सम्पादकीय

राष्ट्रपति मिल तो सकते थे!

Gulabi
6 Nov 2020 1:19 PM GMT
राष्ट्रपति मिल तो सकते थे!
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किसानों के मामले में हाल में बने तीन कानूनों के मुद्दे पर धरने पर उतर कर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने साफ कर दिया है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किसानों के मामले में हाल में बने तीन कानूनों के मुद्दे पर धरने पर उतर कर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने साफ कर दिया है कि वे इस मुद्दे को जल्द छोड़ने वाले नहीं हैं। मुमकिन हो कि इस मुद्दे में उन्हें पंजाब में कांग्रेस की जड़ें मजबूत करने का मौका दिखता हो। लेकिन ये साफ है कि यह मौका उन्हें केंद्र सरकार के अड़ियल रुख से ही मिला है। ताजा विवाद इससे पैदा हुआ कि पंजाब विधान सभा से पारित राज्य के अपने कृषि कानूनों को मंजूरी दिलाने के लिए सिंह ने राष्ट्रपति से समय मांगा था। राष्ट्रपति उनसे मिल लेते तो उसमें कोई समस्या नहीं थी। लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया, तो सिंह ने धरने का रास्ता अपनाया। पंजाब जून से ही नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का केंद्र रहा है। राज्य में विरोध इतना गंभीर हो गया था कि शुरुआत में कानूनों का समर्थन करने वाली अकाली दल को भी बाद में अपना मोर्चा बदलना पड़ा। उसने भी विरोध किया और केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए से अपना दशकों पुराना रिश्ता तोड़ लिया।

केंद्र के तीन नए कानून हैं- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक और कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक। इनका उद्देश्य ठेके पर खेती यानी 'कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग' को बढ़ाना, खाद्यान के भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, तिलहन, आलू और प्याज जैसी सब्जियों के दामों को तय करने की प्रक्रिया को बाजार के हवाले करना है। कानूनों के आलोचकों का मानना है कि इनसे सिर्फ बिचौलियों और बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा। छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे। सरकार ने कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन कई किसान संगठनों, कृषि विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का कहना है कि इनकी वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में ऐसे बदलाव आएंगे, जिनसे छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा। अक्टूबर में केंद्र के कानूनों को बेअसर करने के लिए राज्य सरकार अपने कानून ले कर आई। उन्हें विधान सभा से पारित करा कर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया। राज्यपाल की स्वीकृति ना मिलने पर जब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने का समय मांगा तो राष्ट्रपति ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया।

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