सम्पादकीय

यूपी से बड़ी है दूसरे प्रदेशों में आवारा पशुओं की समस्या, पीएम की चिंता से राष्ट्रीय नीति बनने की आस जगी

Gulabi
21 Feb 2022 1:23 PM GMT
यूपी से बड़ी है दूसरे प्रदेशों में आवारा पशुओं की समस्या, पीएम की चिंता से राष्ट्रीय नीति बनने की आस जगी
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यूपी से बड़ी है दूसरे प्रदेशों में आवारा पशुओं की समस्या
संयम श्रीवास्तव।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi) ने रविवार को यूपी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि 10 मार्च के बाद आवारा पशुओं की समस्या का समाधान हो जाएगा. दरअसल यूपी चुनावों में विपक्ष ने इस समस्या को मुद्दा बना दिया है. इसलिए पीएम को जनता को आश्वस्त कराना पड़ा कि ये समस्या उनके संज्ञान में है. यूपी में योगी सरकार (Yogi govt in UP) के आने के बाद अवैध बूचड़खाने बंद हो गए. इसके चलते आवारा पशुओं (Stray Cattles) की तस्करी भी बंद है. अब हालत यह है कि निर्बल हो चुके या बेकार हो चुके पशुओं की देखभाल करने के बजाय लोग उसे छुट्टा छोड़ देते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि कोई भी दल इस मुद्दे को लेकर मुख्य मुद्दा बनाकर जनता के बीच नहीं आना चाहता है. केवल प्रदेश सरकार पर हमला करने के लिए कहा जाता है कि किसान परेशान हैं. कोई भी दल इस समस्या के हल के लिए यह कहने की स्थिति में नहीं है कि हमारी पार्टी की सरकार आने पर अवैध बूचड़खाने को फिर से चालू करा दिया जाएगा.
दरअसल समस्या का कारण अलग है पर बूचड़खानों के बंद होने के चलते समस्या का राजनीतिकरण हो गया है. समस्या का सबसे बड़ा कारण बैलों की उपयोगिता खत्म होना, चारागाहों का इतिहास बनना, वन्य जीवों की तरह गायों , बंदरों और अन्य मवेशियों के लिए अभ्यारण्य या नैशनल पार्क नहीं बनाना है. पर इस पर बात नहीं होती क्योंकि इस तरह की बातों से वोट नहीं मिलते.
समस्या का राजनीतिकरण
किसानों के लिए इतनी बड़ी समस्या का इस तरह राजनीतिकरण हो चुका है कि कोई भी दल इस समस्या का समाधान लेकर नहीं आता. इस मुद्दे की संवेदनशीलता का अंदाजा इस तरह लगा सकते हैं कि यूपी में मुख्य विपक्ष की भूमिका अदा कर रहे पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी यह खुलकर नहीं कह सकते हैं कि उनकी सरकार आने के बाद अवैध बूचड़खाने को वो बंद करा देंगे या पशु तस्करी को छूट मिल जाएगी. जरूरत ये है कि इस समस्या के व्यवहारिक समाधान का कोई भी दल समाधान बताना हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. टीवी 9 भारतवर्ष के सत्ता सम्मेलन में पहुंचे अखिलेश यादव ने कहा था कि वो सरकार में आने के बाद सांड़ के हमले में मरने वालों के परिजनों के लिए 5 लाख क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करेंगे. दरअसल सांड़ से मरने की नौबत ही क्यों आए इस मुद्दे पर वो बात करते तो आम जनता की परेशानी का कुछ समाधान निकलता पर कोई भी ठोस उपाय नहीं बता रहा है.
राजस्थान में सबसे अधिक है आवारा पशुओं की समस्या, पंजाब भी परेशान
राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट बताती है कि
राजस्थान इस समय देश में सबसे अधिक आवारा पशुओं वाला राज्य है. 2012 में सबसे अधिक आवारा पशु उत्तर प्रदेश में और दूसरे स्थान पर उड़ीसा में थे. पर 2019 की पशु गणना के हिसाब से अब राजस्थान सबसे अधिक आवारा मवेशियों वाला राज्य बन चुका है. 2012 की तुलना में प्रदेश में करीब सवा तीन लाख आवारा पशु बढे़ हैं.
अमर उजाला की एक रिपोर्ट बताती है कि पंजाब सरकार भी आवारा पशुओं की समस्या से त्रस्त है. इस छोटे से राज्य में करीब ढाई लाख आवारा पशु हैं. जबकि यूपी में 2019 में हुई 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक 11 लाख 84 हजार 494 आवारा पशु हैं. अब पंजाब के क्षेत्रफल और जनसंख्या का अनुपात यूपी की जनसंख्या और क्षेत्रफल से लगाइये और समझिए कि पंजाब में आवारा मवेशियों की समस्या ज्यादा है यूपी में है. 2019 में कैप्टन सरकार ने बढ़ती समस्या के चलते एक 5 सदस्यीय कमेटी बनाने का फैसला लिया था. कैप्टन सरकार ने प्रत्येक जिलाधिकारी को अतिरिक्त गौशालाएं खोलने के लिए 10 -10 लाख रुपये देने का ऐलान भी किया था. अब आप समझ सकते हैं कि 10 लाख रुपये में गौशाला क्या एक बड़ा कमरा बनवाना भी नामुमकिन है. पंजाब के एक जिले भटिंडा का हाल बयान करता है दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट जिसके अनुसार 2018 के अगस्त माह मे केवल एक महीने में 4 लोगों की मौत आवारा पशुओं की चपेट में आने से हो गई जबकि 40 लोग घायल हो गए थे. दैनिक जागरण में छपी फरीदकोट जिले की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 में स्थानीय लोगों ने आवारा पशुओं से तंग हो उनके समाधान का बीड़ा स्वयं उठाया और करीब 874 पशुओं को सरकारी बाड़े में पहुंचाया. पंजाब विधानसभा में भी दर्जनों बार आवारा पशुओं का मुद्दा उठाया जा चुका है.
