सम्पादकीय

कमज़ोर की जोरू

Gulabi Jagat
22 March 2022 4:15 AM GMT
कमज़ोर की जोरू
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मुझे आज तक समझ नहीं आया कि कमज़ोर की जोरू होना बेहतर है या जोरू का ग़ुलाम
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि कमज़ोर की जोरू होना बेहतर है या जोरू का ग़ुलाम। लेकिन इतना ज़रूर है, कमज़ोर के भाग्य में न चाहते हुए भी सबकी जोरू होना बदा है। जब जोरू को कमज़ोर समझा जाता है तो ज़ाहिर है किसी के कमज़ोर होने पर सब उसके साथ वैसा ही करेंगे। शायद इसीलिए कहावत बनी है,'कमज़ोर की बीवी सबकी भाभी'। लेकिन किसी कमज़ोर को जब सही मायनों में यह दर्द झेलना पड़ता है तो उसका इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं मिलता। इसी तरह की जि़ल्लत एक बार सरकार की डुगडुगी बजाने वाले विभाग के अधिकारी हाजी क़ौल को झेलनी पड़ी। एक निजी विश्वविद्यालय के ऐसे वैज्ञानिक समारोह में देश के दूसरे सबसे बड़े महामहिम को आमंत्रित किया गया था जिनका विज्ञान से दूर का नाता भी न था। विज्ञान से उनकी सोहबत उतनी थी जितनी कोमोड पर बैठने वाले आदमी की फ्लश से होती है। समारोह के मंच का दायित्व पहले विश्वविद्यालय के एक शिक्षक के सुपुर्द था जिसे हाजी को इस दलील के साथ सौंप दिया गया कि सरकारी अधिकारी को वीवीआईपी के महत्वपूर्ण समय और औपचारिकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है। जि़म्मेवारी मिलते ही हाजी सावधान की मुद्रा में आ गए। उन्होंने मंच संचालन की स्क्रिप्ट को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से चैक करवाया। जि़लाधीश ने दो मर्तबा पूरे कार्यक्रम की रिहर्सल करवाई।
लेकिन समारोह में दूसरे बड़े महामहिम के अतिरिक्त तीसरे महामहिम अर्थात् राज्य के राज्यपाल और माननीयों की कौन रिहर्सल करवाता? समारोह में जब हाजी ने सधे हुए अंदाज़ में मंच संचालन शुरू किया तो सभी उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सके। पर विश्वविद्यालय के उपकुलपति महामहिम को ख़ुश करने की क़वायद में तब तक नहीं रुके, जब तक उन्हें चार बार पर्चियां नहीं भिजवाई गईं। पूर्व मुख्यमंत्री, बीस मिनट तक बड़े महामहिम के साथ अपने पूर्व संबंधों का तिया-पांचा करते रहे। केंद्रीय खेल मंत्री पंद्रह मिनट ड्रिबलिंग करते रहे। इस दौरान बड़े महामहिम, हाजी को बार-बार बुला कर, कार्यक्रम जल्दी ख़त्म करने के लिए हड़काते रहे। उन्हें देश की राजधानी में किसी दूसरे समारोह में भाग लेना था। लेकिन उन्होंने अपने साथ बैठे माननीयों को अपने संबोधन शीघ्र समाप्त करने के निर्देश नहीं दिए। मुख्यमंत्री, जो कभी संगठन में बड़े महामहिम के चेले रहे थे, बाईस मिनट गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रकाश डालते रहे। राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे अपने प्रयासों की आधे घंटे तक देसी गाय के गोबर की ऐसी खाद फेरी कि महामहिम के बचे-खुचे मूड और समारोह में हर जगह देसी खाद नज़र आने लगी।
यह खाद किसी के सिर पर तो फिरनी ही थी। हाजी मौके के सबसे छोटे अफसर थे। हाजी ने बड़े महामहिम को आमंत्रित करने से पूर्व जैसे ही उनका जीवन-वृत्त पढ़ना आरंभ किया, वह डायस पर पहुँच गए। पहुँचते ही पहली टोकरी हाजी पर फैंकते हुए बोले, 'कितना बोलता है? मैं अपना सीट से डायस तक भी आ गया, लेकिन इसका स्पीच बंद नहीं हुआ।' नेताओं के भाषणों से बोर हो चुके लोगों को अचानक हँसने का मौक़ा मिल गया। पूरा हॉल ठहाकों से ऐसे भर गया, मानो महामहिम कोई चुटकला सुना रहे हों। खिसियाए हाजी के पास लोगों के साथ हँसी में शामिल होने के अलावा चारा न था। अगले समारोह में शामिल होने की जल्दी में महामहिम ने संक्षेप में अपना भाषण लपेटा। नियमानुसार अंत में राष्ट्रीय गान होना था। हाजी के हॉल में बैठे लोगों से राष्ट्रीय गान में शामिल होने के अनुरोध से पूर्व ही महामहिम ने अपनी कर्कश आवाज़ में राष्ट्रीय गान आरंभ कर दिया। यह देख कुछ लोग हँसने लगे। पूरे हॉल में अफरा-तफरी छा गई। किसी तरह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ तो हाजी की जान में जान आई। लोगों से नज़रें बचाते हाजी दफ़्तर पहुँचे। टेबल पर नज़र पड़ते ही सचिव का पत्र देख सन्न रह गए। कार्यक्रम को सुचारू रूप से संचालित करने में असफल रहने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर, उनका हैडक्वार्टर राजधानी शिफ्ट कर दिया गया था।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
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