सम्पादकीय

पुडुचेरी में पलटेगा सियासी पासा, क्या किरण बेदी को हटाने के पीछे है शाह की चाणक्य नीति

Gulabi
19 Feb 2021 3:36 PM GMT
पुडुचेरी में पलटेगा सियासी पासा, क्या किरण बेदी को हटाने के पीछे है शाह की चाणक्य नीति
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अगले तीन महीनों में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उसमें से दक्षिण भारत का पुडुचेरी भी एक राज्य है.

अगले तीन महीनों में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने वाले हैं उसमें से दक्षिण भारत (South India) का पुडुचेरी (Puducherry) भी एक राज्य है. पुडुचेरी में पिछले पांच सालों से कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की सरकार है जो शुरू से बीजेपी (BJP) के राडार पर रही है. दक्षिण के दो अन्य राज्य तमिलनाडु (Tamil Nadu) और केरल (Kerala) के मुकाबले बीजेपी को पुडुचेरी की ज़मीन अपने विस्तार के लिए ज्यादा उपजाऊ दिखती है. पश्चिम बंगाल (West Bengal) की तरह वहां भी आये दिन सत्ता पक्ष के विधायक बीजेपी में शामिल हो रहे हैं और वर्तमान में वी नारायणसामी (V. Narayanasamy) सरकार अल्पमत में आ गयी है. सभी की जुबान पर एक ही चर्चा है कि क्या चुनाव आते-आते राज्य में कांग्रेस की सरकार रहेगी भी या फिर चुनाव राष्ट्रपति शासन (President rule) के तहत होगा?


वी नारायणसामी सरकार शायद बच ना सके. लेकिन जिस बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था, प्रदेश में बुधवार को वह हो गया. राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर पुडुचेरी के उपराज्यपाल किरण बेदी की छुट्टी कर दी. बेदी का पांच साल का कार्यकाल मई के महीने में समाप्त होने वाला था, सवाल है कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी जिसके कारण केंद्र सरकार को तीन महीने के लिए इंतज़ार करने की जगह किरण बेदी की छुट्टी करनी पड़ी?
मुख्यमंत्री वी नारायणसामी भले ही इसका श्रेय लेते दिखे, पर पहली नज़र में ही यह साफ़ हो जाता है कि कांग्रेस बनाम बीजेपी की लड़ाई में किरण बेदी की बलि चढ़ गयी.

मनमाने फैसले लेने के लिए जानी जाती थीं
किरण बेदी पर आरोप था कि वह पुडुचेरी सरकार के कार्यों में अनुचित बाधा डालती थीं, मुख्यमंत्री से उनकी बनती नहीं थी और चुने हुए सरकार की उपेक्षा करके वह मनमानी फैसले लेती थीं. किरण बेदी को जो जानने वाले हैं वह जानते हैं कि मनमानी फैसले लेना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा है. भारत की पहली महिला IPS ऑफिसर जब भी और जिस भी पद पर रहीं, बेदी और विवाद हमेशा से एक दूसरे के विकल्प रहे हैं. यह कहना तो कठिन है की पुडुचेरी में चुनी हुई सरकार को ठीक से चलने नहीं देने का फैसला उनका था या फिर वह किसी के इशारे पर ऐसा कर रही थीं.

हालांकि यह साफ है कि बेदी पुडुचेरी में इतनी अलोकप्रिय हो गयी थीं कि बीजेपी को इस बात का डर सताने लगा था कि अगर चुनाव के समय बेदी उपराज्यपाल पद पर रहीं तो बीजेपी को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है. उनको पद से हटाने की घोषणा उसी दिन हुई जिस दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी पुदुच्चेरी के दौरे पर आने वाले थे. माना जा रहा है कि बेदी की पद से छुट्टी करके बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी के गुब्बारे को पंचर कर दिया है और एक संभावित चुनावी मुद्दे को ख़त्म करने की कोशिश की है.

