सम्पादकीय

गरीबों को सिर्फ जनकल्याण योजनाओं का लाभार्थी न समझा जाए, बल्कि उन्हें पर्यावरण को बचाने में संभावित आंत्रप्रेन्योर की तरह माना जाए

Rani Sahu
16 Sep 2021 4:12 PM GMT
गरीबों को सिर्फ जनकल्याण योजनाओं का लाभार्थी न समझा जाए, बल्कि उन्हें पर्यावरण को बचाने में संभावित आंत्रप्रेन्योर की तरह माना जाए
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ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनियाभर में भोजन की कीमत बढ़ रही है

एन. रघुरामन। ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनियाभर में भोजन की कीमत बढ़ रही है। सुनने में अजीब है न? राय बनाने से पहले पूरा तर्क पढ़ें। पूरा खाना तो छोड़िए, सिर्फ कॉफी का अध्ययन ही परिस्थिति बता देगा। हालिया अध्ययन बताता है कि कॉफी की उच्च गुणवत्ता वाली 60% प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्त होने वाली हैं। इससे कॉफी न सिर्फ महंगी होगी, बल्कि पहले जैसी गुणवत्ता भी नहीं रहेगी। यह दर्शाता है कि धरती की बदलती जलवायु फसलों, मवेशियों और अन्य खाद्य स्रोतों को प्रभावित कर रही है। क्या अब आपका ध्यान इस ओर गया?

वहीं नेशनल सैंपल सर्वे द्वारा इस हफ्ते जारी किया गया ऑल इंडिया डेट एंड इंवेस्टमेंट सर्वे, 2019 बताता है कि शहरी क्षेत्रों में कुल संपत्ति का 55.7% और ग्रामीण क्षेत्रों में 50.8% हिस्सा हमारी 10% सबसे अमीर (सुपर रिच) आबादी के पास है। इन दो जानकारियों के साथ बहस आगे बढ़ाते हैं। यह रहस्य नहीं रहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोगों (एक अनुमान के मुताबिक 75 करोड़) और परिवारों ने आय और संपत्ति खो दी, साथ ही गरीबी में चले गए, जबकि सुपर रिच लोगों की दौलत और बढ़ गई।
दिल्ली का उदाहरण देखें। यहां सर्वे कहता है कि 10% आबादी के पास 80.8% संपत्तियां हैं, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास 2.1% संपत्तियां हैं। पड़ोसी राज्य पंजाब में सुपर रिच की 65% संपत्तियां हैं, जबकि 50% निचले वर्ग की आबादी के पास सिर्फ 5% संपत्तियां हैं। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के अमीरों के पास राज्य की 55% संपत्तियां हैं।
अब फिर कॉफी वाले तर्क पर आता हूं। दुनिया के सबसे बड़े कॉफी उत्पादक, ब्राजील के खराब मौसम के कारण कॉफी की कीमतें चार वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। डंकिन, नेस्ले या स्टारबक्स जैसी कॉफी की बड़ी कंपनियां अपनी सप्लाई एडवांस में खरीद सकती हैं क्योंकि उनके पास पैसा है। इससे बाजार में आम लोगों के लिए सिर्फ बुरी गुणवत्ता की कॉफी बचेगी, जिसकी कीमत भी कम आपूर्ति के कारण बढ़ जाएगी।
इस तरह जलवायु परिवर्तन जहां कुछ क्षेत्रों में सूखे का, तो कुछ क्षेत्रों में बाढ़ तथा समुद्र स्तर बढ़ने का कारण बन रहा है। इससे तटीय आबादी की खाने की आदतें और समतल इलाकों की उपज प्रभावित होगी। सिर्फ कॉफी ही महंगी नहीं हो रही है। खराब मौसम से शक्कर, गेहूं, सोया, मक्का, बादाम, शहद आदि की कीमतें भी प्रभावित हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में खाद्य सामग्री की कीमतें अगस्त में पिछले साल की तुलना में 33% तक बढ़ गई हैं।
इसका मतलब यह नहीं कि सब खत्म हो गया। खुद को बचाने के लिए अपना ध्यान पर्यावरण बचाने पर लगाएं। बुधवार को गोवा ने एक योजना प्रस्तावित की है, जिसके तहत लोग और संस्थान उनकी जमीन पर पेड़ लगाने और देखभाल करने के लिए सरकार को पैसे देकर ग्लोबल वार्मिंग से जंग में मदद कर सकते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि गोवा में बाकी देश की तुलना में तेजी से तापमान बढ़ रहा है। योजना ऐसे काम करेगी: लोग (या संस्थान) अपनी खाली जगह पर वृक्षारोपण के लिए गोवा के राज्य जैवविविधता बोर्ड को प्रति पेड़ 5000 रुपए देंगे। बोर्ड देशी और उपयोगी पेड़ लगाकर उनकी देखभाल भी करेगा। किसी पौधे के मरने पर उसकी जगह दूसरा पौधा भी लगाएगा।


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