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- आदि शंकराचार्य की...
प्रणय कुमार। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केदारपुरी में आदि शंकराचार्य की अप्रतिम प्रतिमा का अनावरण कर उनकी स्मृतियों को पुन: जीवंत किया। इस अवसर पर आदि शंकराचार्य के जीवनवृत्त एवं उनके अवदान से परिचित होना आवश्यक है। आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में ही संपूर्ण भारतवर्ष का पैदल भ्रमण कर सनातन संस्कृति के मर्म को समझकर सतत साधना के बल पर उसका प्रत्यक्ष अनुभव किया। इसी अनुभव के आधार पर वह राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के स्थायी, मान्य एवं व्यावहारिक सूत्र-सिद्धांत देने में सफल रहे। पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्र को एकता एवं अखंडता के सुदृढ़ सूत्र में पिरोने में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। सुदूर दक्षिण में जन्म लेकर भी वह संपूर्ण भारतवर्ष की रीति-नीति-प्रकृति-प्रवृत्ति को भली-भांति समझ पाए। वेदों-उपनिषदों-पुराणों-महाकाव्यों में निहित ईश्वर की सर्वव्यापकता, जीव-जगत-बह्म के अंत:संबंधों तथा इस चराचर में व्याप्त एक ही परम तत्व की उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभूति की। इसी अनुभूति, ज्ञान एवं साधना के बल पर ही वह काल-प्रवाह में आए भ्रम-भटकाव, भेद-संशय, द्वंद्व-द्वैत-द्वेष-दूरी आदि का निराकरण कर तत्कालीन सभी मत-पंथ-जाति को ऐक्य एवं अद्वैत भाव से जोड़ पाए।