सम्पादकीय

भारत की श्रीलंका, पाक जैसी नहीं बल्कि अफ्रीकी देश जैसी दुर्दशा!

Gulabi Jagat
9 April 2022 4:56 AM GMT
भारत की श्रीलंका, पाक जैसी नहीं बल्कि अफ्रीकी देश जैसी दुर्दशा!
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इसलिए क्योंकि श्रीलंका और पाकिस्तान 1947 से नस्ल के कोर मिशन में बुने हुए हैं
By हरिशंकर व्यास.
इसलिए क्योंकि श्रीलंका और पाकिस्तान 1947 से नस्ल के कोर मिशन में बुने हुए हैं। इन दोनों देशों ने कई संकट देखें, लोगों का विद्रोह हुआ लेकिन आबादी की बुनावट में एक देश, जहां इस्लाम के मिशन में हजार साल घास खाने की कसम खाए हुए हैं वहीं श्रीलंका के सिंहली आधुनिक बौद्ध जीवन का स्थायी मकसद बनाए हुए हैं। भंडारनायके परिवार, जयवर्धने, प्रेमदासा और राजपक्षे परिवार कोई भी नेता परिवार व पार्टी वहां विचारधारा, मध्य मार्ग के किंतु-परंतु में नहीं रही। जैसे कि भारत और भारत के नेता तथा प्रजा 75 वर्षों से जीती आई है। तभी इतिहास दृष्टि में सौ साल बाद भारत का सार यह लिखा हुआ होगा कि लोगों के संघर्ष या मौके से 1947 में जब आजादी मिली तो उससे देश में काले अंग्रेज पैदा हुए। इन अंग्रेजों ने माई-बाप सरकार के मॉडल में लोगों को ऐसा लूटा, भ्रष्टाचार व नैतिक पतन में ऐसा मारा कि 75 साल बाद के अमृत वर्ष के वक्त 110 करोड़ लोग पांच किलो फ्री राशन, खैरातों से पेट भरते हुए थे! 1975-77 में पब्लिक जागी, जेपी की संपूर्ण क्रांति हुई तो क्रांति के बजाय लालू, रामविलास, नीतीश पैदा हुए। जातियों के अणु बम में हिंदू और खंड-विखंडित। सन् 2014 में हिंदू जागृति आई तो वे नरेंद्र मोदी पैदा हुए, जिनकी सत्ता का मिशन पानीपत की तीसरी लड़ाई और 1942 के जिन्ना के इस सपने को पूरा करना कि हर जिले में एक हिंदुस्तान और एक पाकिस्तान!
ऐसी बिखराव वाली रियलिटी में अफ्रीका के कई देश जीते आए हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि अफ्रीका आज भारत से गया गुजरा या अंधी गुफा है। नहीं, अफ्रीकी देश जिस तेजी से पिछले 25 वर्षों में बदले हैं वह अद्भुत है। दक्षिण अफ्रीका गोरों-कालों में सामंजस्य बना मजे से आगे बढ़ते हुए है। इसे देखना-समझना हो तो बीबीसी जैसे अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनलों को देखा करें। हर वैश्विक चैनल अफ्रीका पर रेगुलर प्रोग्राम लिए (भारत व दक्षिण एशिया का मतलब ही नहीं। यदि दुनिया में भारत पर कोई प्रोग्राम दिखता भी है तो मांस की दुकानों जैसे विवादों, बदहाल पर्यावरण, प्रदूषण, गरीबी, अंधविश्वास आदि, आदि पर होगा) मिलेगा। अफ्रीका में देख कर हैरानी होती है कि घाना इतना बदल रहा। केन्या, केन्याटा के वक्त से इतना आगे निकल गया। अल्जीरिया, मोरक्को की पर्यटन से इतनी भारी कमाई या दक्षिण अफ्रीका क्रिप्टोकरेंसी, वित्त, बैंक, माइनिंग में वैश्विक दबदबा बनाए हुए।
