सम्पादकीय

वायु प्रदूषण के हल के तौर पर देखी जा रही है इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआत को गति देने की प्रक्रिया

Gulabi
2 Nov 2020 3:08 PM GMT
वायु प्रदूषण के हल के तौर पर देखी जा रही है इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआत को गति देने की प्रक्रिया
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इसे वायु प्रदूषण की समस्या के हल के तौर पर देखा जा रहा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वर्ष 2019 में बतौर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश में इलेक्टिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए खरीदारों को आयकर में छूट और ऐसे वाहनों पर जीएसटी 12 से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया था। इसके पूर्व 2015-16 से 2018-19 के बीच हाइब्रिड और इलेक्टिक वाहनों के उत्पादन और उसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए फेम इंडिया (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्टिक व्हीकल्स इन इंडिया) योजना के तहत इस सेक्टर को 529 करोड़ रुपये बतौर इंसेंटिव प्रदान किया जा चुका था। दिल्ली सरकार ने भी इलेक्टिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए दो पहिया इलेक्टिक वाहनों की खरीद पर 30 हजार रुपये व इलेक्टिक कारों की खरीद पर डेढ़ लाख रुपये की सब्सिडी देने का एलान किया है।

इसे वायु प्रदूषण की समस्या के हल के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह वायु प्रदूषण की समस्या का श्रेष्ठ समाधान है? भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है और पिछले वर्ष यहां 3.73 लाख मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया गया। लेकिन इसका स्याह पहलू यह है कि देश में उत्पादित बिजली का 54 फीसद हिस्सा कोयले से चलने वाले प्लांटों में तैयार होता है। इन प्लांटों से बाइ प्रोडक्ट के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है।

नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक बिजली उत्पादन के लिए कोयले से चलने वाले प्लांटों पर हमारी निर्भरता वर्तमान के 47 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2030 तक 51 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। इसके लिए कोयले की खपत में वर्तमान की तुलना में 200 से 300 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी। इससे प्रतिवर्ष उत्सर्जति होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड की मात्र 159 करोड़ टन से बढ़कर 432 करोड़ टन होने की आशंका है। पार्टकिुलेट मैटर, सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन आदि का उत्सर्जन भी वर्तमान की तुलना में दोगुना होने की आशंका है। इससे वायु प्रदूषण जनित रोगों के कारण प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के भी दोगुने से तीन गुने तक होने की आशंका जताई जा रही है।

बिजली की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वर्तमान में भारत के पास कोयला ही सबसे बड़ा और उपलब्ध विकल्प है। इसके अलावा, इलेक्टिक वाहनों को चार्ज करने के लिए आवश्यक बिजली की मांग को पूरा करने के लिए भी अधिक से अधिक कोयले को जलाने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड आदि राज्यों के कोयला प्लांटों की क्षमता में तीन गुना और कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश स्थित प्लांटों की क्षमता में दोगुने की वृद्धि करने की आवश्यकता पड़ेगी। इससे वायु प्रदूषण में वर्तमान की तुलना में और अधिक वृद्धि देखने को मिलेगी।विश्व के अग्रणी साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में शामिल ईटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 7,861 कोयला पॉवर प्लांट्स के दुष्प्रभावों का अध्ययन किया और भारत के कोयला प्लांट्स को दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जक पाया। इस प्रकार स्पष्ट है कि बैटरी चालित इलेक्टिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं हैं, बल्कि ये समस्या को बढ़ाने वाले ही हैं।

स्पष्ट है कि भारत में वायु प्रदूषण रोकने और स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर इलेक्टिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाना वर्तमान परिवेश के हिसाब से अधिक कारगर प्रतीत नहीं होता है। आज जरूरत सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर, पर्याप्त और सुविधाजनक बनाने की है, ताकि अधिक से अधिक लोग निजी वाहनों का मोह त्याग कर सकें।

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