गौरतलब है कि राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस सरकार है इसलिए यूपी में भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार पर आवारा पशुओं को बढ़ाने का आरोप लगाना केवल समस्या का राजनीतिकरण ही है. पर इसका समाधान राजनीति से कतई नहीं होने वाला है.
यूपी से लेकर राजस्थान तक न पैसे की कमी है और न कानून की, बस नीतियां व्यवहारिक नहीं हैं
पत्रिका में छपी रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान सरकार ने गो सेस के नाम पर पिछले 3 सालों में करीब 2000 करोड़ रुपये इकट्टा किए हैं. पर सरकार हाईकोर्ट में गायों के नाम पर वसूली टैक्स की राशि और खर्च का हिसाब देने से बच रही है. बार-बार मोहलत मांगी जा रही है. दरअसल पिछले साल एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार को राजस्थान गौ संरक्षण एवं प्रवर्धन कोष नियम, 2016 के प्रावधानों के तहत एकत्र फंड व खर्च का विवरण पेश करने के आदेश दिया था. बार-बार हाईकोर्ट में जवाब न देना बताता है कि आवारा मवेशियों के मामले में राजस्थान सरकार कितनी गंभीर है. सरकार 3 साल बाद भी बजट घोषणा के अनुसार अब तक प्रत्येक पंचायत समिति में नंदी शाला नहीं खोल सकी है.
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने भी आवारा मवेशियों पर 355 करोड़ खर्च कर दिए पर प्रदेश में किसान अभी भी इनके चलते त्रस्त हैं. 2017 के बाद बेसहारा मवेशियों के लिए यूपी सरकार ने कई कदम उठाए. जैसे गौशालाएं, कांजी हाउस, गौसंरक्षण केंद्रों का निर्माण आदि. इसके लिए 2018-19 में छुट्टा गोवंश के रखरखाव के मद पर सहायता अनुदान के तौर पर 17.52 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. राज्य के बजट डॉक्यूमेंट बताते हैं कि यह राशि खर्च भी हो गई, जबकि इससे अगले साल यानी 2019-20 में 203.11 करोड़ रुपए इस मद पर खर्च किए गए. जबकि बजट में प्रावधान केवल 72 करोड़ रुपए का किया गया था. यही वजह रही कि अगले साल के बजट में 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. 2019-20 में गौसंरक्षण केंद्रों के निर्माण पर लगभग 136 करोड़ रुपए के खर्च का प्रावधान किया गया, जिसे बढ़ा कर 2020-21 में 147.60 करोड़ रुपए कर दिया गया, लेकिन इस मद पर खर्च 115 करोड़ रुपए किए गए. इसके अलावा बुंदेलखंड गोवंश वन्य विहार की स्थापना पर 19.20 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. यानी कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार पिछले तीन साल में लगभग 355 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है.
इतना सब होने के बावजूद समस्या जस की तस है और यह भी कह सकते हैं कि बढ़ी है. दरअसल जब तक व्यवहारिक योजनाएं नहीं बनेंगी समस्या का समाधान नहीं होता है. सरकारी योजनाओं के पैसे की बंदरबांट होती है. यूपी में ही देखिए सरकार एक गाय पर प्रतिदिन 30 रुपए देती है, जिसमें उसका चारा, उनके रहने के लिए टिन शेड, पीने के पानी की व्यवस्था भी शामिल है. इतने में सरकारी अधिकारियों को कमीशन भी देना भी जोड़ लीजिए तो गाय के लिए क्या बचता होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है.
देश में मवेशियों के लिए अभ्यारण्य और नेशनल पार्क क्यों नहीं
प्रधानमंत्री ने यूपी में चुनावी रैली के संबोधन से एक बात स्पष्ट हुई है कि वो गौसंरक्षण या मवेशियों के संरक्षण के लिए वे चिंतित हैं. उनके भाषण से ये भी लगा कि परंपरागत सरकारी योजनाओं से कुछ इतर योजनाएं वो लाने वाले हैं. गौ वंश के गोबर और मूत्र का व्यवसायीकरण के साथ कुछ और भी उपाय करने जरूरी हैं. बैलों की जरूरत खत्म हो रही है. क्या हमें बैलों, बूढ़ी गायों और वृद्ध हो चुके सांड़ों के साथ बंदरों , नील गायों आदि के लिए अभ्यारण्य या नेशनल पार्क नहीं बनाने चाहिए? हम जैसे वन्य जीवों का संरक्षण कर रहे हैं क्या मवेशियों के संरक्षण के बारे में भी सोच रहे हैं. उत्तर भारत कोई शहर या कस्बा नहीं होगा जहां बंदरों का आतंक न हो. जंगल और पेड़ों के कटान के चलते बंदरों के लिए कोई आश्रय नहीं रहा. वो आए दिन हिंसक हो रहे हैं. कॉलोनियां कट रही हैं पर इन जानवरों के लिए नहीं सोचा जा रहा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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