सम्पादकीय

पीएम की उल्फत ऐसी…

Rani Sahu
2 Sep 2022 6:48 PM GMT
पीएम की उल्फत ऐसी…
x
By: Divyahimachal
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव पटना आए थे। जाहिर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात तय थी। आजकल ऐसी मुलाकातें सियासी तौर पर महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर विपक्ष का महागठबंधन बनाया जाना है। महागठबंधन के नेतृत्व पर भी विमर्श स्वाभाविक है। नीतीश की एक हुंकार तो सार्वजनिक हुई है-'इस बार थर्ड नहीं, मेन फ्रंट होगा।' दरअसल एक काव्यांश है कि पीएम पद की उल्फत ऐसी कि न कही जाए, न सही जाए।' लिहाजा आजकल ऐसी उल्फतें करवटें लेने लगी हैं। नीतीश ने मुख्यमंत्री पद की नई शपथ ली थी, तो उसके बाद उन्होंने कहा था कि देश भर से उन्हें फोन आ रहे हैं। उनकी जो भी व्याख्या की जाए, कमोबेश वे सभी फोन नीतीश को प्रधानमंत्री प्रत्याशी तय करने के लिए नहीं किए गए थे। इसकी बानगी चंद्रशेखर राव के साथ उनकी साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामने आई।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने बिहारी मुख्यमंत्री की राजनीतिक समझ और सरकार के कार्यों की सराहना तो की, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की दावेदारी और उम्मीदवारी का एक बार भी समर्थन नहीं किया। चूंकि सवालों की बौछार थी, लिहाजा नीतीश बार-बार कन्नी काटते रहे और जाने को खड़े भी हो गए, लेकिन चंद्रशेखर राव लगातार उन्हें बैठने का आग्रह करते रहे। प्रस्तावित महागठबंधन में कांग्रेस और राहुल गांधी की भूमिका क्या होगी, यह सवाल निरंतर अनुत्तरित छोड़ा गया। हालांकि बाद में कांग्रेस प्रवक्ता स्पष्ट करते रहे कि कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है। सबसे ज्यादा राज्यों में उसके 'नेता प्रतिपक्ष' भी हैं, लिहाजा विपक्ष को कोई जनादेश मिलता है, तो राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री होंगे। चंद्रशेखर राव का उदाहरण तो सामने है। ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन, डा. फारूक अब्दुल्ला और वामपंथी दलों की ओर से, नीतीश के पक्ष में, एक भी बयान नहीं आया है। लगातार दोहराया जाता रहा है कि विपक्षी दलों की बैठक होगी और सभी मिल कर तय करेंगे कि इस बार महागठबंधन 'मेन फ्रंट' साबित कैसे हो सकता है? इसी दौरान शरद पवार ने कहा है कि विपक्षी गठबंधन 'साझा न्यूनतम कार्यक्रम' के आधार पर बनाया जा सकता है। दरअसल हकीकत यह है कि सभी बड़े नेता और अपने-अपने राज्यों के क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षाएं पाले हुए हैं। यह अस्वाभाविक भी नहीं है, लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की तुलना में वे खुद और उनके पार्टी काडर बेहद बौने और सीमित हैं। सिर्फ महंगाई, बेरोजग़ारी, रुपए का अवमूल्यन, चीन के अतिक्रमण, किसानी असंतोष, संघीय असंतुलन, लडख़ड़ाती अर्थव्यवस्था (झूठ बोलता है विपक्ष), पूंजीपति मित्रों के कारोबारी फायदे आदि मुद्दों पर ही प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को परास्त करना संभव नहीं लगता। विपक्ष को इन मुद्दों पर जन-आंदोलन तैयार करने पड़ेंगे। विपक्ष की हुंकारों के पीछे जन-सैलाब भी होना चाहिए। तब किसी परिवर्तन की गुंज़ाइश बनती है। विपक्ष की दलील ही मान लें कि भाजपा की 50-55 सीटें 2024 में कम हो सकती हैं। उस स्थिति में भी भाजपा के पक्ष में 250 से ज्यादा लोकसभा सीटों का जनादेश संभव है। वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आ सकती है।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story