सम्पादकीय

अफगानिस्तान की सत्ता: तालिबान और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा

Shiddhant Shriwas
19 Oct 2021 2:36 AM GMT
अफगानिस्तान की सत्ता: तालिबान और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा
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बीती सदी के 80 के दशक में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पंजाब और कश्मीर में अपने भारत-विरोधी अभियानों में इसलिए सफल हो पाई थी

शिवदान सिंह अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे को गंभीरता से लेते हुए विश्व के प्रमुख देश वहां से नियंत्रित होने वाले नशीले व्यापार और आतंकवाद के प्रति सजग हो गए हैं! इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से अफगानिस्तान की स्थिति पर विचार-विमर्श किया है और विदेश मंत्री एस जयशंकर अन्य देशों के संपर्क में हैं।

देश की बाहरी सुरक्षा में सीमाओं की सुरक्षा भी उतनी महत्वपूर्ण है। इसी सिलसिले में देश की रक्षा सेनाओं के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने विगत 25 अगस्त को दक्षिण चीन सागर में चीन के विरुद्ध बने गठबंधन क्वाड के सदस्य देश अमेरिका के एडमिरल जॉन अकीविनो से मुलाकात कर अफगानिस्तान के हालात पर विचार किया था।

राष्ट्रीय सुरक्षा का दूसरा प्रमुख पहलू है आंतरिक सुरक्षा। इसके तहत पूरे देश की जनता को विश्वास में लेने के लिए विगत 26 अगस्त को प्रधानमंत्री ने लोकसभा में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख को विचार-विमर्श के लिए बुलाया था। उसमें विदेश मंत्री ने विपक्ष के नेताओं को अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के बारे में अवगत कराते हुए बताया था कि किस प्रकार वहां पर फंसे भारतीय नागरिकों को निकाला जा रहा है और इसमें पाकिस्तान अड़चन पैदा कर रहा है।

उसके बाद प्रधानमंत्री ने विपक्ष के नेताओं से तालिबान के संबंध में नीति अपनाने से संबंधित सुझाव मांगे थे। तब सभी विपक्षी नेताओं ने एक आवाज में सरकार के प्रति अपनी सहमति प्रकट की थी, जिससे कि सरकार विश्वास के साथ अगला कदम उठा सके।

बीती सदी के 80 के दशक में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पंजाब और कश्मीर में अपने भारत-विरोधी अभियानों में इसलिए सफल हो पाई थी, क्योंकि खालिस्तानी कट्टरपंथियों ने पंजाब में आतंकियों का अड्डा बना लिया था। इसी प्रकार कश्मीर में भी कट्टरपंथियों ने आतंकियों को शरण दी।

उसी का नतीजा था कि आईएसाई हमारी संसद तथा मुंबई में आतंकी हमले कराकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने तथा देश में अनिश्चितता का माहौल पैदा करने में सफल हो गई थी। पर यह 2021 का भारत है, जो आतंकवाद को प्रोत्साहित करने की पाकिस्तान की नीति द्वारा उसके दिवालिया बनने की कहानी जान गया है।

इसलिए पाकिस्तान द्वारा धार्मिक कट्टरपंथ की आड़ में आतंकवाद और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की चाल अब भारत में सफल नहीं होगी। इसी संदर्भ में पाकिस्तान से लगने वाली सारी भारतीय सेना ने सील कर दी है। अपने यहां के मुस्लिम धर्मगुरु भी देश में कट्टरवाद के विरुद्ध मुहिम चलाने का एलान कर चुके हैं।

पिछले दिनों लखनऊ में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की राष्ट्रीय कार्य समिति ने धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में संशोधन के बारे में भी चर्चा की। बीती सदी के 80 के दशक से अब तक पाकिस्तान आतंकवाद और दुष्प्रचार के जरिये भारत से परोक्ष युद्ध लड़ रहा था और वह पंजाब और कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता था।

पर भारत की मजबूत सरकारों ने पाकिस्तान को लगातार करारी मात दी, जिसके परिणामस्वरूप आज पाकिस्तान दिवालिया हो कर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है। और अब तालिबान को और शक्तिशाली बनाने के बाद यही तालिबान पाकिस्तान में भी दखल देना शुरू कर देंगे।

तालिबान के एक बड़े नेता ने यह बताया ही है कि पाकिस्तान तालिबान का दूसरा घर है, जहां से से मदद मिलती रहती है। ऐसे में, भारत को ये सारे तथ्य एफएटीएफ के सामने रखना चाहिए, जिससे कि पाकिस्तान इसकी काली सूची में आ जाए और उसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद मिलनी बंद हो जाए।

पाकिस्तान की फितरत को देखते हुए ही आईएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसे छह अरब डॉलर का कर्ज देने से मना कर दिया। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव द्वारा अगर तमाम देश पाकिस्तान का बहिष्कार कर दें, तभी उसे सबक मिलेगा। पाकिस्तान के खिलाफ उठाए जाने वाले ऐसे ही सख्त कदमों से दक्षिण एशिया को आतंकवाद से मुक्ति मिल सकती है।

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