पुडुचेरी से ही शुरू हुआ था UT में विधानसभा का चलन
पुडुचेरी भारत का ऐसा पहला केन्द्रशासित प्रदेश था जहां विधानसभा और चुनी हुई सरकार की एक संवैधानिक व्यवस्था थी. बाद में पुडुचेरी की ही तर्ज़ पर दिल्ली में भी चुनी हुई सरकार और विधानसभा की व्यवस्था की गई. अब जम्मू और कश्मीर ऐसा तीसरा केन्द्रशासित प्रदेश बन गया है जहां उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों होंगे. हालांकि इसके लिए वहां विधानसभा चुनावों का इंतजार करना होगा.

अगर पुडुचेरी और दिल्ली का अनुभव कोई सन्देश है तो वह यह है कि एक केन्द्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री का होना वैसे ही है जैसे की एक म्यान में दो तलवार का होना. केन्द्रशासित प्रदेश का सीधा मतलब होता है कि वहां केंद्र सरकार की ओर से उपराज्यपाल सरकार चलता है. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री, उनका मंत्रिमंडल और विधानसभा होता है जो किसी अन्य राज्य की तरह स्वतंत्र रूप से काम करने की इक्षा रखते हैं. इसका नतीजा है कि पुडुचेरी हो या दिल्ली, वी नारायणसामी हो या अरविन्द केजरीवाल, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल एक दुसरे से अपने अधिकार क्षेत्र के नाम पर हमेशा उलझते ही दिखते हैं.

व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत
चुनाव भी होगा और पुडुचेरी में फिर से सरकार भी बनेगी, पर लगता है कि वह समय आ गया है जब इस व्यवस्था का गंभीरता के साथ आंकलन किया जाए. चूंकि दिल्ली में केंद्र सरकार भी होती है इसलिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने में केंद्र सरकार की हिचक समझी जा सकती है. जम्मू-कश्मीर के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में बयान दिया था कि केंद्र सरकार उसे शीघ्र ही एक बार फिर से पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देगी. पर पुडुचेरी का केन्द्रशासित प्रदेश होने का कोई औचित्व नहीं है.

क्षेत्रफल के हिसाब से पुडुचेरी गोवा के मुकाबले काफी छोटा हो सकता है, पर जनसंख्या में दोनों लगभग बराबर हैं. गोवा और पुदुच्चेरी का इतिहास भी लगभग एक सा ही है. गोवा पुर्तगाल की कॉलोनी थी और पुडुचेरी, जिसे पहले पांडिचेरी नाम से जाना जाता था, एक फ्रेंच कॉलोनी. जिस तरह गोवा के निवासी महाराष्ट्र का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे, उसी तरह पुडुचेरी के निवासी तमिलनाडु का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे.

पुडुचेरी पर केंद्र को करना होगा विचार
सवाल यह नहीं है कि विधानसभा चुनाव के बाद वहां सरकार किसकी बनेगी? पुडुचेरी के मतदाताओं को यह कह कर भी प्रेरित नहीं किया जा सकता है कि अगर वह डबल इंजिन की सरकार बनाये, यानि केंद्र में भी और प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार हो तो यह रोज-रोज का सास-बहू जैसा उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की चिक-चिक खत्म हो जाएगी.
सवाल यह है कि अगर दिल्ली के तरह पुडुचेरी में केंद्र सरकार नहीं है, और जम्मू-कश्मीर की तरह उसका सामरिक महत्व भी नहीं है, तो इस रोज-रोज के चिक-चिक को हमेशा के लिए ख़त्म क्यों नहीं कर दिया जाता?

क्यों न मिले पूर्ण राज्या का दर्जा
उपराज्यपाल किरण बेदी हों या फिर तमिलिसाई साउंडराजन वह पुडुचेरी की जनता की प्रतिनिधि नहीं हो सकतीं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राजनीति से ऊपर उठ कर पुडुचेरी को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा नहीं दिया जा सकता ताकि यह रोज रोज वाला सास-बहू का चिक-चिक हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए? अगर ऐसा होता है तो ना ही असमान गिर जाएगा और ना ही सुनामी आ जाएगी.


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