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इसीलिए ये मामला भारत में न्याय प्रणाली की अक्षमता और असफलता की कहानी बनता जा रहा
किसी ऐसी व्यवस्था, जहां उसकी न्यायिक प्रणाली न्याय सुनिश्चित करती हो, यह अपेक्षा होती कि इतनी अवधि में सुधा भारद्वाज पर लगे आरोपों का निपटारा हो गया होता। यानी अगर वे दोषी हैं, तो उन्हें सजा सुना दी जाती। अन्यथा, वे जमानत पर नहीं, बल्कि बरी होकर जेल से बाहर आतीं।
एल्गार परिषद मामले में तीन साल और तीन महीने पहले लगातार जेल में रहीं वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज पिछले जमानत पर रिहा हो गईं। तीन साल, तीन महीना लंबी अवधि है। किसी ऐसी व्यवस्था, जहां उसकी न्यायिक प्रणाली न्याय सुनिश्चित करती हो, यह अपेक्षा होती कि इतनी अवधि में उन पर लगे आरोपों का निपटारा हो गया होता। यानी अगर वे दोषी हैं, तो उन्हें सजा सुना दी जाती। अन्यथा, वे जमानत पर नहीं, बल्कि बरी होकर जेल से बाहर आतीं। लेकिन उन्हें जमानत मिल सकी, तो अभियोग पक्ष की एक प्रक्रियागत खामी के कारण। इसीलिए उनके साथ ही इसी मामले में गिरफ्तार दूसरे लोगों को ये राहत नहीं मिली है। वे बिना सजा पाए, कब तक जेल में रहेंगे, कोई नहीं जानता। दरअसल, इस मामले में लगे आरोपों पर अभी असल सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है। तो इसे क्या कहा जाएगा? क्या भारत मे आज न्याय प्रक्रिया को ही सजा नहीं बना दिया गया है? फर्जी कीजिए कि अंततः ये तमाम लोग बरी हो जाते हैँ। तो फिर इतनी लंबी अवधि तक जेल में रखने का मुआवजा क्या होगा? और क्या तब उन लोगों पर कोई कार्रवाई होगी, जिन्होंने इन पर आरोप लगाए हैं? जाहिर है, ऐसा नहीं होगा। इसीलिए ये मामला भारत में न्याय प्रणाली की अक्षमता और असफलता की कहानी बनता जा रहा है।
सुधा भारद्वाज के साथ ही 16 अन्य लोग भी इस मामले मं गिरफ्तार किए गए थे। बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीते एक दिसंबर को भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी। उसे एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच एजेंसी की अपील खारिज कर दी थी। इस मामले की पहले पुणे पुलिस जांच कर रही थी। बाद में केस एनआईए को सौंप दिया गया था। जब राज्य पुलिस मामले की जांच कर रही थी, तो भारद्वाज पुणे की येरवडा जेल में बंद थीं। एनआईए के केस संभालने के बाद उन्हें भायकला महिला जेल में रखा गया था। विशेष एनआईए अदालत ने जमानत की शर्तों के तहत 60 वर्षीय भारद्वाज को अपना पासपोर्ट जमा करने के लिए और मुंबई में ही रहने के लिए कहा है। इसके अलावा कई और शर्तें लगाई गई हैँ। उन सबका निहितार्थ है कि भारद्वाज आजादी से जीवन नहीं जी सकेंगी। यानी प्रक्रिया की सजा जेल से बाहर रहते हुए भी उन्हें भुगतनी होगी।

Gulabi
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