सम्पादकीय

चुनौतियों व उपलब्धियों भरे बीते दो दशक, महिला सशक्तीकरण की राह पर अग्रसर

Gulabi
31 Dec 2020 4:33 PM GMT
चुनौतियों व उपलब्धियों भरे बीते दो दशक, महिला सशक्तीकरण की राह पर अग्रसर
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भारत में ही एक करोड़ से अधिक लोगों के संक्रमित होने तथा लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौत के कारण सदी का सबसे भयावह वर्ष माना जा सकता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीत रहे साल 2020 को कोविड महामारी से भारत में ही एक करोड़ से अधिक लोगों के संक्रमित होने तथा लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौत के कारण सदी का सबसे भयावह वर्ष माना जा सकता है। इससे हुई सामाजिक उथल-पुथल के बावजूद निस्वार्थ मदद की उष्मा ने मानवता की भावनात्मक एकता की मिसाल भी कायम की। वर्ष 2020 की आखिरी ठंडी शाम के साथ यह साल भी करवट ले रहा है। इस सदी के आरंभिक दो दशकों में हमने उपग्रह बनाने और उन्हें व्यावसायिक स्तर पर अंतरिक्ष में स्थापित करने में नाम कमाया है।


चंद्रयान भेजकर हमने कवियों के महबूब, चांद की असलियत टटोलने का प्रयास भी किया है। उम्मीद की जा रही है कि चांद पर अगली दस्तक हमारे अंतरिक्ष यात्री देंगे। उपग्रह प्रक्षेपण से हमें रॉकेट प्रौद्योगिकी में तरक्की मिली जिससे हम धरती से धरती पर, धरती से हवा में और हवा से हवा में एवं हवा से धरती पर सैकड़ों मील दूर मार करने में सक्षम मिसाइलें बनाने और दागने में सफल हैं। इसके साथ ही, पनडुब्बी, विमान, टैंक, तोप और युद्धपोत आदि भी हम सफलतापूर्वक बना रहे हैं।

नई संसद और अयोध्या श्रीराम मंदिर की आधारशिला : इसी दौरान सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार एवं भोजन का संवैधानिक अधिकार देकर विधायी उपायों से लोगों को अशिक्षा एवं गरीबी से उबारने की अनूठी लोकतांत्रिक पहल की गई है। देश की जनता ने भी अहिंसक चुनावों में अपने विवेकानुसार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों सहित राज्यों और केंद्र में नए निजाम चुनकर अपनी लोकतांत्रिक परिपक्वता की धाक जमाई है। नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने। भारतीय जनता पार्टी ने देश में पहली बार बहुमत की सरकार बनाई। फिर उससे भी अधिक सीट 2019 के आम चुनाव में जीती और दोबारा सरकार बनाई। वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में संसद के नए भवन और अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के लिए दो महत्वपूर्ण भूमिपूजन किए। जाहिर है कि यही दो इमारतें अगले दशक में देश की राजनीति की धुरी बनेंगी।


