सम्पादकीय

देश में आबादी तो बढ़ रही है पर राशन कार्डों की संख्या नहीं

Rani Sahu
5 May 2022 10:51 AM GMT
देश में आबादी तो बढ़ रही है पर राशन कार्डों की संख्या नहीं
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस का इतिहास दिलचस्प है

रीतिका खेड़ा

सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस का इतिहास दिलचस्प है। कुछ साल पहले जो इसकी निंदा कर रहे थे, अब इसे अच्छा मान रहे हैं। यूपी चुनाव में भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाने का श्रेय इसे मिला। 2009 में यूपीए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून लाने की बात रखी थी। हालांकि कांग्रेस की सोच में खाद्य सुरक्षा की परिभाषा बहुत ही संकुचित थी, उस समय कई टिप्पणीकार और विपक्ष से लेकर सहानुभूतिशील अर्थशास्त्री तक इस प्रस्ताव के खिलाफ थे।
पीडीएस के विरोध का तर्क यह था कि इसमें भ्रष्टाचार बहुत है। आलोचकों की राय थी कि यदि कुछ करना ही है तो लोगों के खातों में कैश दिया जाए। रिसर्च में इसमें हो रहे भ्रष्टाचार को रोकने या कम करने के प्रयासों पर जोर दिया गया है, कैश के बारे में चेताया और साथ ही मांग की गई है कि उसके दायरे को बढ़ाया जाए। हमने तीन तरह के राज्य स्पष्ट देखे। दक्षिण के राज्य जहां पहले से पीडीएस सही चल रहा था। उत्तर के राज्य (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान), जहां बड़े पैमाने पर चोरी जारी थी।
चोरी का बड़ा जरिया यह था कि कार्डधारकों से पूरे वितरण पर (उदाहरण के लिए, 35 किलो) जबर्दस्ती हस्ताक्षर करवाकर उन्हें केवल 10-20 किलो दो। सबसे दिलचस्प थे छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य, जहां 2003-04 तक उत्तर भारत की तरह अनाज की चोरी चली, फिर राज्य के प्रयत्नों से पीडीएस में भ्रष्टाचार घटा। इन राज्यों ने ज्यादा लोगों को शामिल कर पीडीएस को व्यापक बनाया, साथ ही भ्रष्ट डीलरों के खिलाफ कार्यवाही भी की।
जिन राज्यों में चोरी ज्यादा थी, वहां एपीएल कोटे का राशन कुल आबंटन का 40% था, लेकिन एपीएल कार्डधारकों को पता ही नहीं था कि उनका अनाज आ रहा है। ऊपर ही चोरी हो जा रहा था। एनएफएसए आने से एपीएल कोटा खत्म हो गया तो अनाज चोरी भी कम हो गई। 2013-2017 तक दिख रहा था कि बिहार और झारखंड समेत कई राज्य पीडीएस को सुधारने में सफल हो रहे हैं। 2020 में लॉकडाउन की घोषणा हुई।
तब 25 मार्च को प्रकाशित एक लेख में मैने पीडीएस संबंधित तीन सुझाव दिए थे। एक, जिनके राशन कार्ड हैं, उन्हें तुरंत दोगुना राशन दिया जाए। दो, पीडीएस को यूनिवर्सल किया जाए। तीन, लोगों को गेहूं-चावल के साथ-साथ तेल और दाल भी मिलें। सरकार ने दोगुने राशन को लागू किया। हालांकि यह सराहनीय कदम है, पर इस प्रावधान को हर तीन-छह महीने में कुछ महीनों के लिए बढ़ा दिया जाता है।
इससे हो रहे नुकसान हमें हाल ही में चाईबसा के दो गांवों के लोगों से बातचीत में पता चले। लोगों को जानकारी नहीं थी कि दो साल से राशन को दोगुना कर दिया गया है। उन्हें अभी भी एनएफएसए का 5 किलो प्रति व्यक्ति राशन मिल रहा है। डीलर 10 किलो प्रति व्यक्ति आधार-सत्यापन करवाकर 5 किलो प्रति व्यक्ति से भी कम दे रहा है। एक गांव के लगभग 100 राशनकार्डों पर फरवरी और मार्च में वास्तविक खरीद को ऑनलाइन में चढ़ाई गई बिक्री मात्रा से मिलाने पर पता चला कि केवल एक-तिहाई राशन लोगों तक पहुंच रहा है।
इस क्षेत्र में 2017 में हुए सर्वे में अनाज की चोरी दस प्रतिशत से भी कम थी। जागरूकता और कुछ लोगों की रुचि कम होने से अनाज की चोरी का रास्ता आसान हो गया है। रुचि शायद इसलिए कम है क्योंकि नेशनल सैम्पल सर्वे के अनुसार औसतन व्यक्ति प्रति माह 10 किलो अनाज का उपभोग करते हैं।
जिन परिवारों में घर का अनाज है, उनको दोगुने राशन की इतनी जरूरत नहीं। यह मुमकिन है कि पिछले दो साल से कोविड राशन का एपीएल कोटे जैसा हाल है। इसकी पुष्टि के लिए पत्रकारों, शोधकर्ताओं, सरकारी तंत्र को बड़े पैमाने पर जमीनी सर्वे करने की जरूरत है।
जनता को खाद्य सुरक्षा
बड़ी संख्या में लोगों को पीडीएस से कुछ नहीं मिल रहा। खाद्य सुरक्षा कानून में दो-तिहाई आबादी को राशन कार्ड मिले। तब से जनसंख्या बढ़ी है, राशन कार्ड नहीं। लॉकडाउन में ऐसे परिवारों को राशनकार्ड देना था। सरकारी भंडारों में बहुत अनाज है, सरकार निर्यात पर विचार कर रही है।
Rani Sahu

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