संचालक का व्यवसाय ठप्प पड़ा है। उसे सनसनी चाहिए। ओसामा के हमशक्ल का वीडियो टेलीविजन संचालक को बेचा जाता है। वह किसी तरह धन की जुगाड़ कर अपनी खबर देने वाले चैनल को लोकप्रिय बनाता है।
प्रसारण की खबर अमेरिका के एफबीआई को मिलती है। एफ.बी.आई अपने एजेंट का दल पाकिस्तान भेजती है। उनका सीक्रेट मिशन है। दूसरी ओर नए वीडियो जारी किए जाते हैं। चारों ओर खलबली मचती है। अमेरिका आतंकवाद के हव्वे से हमेशा भयभीत रहा है। सबसे सशक्त फौज रखने वाले देश का भय उजागर होता है।
दूसरी ओर चैनल लोकप्रिय हो जाता है। धन वर्षा होने लगती है। वीजा अर्जी अस्वीकृत होने वाला युवा प्रसन्न भी है और धन भी कमा रहा है। अमेरिका का गुप्तचर दल टेलीविजन चैनल के मालिक पर नजर रखता है। वह भी यह बात जान लेता है। इसलिए वीडियो लेने जाते समय वह बुर्का धारण कर लेता है। इस कारण हास्य के हालात पैदा होते हैं, जो कमोबेश 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' की याद दिलाते हैं।
बहरहाल अमेरिकन गुप्तचर उस युवा को गिरफ्तार करते हैं, जिसने सारा कांड रचा था। युवा खुश है कि भले ही वह कैदी बन कर अमेरिका जा रहा है, लेकिन उसका अमेरिका जाने का स्वप्न पूरा हो रहा है। अमेरिका में उस युवा से सघन जांच-पड़ताल में सच मालूम होने पर एफ.बी.आई शर्मिंदा महसूस करती है। दूसरी ओर धमकी वाले संदेश आना बंद हो जाते हैं तो वहां भी खलबली मचती है।
विरोधी राजानैतिक दल सदन में हंगामा खड़ा कर देते हैं। उस युवा से एक समझौता किया जाता है कि उसे अमेरिका में बसने दिया जाएगा और नागरिकता भी प्रदान की जाएगी, बशर्ते वह खामोश रहे। एफ.बी.आई में कुछ अफसर नौकरी से निकाले जाते हैं। दूसरी ओर मुर्गी वाले से मेकअप करने वाली निकाह कर लेती है। उसका घर बस जाता है और दूसरी बार वह अपनी मुर्गियों का दड़बा बनाता है। इस बार मुर्गियों के अंडे डॉलर के भाव बिकते हैं।
ज्ञातव्य है कि फिल्म 'फंस गए रे ओबामा' में एक प्रांत का मंत्री ही अपहरण का व्यवसाय करता है। अमेरिका से अपनी हवेली बेचने के लिए आया व्यक्ति बार-बार अपहरण किया जाता है। हर बार अपनी चतुराई से फिरौती में पैसा कमाता है। यहां तक कि अपहरण करने वाला मंत्री भी मजबूर होकर अपनी कार से ही उसे एयरपोर्ट छोड़ने जाता है। यह नायक भी आर्थिक मंदी का शिकार है।
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