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workers ki खबर
दीपा शर्मा। बीते साल लाकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों व आíथक रूप से कमजोर लोगों को जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनकी परेशानियों को देखते और समझते हुए केंद्र सरकार ने खाद्यान्न वितरण की योजना बनाई और स्कूलों को वितरण व भंडारण केंद्र बनाया ताकि कोरोना काल में उन्हें दो वक्त की रोटी मिल सके, राशन के लिए जूझना ना पड़े। लापरवाही का घुन यहां भी लग गया।
राशन की योजना तो बनी, पर उसे सही ढंग से लागू नहीं किया गया। परिणाम यह हुआ कि राशन स्कूलों में पड़े-पड़े सड़ गया। इससे योजना बनाने और लागू करने वालों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन राशन नहीं मिलने से जरूरतमंदों को काफी परेशानी हुई। यह पूरा परिदृश्य बताता है कि हम महामारी के संवेदनशील समय में भी कितने असंवेदनशील रहे। हमारी व्यवस्था को गरीबों की जरूरतें नहीं दिखती हैं।
योजना बनाते समय इन बिंदुओं पर हो काम- सरकारी व्यवस्था को अपना ईमानदारी से अवलोकन करना चाहिए।
योजना के शुरू और समाप्त होने तक की पूरी रूपरेखा हो तैयार।
पारदर्शिता और जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
योजना के चरणवार क्रियान्वयन पर नजर रखने की है जरूरत।
कोई चूक होने पर उसे दूर करने की हो पूरी व्यवस्था।
कार्रवाई का भय जरूरी
व्यवस्था बनाने वाले और उसे लागू करने वाले दोनों पक्षों को यह तय करना होगा कि योजना जिसके लिए बन रही है, उसका लाभ उसे जरूर मिले। इसके लिए सबसे पहले तो सरकार और जनता दोनों स्तर पर निगरानी हो। उसके बाद वितरण प्रणाली की पारदर्शिता को और अधिक मजबूत किया जाए। तकनीक के युग में सब कुछ आनलाइन है तो राशन वितरण आनलाइन क्यों नहीं होता। इस प्रणाली के आनलाइन होने से अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिलेगा और गड़बड़ी की आशंका भी कम होगी। साथ ही इस पर भी ध्यान देना होगा कि अगर योजना के लाभाíथयों के साथ किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है तो फिर जिम्मेदार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी हो। जिम्मेदारी तय होगी तो योजना विफल नहीं होगी और जरूरतमंदों को उसका पूरा लाभ भी मिलेगा।
(डा. राकेश राणा, असिस्टेंट प्रोफेसर समाजशास्त्र, एमएमएच कालेज, गाजियाबाद)
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