टीकाकरण में अब तक की कामयाबी : इसी सदी में हमने करोड़ों बच्चों को दो बूंद जिंदगी की वैक्सीन पिला कर पोलियो रोग से मुक्ति पाई है। अब कोविड की छूत से बचाने वाली वैक्सीन भी टीकाकरण के लिए लगभग तैयार है। इसे भारतीय आयुíवज्ञान अनुसंधान परिषद तथा भारत बायोटेक के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसके अलावा, ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा जेनेका सहित इस महामारी की आधा दर्जन अन्य वैक्सीनों का उत्पादन भी भारत स्थित दवा कंपनियों में ही होगा। मौजूदा क्षमता के तहत हम कोविड निवारक वैक्सीन के सालाना ढाई अरब टीके बना सकते हैं।
हमने बच्चों और गर्भवती माताओं के लिए पोषण एवं इंद्रधनुष टीकाकरण कार्यक्रम चलाकर आने वाली पीढ़ियों को निरोग एवं पुष्ट बनाने की अनूठी कोशिश की है। देश के लगभग 16 करोड़ बच्चों को स्कूल में ही दोपहर का भोजन खिला कर उन्हें पढ़ाई में लगाए रखने का सबसे बड़ा वैश्विक कार्यक्रम भी चलाया है। इस बीच दुनिया ने भी महात्मा गांधी की जयंती दो अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिसा दिवस तथा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाना शुरू कर मानवता को भारत के दो महानतम योगदान का लोहा माना है।
दुष्कर्म मामलों में कड़ा रुख : इस बीच 21वीं सदी को महिलाओं की सदी बताने से दुनिया की आधी आबादी और एशिया की सदी करार देने से सबसे अधिक आबादी वाले महाद्वीप में बेहतर एवं समृद्ध भविष्य की उमंग भी जगी। महिलाओं को काम की जगह पर सुरक्षित परिवेश प्रदान करने के लिए कार्यस्थल महिला यौन उत्पीड़न बचाव, निषेध एवं निवारण कानून, 2013 लागू किया गया। इसके अलावा, साल 2012 में निर्भया कांड के बाद उभरे जनाक्रोश के दबाव में महिलाओं पर बुरी नजर डालने, उनसे छेड़छाड़, उनके यौन उत्पीड़न एवं दुष्कर्म जैसे अपराधों के लिए कानूनी प्रावधान बेहद कड़े किए गए हैं।
वाजपेयी सरकार के समय से आया बदलाव : अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने जहां हमारे संरक्षित पेटेंट कानूनों में संशोधन का जोखिम उठाया, वहीं वित्तीय वर्ष 2003-04 में जीडीपी की वार्षकि वृद्धि दर आठ फीसद पहुंचाने का रिकार्ड भी बनाया। इसके बाद यूपीए सरकार ने अपने एक दशक के शासनकाल में सात साल आठ फीसद से अधिक ही वृद्धि दर दर्ज की, मगर वर्ष 2011-12 से यह गच्चा खा गई। तब से वृद्धि दर का औसत छह फीसद ही निकल रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में तो महामारी जनित कारणों ने वृद्धि दर को आíथक घटौती दर में बदल कर नकारात्मक कर दिया है। हालांकि नोटबंदी और डिजिटल इंडिया से ऑनलाइन लेनदेन तथा कारोबार में तेजी आई है।
मोदी सरकार ने खुदरा स्टोरों में विदेशी पूंजी निवेश के बजाय ऑनलाइन व्यापार में विदेशी पूंजी को कुबूल किया है। बुनियादी ढांचे से लेकर दूरसंचार, नागरिक उड्डयन, बीमा और रक्षा उत्पादन जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक क्षेत्रों में भी विदेशी पूंजी निवेश की शर्तो को उदार बनाया गया है। इसका मुख्य मकसद महामारी की शुरूआत चीन से होने से बिदक कर वहां से हट रहे बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं उद्यमों को आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत पूंजी निवेश के लिए आकर्षति करना है।
बीते दशकों की विविध उपलब्धियां : वर्ष 2005 में संसद से पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी मनरेगा का बजट सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया है। वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते ने हमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु आपूíतकर्ता समूह की सदस्यता दिलाई। भारत अब अमेरिका का रणनीतिक साङोदार भी है, जिससे हमें लद्दाख सीमा पर चीन को रोकने में मदद मिल रही है। इसी बीच एक देश-एक कर मुहिम के तहत देश भर में जीएसटी यानी माल एवं सेवा कर प्रणाली लागू की गई है। साल 2016 में आठ नवंबर के बाद केंद्र सरकार ने काला धन खत्म करने के नाम पर पांच सौ एवं एक हजार रुपये के नोटों का चलन रोक दिया।
हालांकि अनेक कारणों से यह अपने लक्ष्य को साधने में पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो पाया। गरीबों के लिए पांच लाख रुपये तक इलाज वाली आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 12.5 करोड़ परिवारों द्वारा अपना ई-कार्ड बनवा लेने का सरकारी दावा है। फसल बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, मुद्रा कर्ज योजना, फेरीवालों के लिए प्रधानमंत्री स्वनिधि कर्ज योजना आदि भी चलाई गई हैं। महामारी के आरंभिक छह माह में गरीबों को मुफ्त राशन वितरण तथा वरिष्ठ नागरिकों व अन्य कमजोर तबकों को आíथक सहायता दी गई। महामारी से कामबंदी के कारण लाखों मजदूरों ने जब सैकड़ों मील दूर अपने घरों की राह पैदल ही पकड़ी तो पूरी दुनिया ने उस पर ध्यान दिया। अंतत: भारत सरकार ने भी इन मजदूरों की घरवापसी के लिए विशेष ट्रेन चलाईं एवं कुछ राज्य सरकारों ने विशेष बसों से उन्हें घर पहुंचाया।

