सम्पादकीय

अकेली चप्पलों का दुख

Subhi
12 Aug 2022 5:35 AM GMT
अकेली चप्पलों का दुख
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एक भयावह मंजर के बीच कुछ चप्पलें पड़ी हुई थीं। चप्पलें जब तक जोड़ियों में रहें, तब तक दुनिया में शांति बनी रहती है। इनके अलग-थलग पड़ने से मायने बदल जाते हैं।

सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'; एक भयावह मंजर के बीच कुछ चप्पलें पड़ी हुई थीं। चप्पलें जब तक जोड़ियों में रहें, तब तक दुनिया में शांति बनी रहती है। इनके अलग-थलग पड़ने से मायने बदल जाते हैं। दृश्य बदल जाते हैं। प्राय: जोड़ियों में रहने वाली चप्पलें आजकल अलग-अलग नाप की एकल चप्पलों के साथ इधर-उधर बिखरी हुई हैं। जिधर देखो उधर अपनी बिरादरी से बिछुड़ी हुई एकल चप्पलें ही नजर आती हैं।

अलग-अलग रंग की। अलग-अलग ढंग की। इनमें कुछ नई चप्पलें भी हैं। ढूंढ़ने की लाख कोशिश की, लेकिन जोड़ीदार चप्पल का कहीं अता-पता नहीं। जोड़ीदार चप्पलें गईं तो गईं कहां? क्या उन्हें जमीन खा गई या फिर आसमान निगल गया।

एक बार के लिए इन्हें मंदिर, मस्जिद, चर्च या फिर किसी अन्य प्रार्थना स्थल के बाहर छोड़ दिया जाता तो चिंता करने वाली बात नहीं होती। मगर ऐसा भी नहीं है। यहां तो लोगों का जमघट लगा रहता है। एकल चप्पल पहन कर घूमने का सवाल ही नहीं उठता। शायद इन चप्पलों को पहनने वाले पैर कहीं गए होंगे। लौट आएंगे।

समय बूढ़े पत्तों की तरह पल-पल झड़ता ही जा रहा है, लेकिन उन पैरों का कहीं नामो-निशान नहीं है। गए तो गए कहां? इंसान हर चीज से प्यार करता है। यहां तक कि चप्पलों से भी। चप्पल छोड़ कर जाना भी हो तो सुरक्षित जगह पर रखता है। पर लगता है, वह इन चप्पलों को भूल गया है। काश, एकल चप्पलें भी हमारी तरह सांस ले पातीं। वे अपने आप अपनी जोड़ीदार चप्पल को ढूंढ़ लेतीं।

बड़े बुजुर्ग हमेशा चप्पल उल्टी रखने पर टोकते थे। तब तक टोकते थे जब तक कि उसे सीधा नहीं रख दिया जाता। उल्टी चप्पल देख कर हर किसी को उलझन होती है। लेकिन इससे भी बड़ी उलझन एकल चप्पल की है। उसकी जोड़ीदार चप्पल गई तो गई कहां? क्यों चप्पलें उल्टी नहीं होनी चाहिए, यह सवाल बाद में आएगा, पहले तो यही पूछा जाएगा कि एकल चप्पल की दूसरी जोड़ी कहां गई?

ज्योतिषशास्त्र लाख घर के अंदर या बाहर चप्पल के उल्टा रखे जाने को गंभीर और नकारात्मक प्रभाव माने, पर उससे बड़ी समस्या उसके एकल हो जाने का है। चप्पल को सीधा रखने पर घर की सकारात्मकता जब बनेगी तब बनेगी, उससे पहले एकल चप्पल का जोड़ीदार तो मिलना चाहिए न! उल्टी ही सही, चाहे कलह हो जाए या फिर लड़ाई-झगड़े हो जाएं, कोई बात नहीं। उल्टी या सीधी, मिले तो पहले।

चप्पलें हमारी तरह सांस नहीं ले पातीं। इसीलिए एकल चप्पलों के लिए अकेलेपन और अकेले रहने में कोई अंतर नहीं है। पर उनको पहनने वाले जीते-जागते इंसान हैं। आज वे कहीं खो गए हैं। उनकी चप्पलें एक-दूसरे से बिछुड़ी पड़ी हैं। एक-दूजे के न मिलने पर उन पर 'एकल चप्पल' की संज्ञा लग जाती है। अकेलापन चप्पलों को भी परेशान करता है। वे इस पीड़ा को बयान नहीं कर सकतीं। काश, हमारी तरह वे भी अकेले होते ही तुरंत फेसबुक खोल लेतीं या फोन मिला कर किसी से बतिया लेतीं।

काश वे बोल पातीं। बोल पातीं तो जरूर कहतीं कि अकेलेपन से हमें डर इसलिए लगता है, क्योंकि हमें जो कुछ मिला हुआ है, वह दूसरों से ही मिला है। और दूसरों से जो मिला है, उसके अलावा हमने अपने आप को कभी जाना नहीं है। साथी चप्पलें जब छोड़ कर दूर चली जाती हैं, तो इन चप्पलों को ऐसा लगता है कि उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया। इन चप्पलों ने केवल वही जाना है जो उन्हें अपनों से मिला है।

सच यही है कि फिर चप्पल हो या इंसान, सबको साथ चाहिए होता है। नाम दूसरों से मिला है, मान्यताएं, धर्म, जिंदगी की परिभाषा, मुक्ति, सत्य, पैसा, करिअर, प्रेम, समाज इन सबकी परिभाषाएं दूसरों से मिली हैं। इसलिए थोड़ी देर के लिए जब ये 'दूसरे' जिंदगी से दूर हो जाते हैं, तब बहुत डर लगता है।

एक बार को मान भी लें कि चप्पलों की चमक खत्म हो गई है। पुरानी पड़ गई हैं या टूटने पर मरम्मत के लिए मोची की दुकान पर पड़ी सुस्ता रही हैं। लेकिन तस्वीर इसके एकदम उलट है। इन एकल चप्पलों पर कुत्ते अपने दांत गड़ा रहे हैं। ये चप्पलें अपने मालिक को ढूंढ़ रही हैं। हजारों रुपए खर्च कर इन्हें खरीदने वाले बड़े बदनसीब हैं। वे एक बार के लिए इन्हें पहन भी नहीं पाए।

न जाने इन्हें छोड़ कर इंसानी पुतले कहां चले गए। कुछ चप्पलें आकार में छोटी भी थीं, फिर भी जबरन पहनने वाले इनके मालिक आखिर गए कहां? वैसे भी यहां इंसान के गिरते चरित्र की तुलना चप्पल से की जाती है। आज इंसान गायब है, चप्पलें जिंदा हैं। कुछ अभागन के पैरों की लाली भी नहीं सूखी थी, वे चप्पल छोड़ इस दुनिया को अलविदा कह गईं। आज दुनिया में चप्पलें ज्यादा हैं, इंसान कम हैं। उनमें भी एकल चप्पल की पीड़ा सबसे गहरी है।


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