वहीं भारत? अपना भविष्य अफ्रीकी देशों के उन मॉडल की और ले जाता हुआ, जहां प्रधानमंत्री की सत्ता भूख और नस्ली-जातीय हिंसा से गृहयुद्ध अनुभव लगातार है। मैं चालीस वर्षों से जिम्बाब्वे और इथियोपिया पर गौर करते हुए हूं। जिम्बाब्वे के रोडेशिया वक्त से ले कर इथियोपिया के हेले सिलासी के समय से वर्तमान के सफर में जो बरबादी है, लोग जैसे भूखे मरते हुए जीते हैं, वह जिम्बाब्वे में केवल एक नेता की सत्ता भूख से पैदा हुई। ऐसे ही इथियोपिया में लोगों का नस्ली झगड़ों में गृहयुद्ध ऐसा पकता गया कि कभी इरिट्रिया, कभी टाइग्रे, कभी ओरोमो का सिलसिला अनवरत है। समझ नहीं आता कि वहां के नेता और प्रजा अपने इतने प्राचीन मुल्क का करना क्या चाहते हैं? अफ्रीका के ये बरबाद देश (याकि 875 डॉलर प्रति व्यक्ति जीडीपी से लेकर दो हजार डॉलर के बीच और भारत का यथार्थ कोई दो हजार डॉलर प्रति व्यक्ति जीडीपी पर ही) भरपूर खनिज, संसाधान और प्राकृति सौंदर्य के बावजूद नेता व प्रजा की मूर्खताओं का परिणाम हैं। प्रति व्यक्ति जीडीपी के दस बॉटम अफ्रीकी देशों में बुरूंडी (771 डॉलर), सोमालिया (875 डॉलर), मध्य अफ्रीकी गणतंत्र (980 डॉलर), कांगो (1131 डॉलर), नाइजर (1263 डॉलर), मोजांबिक (1297 डॉलर), लाइबेरिया (1428 डॉलर), मालावी (1568 डॉलर), मेडागास्कर (1593 डॉलर), चाड (1603 डॉलर) नेता और प्रजा की साझा मूर्खताओं के नतीजे हैं। आबादी-आकार की कसौटी में भारत समतुल्य नाइजीरिया (2000 डॉलर) को देखें तो वह भी बरबादी के इन बेसिक कारणों में जीता हुआ है- बुद्धिहीन नेतृत्व, सत्ता की भूखी राजनीति, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातीय-नस्ली-धार्मिक गृह युद्ध और प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीब दोहन!
भारत में आम धारणा है कि अफ्रीका के सभी देश भारत से पिछड़े हुए हैं। मगर नोट रखें कि दक्षिण अफ्रीका देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से ढाई गुणा अधिक 5,410 डॉलर है। भारतीय मूल बहुल मॉरीशस में यह 10,230 डॉलर है तो अंगोला और घाना भी भारत से ज्यादा प्रति व्यक्ति जीडीपी लिए हुए हैं। नोटबंदी के बाद की दिशा है कि भारत अब ऊपर याकि अंगोला व घाना की तरह बढ़ता हुआ नहीं है, बल्कि आंकड़ों में खेला करते हुए भी चुपचाप खोखला होता हुआ, नीचे गिरता हुआ चाड और मालावी देशों की श्रेणी में जाता हुआ है। यदि भारत का मौजूदा चाल-चलन अगले 15-20 वर्षों में जस का तस रहा, पानीपत की तीसरी लड़ाई में बुलजोडर से खाइयां गली-मोहल्लों पहुंचती गईं तो तय मानें भारत अफ्रीका के गृहयुद्ध वाले देशों से अधिक बरबाद होगा। ऐसा पाकिस्तान और श्रीलंका में नहीं होगा क्योंकि वहां के लोग अशांत, आंदोलित और तख्ता पलटने वाला धमाल चाहे जैसा बनाएं लेकिन वे आपस में लड़ने और हिंदुओं की तरह अपने हाथों अपने पांवों कुल्हाड़ी मारने वाले नहीं हैं।
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