महामारी जनित समस्याओं से पैदा चुनौतियां : देश और दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद और इबोला, सार्स कोरोना वायरस महामारी की पीड़ा ने मनुष्य को जहां उसकी निजी सामथ्र्य के तंग दायरे का भान कराया, वहीं विज्ञान और तर्क सहित जीवन और समाज में अनुशासन की महत्ता भी बखूबी समझाई। मानवता को डसने के लिए महामारी मारीच की तरह रूप बदल रही है, मगर प्रयोगशालाओं में विज्ञान की डोर थामे स्वास्थ्यशोधक विज्ञानी अपने अथक परिश्रम से हमें लगातार आश्वस्त कर रहे हैं। अंतत: काल की अविराम गति में अपनी सारी कालिमा समेटे साल 2020 विदा हो रहा है और नए साल 2021 की नई सुबह कालमोचक वैक्सीन के साथ उम्मीद की सुनहली किरणों बिखरा रही हैं।

केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम जैसे महानगर में निगम की बागडोर महज 21 साल की सबसे युवा निर्वाचित महापौर आर्या राजेंद्रन के हाथों में आ गई है। कॉलेज में पढ़ रही आर्या को सीपीआइएम ने यह महती जिम्मेदारी सौंपी है। राजस्थान में भी 21 बरस की आसरूणी खान भरतपुर जिले की डीग पंचायत समिति के तहत चूल्हेड़ा ग्राम पंचायत की सरपंच चुनी गई हैं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह को अत्याधुनिक राफेल लड़ाकू विमान उड़ाने वाले दस्ते में शामिल करके प्रशिक्षित किया जा रहा है। अनेक राज्यों ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अथवा उसी तरह के प्रादेशिक कार्यक्रम लागू किए हैं। बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश आदि अनेक राज्यों ने लड़कियों को स्कूल जाने-आने के लिए साइकिल भी दी हैं।

महामारी काल में लॉकडाउन के दौरान सहारनपुर, जालंधर और हरिद्वार से हिमालय की सुनहरी चोटियों के दर्शन तथा राजधानी दिल्ली में साफ हवा और विलुप्त गौरैया की घरों की बालकनियों में वापसी करवा कर प्रकृति ने साफ कर दिया कि प्रदूषण और फैलने व परिंदों द्वारा अपने पर समेट कर मानव बस्तियों से फुर्र हो जाने की वजह असीमित उपभोग की मनुष्य की लालसा ही है। यदि प्रकृति के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए मानव संयम एवं अनुशासन से जीवनयापन करने की ओर मुड़ जाए तो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से अब भी बचा जा सकता है। पृथ्वी विज्ञान विभाग ने भी हमें इस संदर्भ में सतर्क करते हुए इस तथ्य की पुष्टि की है।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 के बाद से उद्यमशीलता प्रोत्साहन के लिए स्टार्ट अप, स्टैंड अप और मेक इन इंडिया योजना भी चला रखी हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि विदेशी पूंजी से देश में औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा और देश की 60 फीसद युवा आबादी को रोजगार मिलेगा। इससे बेहतर जीवन जीने के मौके बढ़ेंगे तथा गरीबी और भुखमरी से भी देश का पिंड छूटेगा। इन दो दशकों में कामकाजी तौर पर अर्थव्यवस्था में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, जिससे परिवार-समाज में अब लड़कियों को बोझ नहीं समझा जाता है, बल्कि महिलाएं अब आर्थिक मामलों में पहले से कहीं अधिक स्वायत्त हो रही हैं। उनकी तरक्की के संदर्भ में देखें तो यह वाकई बहुत बड़ा बदलाव है।


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