सम्पादकीय

बीती बातें, नई उम्मीदें

Subhi
23 Oct 2022 6:07 AM GMT
बीती बातें, नई उम्मीदें
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कोविड महामारी बेशक अब भी हो हमारे बीच, लेकिन इसका रूप कुछ शिथिल पड़ गया है। पिछली दिवाली के दिन यादें ताजा थीं उन भयानक महीनों की, जब ऐसा लगा कि कोविड ने भारत सरकार और हम सबको हरा दिया था बुरी तरह। न भारत सरकार के पास टीके थे, न अस्पतालों में दवाएं, न आक्सीजन या कोविड को मात देने के वे सारे बाकी साधन।

तवलीन सिंह: कोविड महामारी बेशक अब भी हो हमारे बीच, लेकिन इसका रूप कुछ शिथिल पड़ गया है। पिछली दिवाली के दिन यादें ताजा थीं उन भयानक महीनों की, जब ऐसा लगा कि कोविड ने भारत सरकार और हम सबको हरा दिया था बुरी तरह। न भारत सरकार के पास टीके थे, न अस्पतालों में दवाएं, न आक्सीजन या कोविड को मात देने के वे सारे बाकी साधन।

मैं उन लोगों में थी, जिन्होंने नरेंद्र मोदी की खूब आलोचना की थी पिछले साल। इस बार दाद देने की जरूरत है, क्योंकि कोविड से पहली बाजी हारने के बाद प्रधानमंत्री ने टीकाकरण का इतना सफल अभियान चलाया कि देखते-देखते कोविड को काबू में लाया गया।

माना कि तब तक कई परिवार लावारिस हो गए थे, माना कि लाखों लोग गरीबी की रेखा के नीचे धकेल दिए गए थे इलाज के बोझ तले, लेकिन यह भी मानना जरूरी है कि आम लोगों ने मोदी की गलतियां माफ कर दीं। सबूत मिला उत्तर प्रदेश में, जहां कोविड की गलतियों के बावजूद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री दुबारा बनने का मौका दिया उस प्रदेश के मतदाताओं ने।

इस साल दिवाली मना रही हूं उस समुद्र किनारे गांव में, जहां मैंने पूर्णबंदी के सबसे बुरे दिन बिताए थे। गांव में बीमारी का साया इतना लंबा और काला छा गया था कि पर्यटक बिल्कुल नहीं दिखते थे समुद्र तट पर। सूने हो गए थे इस छोटे गांव के रेस्तरां और होटल तथा कई लोगों के छोटे-मोटे कारोबार बंद हो गए थे।

इस गांव की अर्थव्यवस्था तकरीबन पूरी तरह चलती है पर्यटकों के आने से। जिनके होटल या रेस्तरां नहीं हैं, वे लोग समुद्र तट पर पर्यटकों के लिए कई किस्म की सेवाएं देकर गुजारा करते हैं। कोई नारियल पानी की दुकान चलाता है, तो कोई बच्चों को घुड़सवारी कराता है और अब आ गए हैं जेटस्की, जो स्कूटर किस्म की चीज है, जो समुद्र के पानी में चलती है।

इस साल पर्यटक भी आ गए हैं बहुत सारे और घरों में कंदील और दिवाली की बत्तियां भी लग चुकी हैं, मानो गांव मातम के लंबे दौर से निकल कर दिवाली मनाने में जी-जान से लग गया हो। रात को कई घरों में से आती हैं गाने-बजाने और मस्ती की आवाजें।

मेरी बातें जिनसे भी हुई हैं, उनका कहना है कि दो साल बाद वे मना रहे हैं दिवाली, पूरी खुशी से। बाजारों में रोशनियां भी हैं और ग्राहकों की भीड़ भी और मंदिर सज गए हैं चमकती बत्तियों की लड़ियों से। अब बात करते हैं देश के राजनीतिक और आर्थिक हाल पर। इन विषयों को मैंने जानबूझ कर आखिर तक छोड़ा है, इसलिए कि ढूंढ़ने से नहीं मिली हैं मुझे इनको लेकर खुश खबरें।

राजनीतिक तौर पर देश को कमजोर किया है इस साल नफरत और बुलडोजर ने, जो इतने समझदार हो गए हैं कि उनको सिर्फ मुसलमानों के घर दिखाए देते हैं गिराने के लिए, और संयोग से तभी पहुंचते हैं तोड़फोड़ करने, जब किसी शहर के किसी मुसलिम बहुल बस्ती में हिंसा हुई हो।

हिंसा के कारण अक्सर यही होते हैं कि हिंदुओं का कोई जुलूस संयोग से गुजरता है किसी मस्जिद के सामने से और ठीक वहां मुसलमानों के खिलाफ नारे लगते हैं। अशांति फैलाने में कई भगवापोश बाबाओं के भाषण हैं, जिनमें मुसलमानों के जनसंहार के आदेश दिए गए हैं।

सो, आज और कल जब आप अपने घरों में दीये जलाएंगे, उनको भी याद कर लीजिएगा जिनके घर नहीं रहे। बिलकीस बानो के लिए दुआ कर लीजिएगा, जिसकी टूटी हुई जिंदगी में फिर लौट कर आ गए हैं वे दरिंदे, जिन्होंने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था और उसकी तीन साल की बच्ची का सिर उसके सामने पत्थर से फोड़ा था।

आर्थिक तौर पर भी खबरें अच्छी नहीं हैं। रुपए की कीमत डालर के मुकाबले रोज गिरती जा रही है और वित्तमंत्री कहती हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है, इसलिए कि रुपए की कीमत कम नहीं हुई है, डालर की कीमत बढ़ गई है। चुटकुलों की बहार आई उनकी इस बात के बाद, जिनमें सबसे मजेदार था उस बच्चे का, जो अपने पिता से कहता है कि वह फेल नहीं हुआ है, परीक्षा कठिन हो गई। ऊपर से महंगाई ऐसी बढ़ गई है हर चीज की कि कई मध्यवर्गीय परिवारों को बड़ी मुश्किल से दिवाली धूमधाम से मनाने की गुंजाइश होगी।

तो क्या, उम्मीद की छोटी-सी भी किरण नहीं है इन क्षेत्रों में? आर्थिक मामलों में तो अभी अंधेरा दिख रहा है दूर तक, लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में उम्मीद इससे जरूर है कि कांग्रेस पार्टी में आठ लंबे सालों के बाद जीवित होने के आसार दिखने लगे हैं।

नेहरू-गांधी परिवार के वर्तमान वारिस 'भारत जोड़ो यात्रा' पर हैं और सुना है कि दक्षिण प्रदेशों में उनका खूब स्वागत हुआ है, खूब समर्थन मिल रहा है। और इधर दिल्ली में कांग्रेस के मुख्यालय में पिछले सप्ताह मिठाइयां बांटी गईं, जब दो दशक बाद एक ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बना, जिसके नाम में गांधी नहीं है।

अभी तक कहना मुश्किल है कि क्या इसका मतलब है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अब दरबारियों का अड्डा न रह कर एक बार फिर बन जाएगी एक शक्तिशाली राजनीतिक दल। लेकिन कम से कम ऐसा होने की संभावनाएं तो दिखने लगी हैं। दिवाली के इस त्योहार की आपको तहेदिल से बहुत-बहुत मुबारकें।

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