सम्पादकीय

समस्या देशों के अंदर है

Triveni
5 July 2021 4:00 AM GMT
समस्या देशों के अंदर है
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ये खबर ऊपर से आकर्षक लग सकती है कि अमेरिका की पहल पर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले 130 देश वैश्विक न्यूनतम कर (ग्लोबल मिनिमम टैक्स) के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं।

ये खबर ऊपर से आकर्षक लग सकती है कि अमेरिका की पहल पर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले 130 देश वैश्विक न्यूनतम कर (ग्लोबल मिनिमम टैक्स) के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं। ये देश दुनिया की अर्थव्यवस्था के 90 फीसदी हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि अगर ये टैक्स व्यवस्था लागू हो भी गई, तो क्या उससे पूरी दुनिया में प्रगतिशील टैक्स ढांचा लागू हो जाएगा? प्रगतिशील टैक्स ढांचे का मतलब यह होता है कि जिसकी जितनी अधिक आमदनी है, उससे उतना अधिक टैक्स लिया जाए। अभी हाल में जो तथ्य सामने आए हैं, वे यह बताते हैं कि विकसित देशों ने अपने यहां ऐसा टैक्स ढांचा अपना रखा है, जिससे सबसे धनी लोग सबसे कम और आम मध्यवर्गीय लोग अपनी आमदनी के अनुपात में सबसे ज्यादा टैक्स चुकाते हैँ। जब तक ये व्यवस्था नहीं बदलती, इस समस्या का हल वैश्विक स्तर पर ढूंढना महज उन संसाधन को वापस धनी देशों में लाने का प्रयास भर है, जो अभी आयरलैंड या लक्जमबर्ग या बारबेडोस जैसे देशों को इसलिए मिल जाते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने यहां टैक्स दरें कम कर रखी हैँ। गौरतलब है कि ग्लोबल मिनिमम टैक्स का प्रस्ताव अमेरिका की पहल पर आया है। हाल में हुई जी-7 देशों की शिखर बैठक में भी इस पर चर्चा हुई थी। उसके बाद धनी देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के मंच पर इस बारे में बातचीत आगे बढ़ी। खबरों के मुताबिक अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने इस पर सहमति बनाने के लिए अपने पूरे प्रभाव का इस्तेमाल किया है। इस प्रस्ताव के तहत दुनिया की 100 सबसे बड़ी कंपनियों को हर साल अपनी आमदनी का 15 फीसदी कॉरपोरेशन टैक्स के रूप में देना होगा, चाहे उन्होंने अपने दफ्तर कहीं भी रजिस्टर करा रखे हों। ये भी गौरतलब है कि सबसे पहले तय ग्लोबल टैक्स रेट का प्रस्ताव यूरोप में गूगल, अमेजन, फेसबुक आदि जैसी कंपनियों के सिलसिले में आया था। लेकिन बाद में अमेरिका की पहल पर दूसरी क्षेत्र की कंपनियों को भी इस प्रस्ताव के तहत लाने पर धनी देशों के बीच सहमति बन गई। आलोचकों का कहना है कि अमेरिका ने अपनी टेक कंपनियों को बचाने के लिए सभी देशों की सभी कंपनियों ने नई व्यवस्था के दायरे में लाने की चाल चली। इसमें वह कामयाब रहा दिखता है।


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