- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भारतीय लोकतंत्र को...
दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर वही हुआ, जिसकी आशंका थी। कृषि कानूनों के विरुद्ध दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन ने हिंसक और राष्ट्रविरोधी स्वरूप लेकर गण, तंत्र और गणतंत्र, तीनों को शर्मसार किया। जिस पंजाब ने तिरंगे की शान के लिए अपने असंख्य सपूतों का बलिदान दिया, उसी पंजाब से किसानों का मुखौटा लगाए धनपतियों के अराजक साथियों द्वारा लाल किले पर तिरंगे का अपमान पंजाब और देश के नाम पर धब्बा लगाने जैसा है। इस प्रकरण में गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के धैर्य की तारीफ करनी होगी, अन्यथा लाल किले में अनर्थ हो सकता था। वास्तव में सामाजिक आंदोलनों पर किसी भी संगठन या नेता का इतना नियंत्रण नहीं होता कि वह उसे अनुशासित रख सके और एक छोटे समूह द्वारा अचानक की गई अराजकता को रोक सके। जैसा अपेक्षित था, संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने हिंसा की तमाम वारदातों और लाल किले की घटना से अपना पल्ला झाड़ लिया। कुछ ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली, लेकिन आखिर किसानों को कृषि कानूनों पर गुमराह करने, कानून वापस लेने के लिए उकसाने और गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की जिद के बाद अब इसका क्या औचित्य?