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आज 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर देशभर के वैज्ञानिक संस्थानों में स्वदेशी तकनीकों का जश्न मनाया जा रहा है. इस वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का विषय- ‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’- देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों और स्वदेशी तकनीक द्वारा चुनौतियों और समस्याओं के समाधान पर केंद्रित है. ‘रामन प्रभाव’ की खोज के उपलक्ष्य में हर वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है. भारत सरकार ने 1986 में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में नामित किया था. इसी दिन सर सीवी रामन ने ‘रामन प्रभाव’ की खोज की घोषणा की थी, जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
आज भारत की स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी की विकास यात्रा में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक एवं वैज्ञानिक सहयोग के द्वार खुल चुके हैं. देशवासियों के समग्र कल्याण के लिए आज घरेलू प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है, जो विकसित भारत की राह में एक बड़ा योगदान होगा. विदित हो कि स्वदेशी तकनीकी विकास, वैज्ञानिकों, उद्यमियों, किसानों और कामगारों को एक साथ काम करने और समग्र रूप से मानवता की भलाई में योगदान करने का अवसर देती है. देश की प्रगति और विकास के आधार के रूप में स्वदेशी अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के संबंध में ‘अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एएनआरएफ) अधिनियम’ के प्रावधानों को पांच फरवरी, 2024 को लागू किया गया है. एएनआरएफ का लक्ष्य गणितीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण तथा पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य एवं कृषि सहित प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करना है. एएनआरएफ को 50,000 करोड़ के बजट के साथ 2023 से 2028 तक के लिए लागू किया जा रहा है. देश के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित एएनआरएफ स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देने के साथ ही उद्योग, शिक्षा जगत, सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करके देश के लिए एक इंटरफेस तंत्र तैयार करेगा.
यह महत्वपूर्ण है कि वैश्विक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सूचकांकों में भारत की रैंकिंग लगातार बढ़ रही है. आज भारत वैज्ञानिक अनुसंधान प्रकाशनों में शीर्ष पांच देशों में से एक है. भारत ने वैश्विक स्तर पर शीर्ष नवीन अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक नवप्रवर्तन सूचकांक में 40वां स्थान बरकरार रखा है. डब्ल्यूआइपीओ रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत दुनिया में रेजिडेंट पेटेंट दाखिल करने संबंधी गतिविधि के मामले में सातवें स्थान पर है. देश की पेटेंट फाइलिंग 90,000 को पार कर गयी है जो दो दशक में सबसे अधिक है. नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स 2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी रैंकिंग 79वें (2019) में सुधार कर 60वें स्थान (2023) पर पहुंच गया है. डीपीआइआइटी स्टार्ट-अप इंडिया पोर्टल के अनुसार, अंतरिक्ष स्टार्ट-अप की संख्या 2014 के एक से बढ़कर 2023 में 189 पर पहुंच गयी. भारतीय अंतरिक्ष स्टार्ट-अप में निवेश बढ़कर 2023 में 124.7 मिलियन डॉलर हो गया. यह प्रगति आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, खगोल विज्ञान, सौर और पवन ऊर्जा, अर्धचालक, जलवायु अनुसंधान, अंतरिक्ष अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में देश में विज्ञान प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती के कारण हो रही है. भारत वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर शीर्ष देशों में शामिल है. वहीं अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में यह शीर्ष पांच देशों में से एक है.
देश की नयी शिक्षा नीति में भी विज्ञान शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष और बच्चों में तकनीकी दक्षता के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है. विज्ञान के क्षेत्र में बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ‘इंस्पायर योजना’ आरंभ की गयी है. इसका उद्देश्य छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान करियर बनाने के लिए प्रेरित करना है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विज्ञान के उच्च शिक्षा क्षेत्रों में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए ‘किरण कार्यक्रम’ आरंभ किया गया है. ‘विज्ञान ज्योति कार्यक्रम’ के तहत देश के 250 जिलों की 21,000 से अधिक छात्राओं को विभिन्न गतिविधियों से जोड़ा गया है. जन कल्याण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकी ढांचे को विकसित करने के लिए आज देश की प्रयोगशालाएं और वैज्ञानिक तैयार हैं. कोविड-19 महामारी ने भारत में चुनौती और अवसर दोनों को उजागर किया है, जिन्हें स्वदेशी प्रौद्योगिकी ढांचे द्वारा संबोधित और संचालित किया गया. भारत की वैक्सीन विकास क्षमता कोविड महामारी के दौरान साबित हो चुकी है. हमारा देश अब क्वांटम प्रौद्योगिकी में वैश्विक प्रगति की बराबरी करने को तैयार है. अगले 25 वर्षों में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में स्वदेशी तकनीकी विकास का अहम योगदान होगा. स्वदेशी तकनीकों के विकास के साथ देश की विभिन्न भाषाओं में उनका प्रचार और देश के सुदूर क्षेत्रों में तकनीकी विकास का प्रसार भी आवश्यक होगा. स्वदेशी तकनीक को गांव-गांव तक पहुंचाने में विज्ञान और तकनीकी संचारकों तथा प्रसार संस्थानों की बड़ी भूमिका होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
डॉ निमिष कपूर
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Gulabi Jagat
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